(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
History of Ramlila: रामलीला के मंचन का इतिहास क्या है, आखिर कब इसकी शुरुआत हुई, पढ़ें विशेष रिपोर्ट
Ramlila History: दशहरे के दौरान रामलीला में रावण दहन किया जाता है. असत्य पर सत्य की जीत होती है. सवाल उठता है कि, आखिर रामलीला की शुरुआत कब हुई और इसके पीछे क्या वजह है.
Tradition of Ramlila: देश भर में नवरात्रि की धूम है, जगह-जगह मां दुर्गा के पूजा पंडाल सजे हुए हैं, तो वहीं विजयदशमी का त्यौहार भी करीब है, देश के अलग अलग राज्यों में रामलीलओं का भी मंचन हो रहा है, हालांकि इस बार कोविड के चलते कई जगहों पर सीमित संख्या में रामलीला में दर्शक जा रहे हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि आखिर रामलीला का उद्गम स्थल क्या है, कहां से रामलीला की शुरूआत हुई और कहां से ये दुनिया के अलग अलग देशों में जा पहुंची आखिर रामलीलाओं की शुरूआत आखिर हुई कहां से हुई ये जानकारी हम आपको देंगे.
राम की स्मृतियों को याद किया जाता है
किवदंतियों के मुताबिक, रामलीला की शुरूआत प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या से हुई. कहा जाता है कि, त्रेता युग में राम जब वन चले गए तब अयोध्यावासियों ने राम की स्मृति को याद रखने के लिए रामलीलाओं की संकल्पना कर उसे मूर्त रूप दिया था, लेकिन उपलब्ध प्रमाणों से ये स्पष्ट है कि रामलीला के प्रेरक गोस्वामी तुलसीदास स्वयं थे, उन्होंने अपने मित्र भक्त मेघा भगत के माध्यम से रामलीलाओं की प्रस्तुति मंचन की शुरूआत कराई थी.
ऐसा है इतिहास
रामलीला के प्रेरक गोस्वामी तुलसीदास रहे और मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अयोध्या में ही की थी. हम इसकी खोज में पहुंच गए तुलसी चौरा. जहां कहा जाता है कि, संवत सोलह सौ के आसापास गोस्वामी जी ने रामचरित मानस की रचना की. यहां आज भी उस वक्त के चबूतरे का अवशेष मौजूद है जिस पर कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने बैठकर इसकी रचना की थी. यहां हमें हरियाणा के रहने वाले रामेशवर शर्मा मिले, जो गोस्वामी तुलसीदास के अनन्य भक्त हैं, हर साल यहां आते हैं, घंटों इसी मंदिर में बिताते हैं. उन्होंने हमें एक और जानकारी दी, बताया कि त्रेता युग में जब राम का जन्म हुआ तब जो ग्रह नक्षत्र समय काल था वहीं, ग्रह नक्षत्र समय काल उस वक्त भी था जब संवत 1600 में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना शुरू की.
रामचरित मानस से लोगों में नई ऊर्जा का संचार
अयोध्या से निकल कर रामलीला देश दुनिया के अलग-अलग कोने तक जा पहुंची. अयोध्या और रामलीला के संबंध को जानने के लिए हम अयोध्या में वेद भास्कराचार्य और वेदों की गहनता से अध्ययन करने वाले देवी सहाय पांडे के पास पहुंचे. 84 वर्ष की उम्र में आज भी देवी सहाय जी लगातार वेदों पर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उस वक्त चार शताब्दी पूर्व जब निराशा का माहौल रहा होगा तब गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना कर एक तरह से लोगों में नई उर्जा का संचार किया. उनके मुताबिक राम को एक लोक रक्षक के रूप में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के जरिए प्रस्तुत किया, एक ऐसे नायक के रूप में उनका चित्रण किया जिसके लिए कुछ भी असंभव नहीं था और जो असत्य पर सत्य की विजय के लिए किसी भी कीमत को चुकाने के लिए तैयार था. एक ऐसा लोक रक्षक जिसने असुरों का नाश किया. वो रामचरित मानस की चौपाईयों के जरिेए राम के व्यक्तित्व का बखान करते हैं.
अयोध्या शोध संस्थान में होती है अनवरत रामलीला
अयोध्या की प्राचीन रामलीलाओं के बारे में जानने के लिए हम पहुंचे अयोध्या शोध संस्थान, जहां के प्रशासनिक अधिकारी ने हमें अयोध्या की कई प्राचीन और ऐतिहासिक रामलीलाओं के बारे में बताया, हालांकि इनमें से कुछ तो बंद हो गई हैं, वहीं उन्होंने अयोध्या शोध संस्थान की अनवरत चलने वाली रामलीला के बारे में भी हमें जानकारी दी. अयोध्या शोध संस्थान की अनवरत चलने वाली रामलीला की शुरूआत सन 1988 में हुई थी. तब हर मंगलवार को ये रामलीला होती थी ये रामलीला लगभग एक वर्ष तक चली, फिर 19 मई 2004 से अनवरत चलने वाली रामलीला की शुरूआत हुई, जिसमें हर दिन शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक रामलीला का मंचन होता था, वो रामलीला 23 नवंबर 2015 तक चली फिर बंद हो गई. उसके बाद 03 मई 2017 से फिर इस अनवरत चलने वाली रामलीला की शुरूआत हुई जो 21 मार्च 2020 तक चली फिर कोरोना के चलते इसे बंद कर दिया गया था और अभी भी ये बंद है.
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