Lathmar Holi: होली रंगों का त्योहार है. रंगों का त्योहार देश भर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. पूरे बृज क्षेत्र में होली मनाने का अलग ही अंदाज है. कहीं फूल की होली होती है, कहीं रंग-गुलाल की होली मनाई जाती है तो कहीं लट्ठ मारकर होली मनाने की परंपरा है. मथुरा के बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली अनूठे अंदाज के लिए दुनिया भर में जानी जाती है. होलिका दहन (Holika Dahen) से पांच दिन पहले विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली मनाई जाती है. लट्ठमार होली में महिलायें (हुरियारिन) लट्ठ से हुरियारों (पुरुषों) को पीटती हैं और हुरियारे सिर पर ढाल रख कर हुरियारिनों की लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं.
लट्ठमार होली मनाने की परंपरा सदियों पुरानी
अनूठी परंपरा को मनाने का इतिहास सदियों पुराना है. कहा जाता है कि लट्ठमार होली की शुरुआत पांच हजार साल से भी पहले हुई थी. हिंदू धर्मग्रंथों में है कि भगवान कृष्ण बृज छोड़कर द्वारिका चले गये थे. दोबारा बरसाना आने पर बृज में होली का समय था. कृष्ण के बिछुड़ने से दुखी राधा और सखियों ने वापस आने पर गुस्से का इजहार किया.
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दुनिया में मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली
राधा और सखियां चाहती थीं कि कृष्ण कभी दूर ना हों. इसलिए कृष्ण ने रूठी राधा और सखियों को मनाने की कोशिश की. उन्होंने प्यार भरे गुस्से का इजहार करते हुए कृष्ण के साथ लट्ठ मारकर होली खेली थी. तब से लेकर आज तक लट्ठमार होली मनाने की परंपरा चली आ रही है. लट्ठमार होली को देखने लोग दूर दराज से बरसाना आते हैं.
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