Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस (Congress) ने बीजेपी को मात देते हुए सत्ता एकबार फिर हासिल कर ली है. इस पहाड़ी राज्य में सरकार दोहराने के लिए बीजेपी ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया. पार्टी के बड़े नेता ने कई रैलियां कीं लेकिन बावजूद इसके मतदाताओं ने कांग्रेस का हाथ थामा और उसे सत्ता में आने का मौका दिया. बीजेपी जहां हार के बाद से आत्ममंथन करने में जुटी हुई है वहीं जीत से उत्साहित कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति दूसरे राज्यों में भी दोहराने की तैयारी में है. हार-जीत के इस खेल के बारे में कांग्रेस के रणनीतिकार अकबर चौधरी (Akbar Chaudhary) ने एबीपी न्यूज़ से विस्तार से अपने अनुभव को शेयर किया. उन्हें ऐसा भरोसा है कि कांग्रेस बीजेपी को भविष्य के चुनावों में मात दे सकती है.


हिमाचलियत बनाम राष्ट्रीय मुद्दा


अकबर चौधरी ने हिमाचल की मूल भावना के साथ जुड़ने यानी हिमाचलियत को जीत का आधार बताते हैं. अकबर चौधरी ने कहा, 'किसी भी राज्य में चुनाव को स्थानीय बनाकर रखना जरूरी है. हमने हिमाचलियत और बीजेपी के राष्ट्रवादी बयानबाजी के बीच एक विकल्प पेश किया. राज्य के चुनाव में लोग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय की जगह स्थानीय लाभ पर ध्यान देते हैं.'


सोशल मीडिया-मीडिया की भूमिका


अकबर चौधरी ने कहा,  'चाहे मीडिया के माध्यम से हो या सोशल मीडिया के माध्यम से नेरेटिव बनाने को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. जैसे कि लोकनीति सर्वे से पता चला कि हिमाचल में दो-तिहाई मतदाता प्रचार से पहले ही फैसला कर लिया था. ऐसे में वोटर का मन बदलना विपक्ष के लिए यहां बहुत जरूरी थी. कांग्रेस के कैम्पेन के कारण आखिरी मिनट में निर्णय लेने वालों को लेकर बड़ा बदलाव करके दिखाया.'


उम्मीदवारों का चयन


अकबर चौधरी बताते हैं कि बीजेपी लंबे समय से '70 सालों में कुछ नहीं हुआ' का जुमला प्रचारित कर रही है, और ऐसा वह बीजेपी और कांग्रेस के बीच तुलना करने के लिए करती है. कांग्रेस का समय बुरा हो सकता है लेकिन उसके उम्मीदवारों का नहीं. लोग प्रधानमंत्री को पसंद कर सकते हैं लेकिन वे स्थानीय विधायकों को उतना ही नापसंद करते हैं. यह परिस्थिति उम्मीदवारों की घोषणा के साथ बदल गई. कांग्रेस ने जीतने वाले उम्मीदवार को चुना और बीजेपी बागियों को मनाने में नाकाम रही जिससे परिस्थितियां कांग्रेस की तरफ मुड़ीं.


गरीबों तक पहुंच


अकबर चौधरी कांग्रेस की जीत की चौथी वजह गरीबों तक पहुंच को बताते हैं. उन्होंने कहा, 'गरीबों को बढ़ती महंगाई से कुछ राहत चाहिए. अगर कोई चुनाव में 1500 रुपये महीने देने का वादा करता है तो वे इससे कुछ खरीद लेंगे और इसमें कुछ भी गलत नहीं है.' 


जनता को जीत का भरोसा दिलाना जरूर


अकबर चौधरी कहते हैं कि किसी भी सफल अभियान के लिए उसका सफलतापूर्वक निष्पादन जरूरी है. केवल वादे करना काफी नहीं है, एक वोटर को यह विश्वसनीय लगना चाहिए. उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि पार्टी सच में सत्ता में आ रही है और अपने वादे को पूरा करने के लिए गंभीर है. 


ध्रुवीकरण-महंगाई


कांग्रेस के रणनीतिकार अकबर चौधरी ने कहा कि ध्रुवीकरण और बढ़ती कीमत में से वोटर बढ़ती कीमत को महत्व देंगे. आप ईमानदारी से उनके दैनिक मुद्दे को उठाते हैं तो वे ध्रुवीकरण के एजेंडे में नहीं फंसेंगे. चाहे हिमाचल प्रदेश उपचुनाव हो या विधानसभा चुनाव, दोनों ही परिस्थितियों में मतदाताओं ने बेरोजगारी और बढ़ती कीमत के मुद्दे से खुद को जोड़कर देखा. 


- बीजेपी को रोकने की अकबर चौधरी ने बताई यह रणनीति


अकबर चौधरी ने कहा, 'सोशल मीडिया मैनेजमेंट बहुत जरूरी है. य़ह जादू कर सकता है अगर सही से मैनेज किया जाए. बीजेपी हर तरह के फर्जी सर्वे और झूठे बयान फैलाती हैं और विपक्ष के पास कभी भी उसका जवाब देने का टाइम नहीं होता था. चुनाव से छह महीने पहले ही लोगों को बीजेपी के 'झूठ' का विरोध करने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.' 


कांग्रेस को पेशेवर प्रणाली बनाने की जरूरत 


अकबर चौधरी पार्टी के भीतर एक पेशेवर प्रणाली बनाने की जरूरत पर जोर देते हैं. उन्होंने कहा, "बीजेपी के पास स्टैंडर्ड मेथड हैं और वे चुनावी कसल्टेंसी सिस्टम के रूप में इसे लागू करते हैं. कांग्रेस के ऊपर बीजेपी को अतिरिक्त बल इस बात से मिलता है कि उसका समर्पित और संकल्पबद्ध पार्टी फोर्स है. चाहे आरएसएस हो या फिर वैचारिक रूप से प्रेरित पार्टी कैडर हो जो यह सुनिश्चित करते हैं कि इश्तहार घर-घर पहुंचे." 


बूथ मैनेजमेंट 


अकबर चौधरी ने बूथ मैनेजमेंट की भूमिका को भी अहम बताया है. उन्होंने इसके लिए बीजेपी बूथ मैनजमेंट का हवाला देते हुए कहा, "पन्ना प्रमुख से लेकर पेज समिति को बनाने की बीजेपी की यात्रा माइक्रो-मैनेजमेंट का मुख्य कुंजी है. हिमाचल में कांग्रेस ने बूथ कार्य़कर्ताओं की वैसे ही कॉन्फ्रेंस की थी जैसा कि छ्त्तीसगढ़ में सीएम भूपेश बघेल ने किया था."


पार्टी के भीतर संसाधन का आवंटन


अकबर चौधरी बताते हैं कि पार्टी के भीतर संसाधनों का आवंटन रणनीतिक रूप से होना चाहए. पार्टी को अपने लोगों का ईमानदार मूल्यांकन करने और उन्हें उसी अनुरूप जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. पार्टी के सक्षम संसाधनों का रणनीतिक इस्तेमाल कम महत्वपूर्ण नहीं हो सकता. 


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