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2024 में महागठबंधन बनने पर बिहार, यूपी और बंगाल में कांग्रेस को कितनी सीटें मिल सकती हैं?

कांग्रेस पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ पहले भी गठबंधन में चुनाव लड़ चुकी है. हालांकि, उस वक्त पार्टी की स्थिति काफी मजबूत थी.

2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल की भूमिका अहम रहने वाली है. इसकी अपनी दो वजहें भी हैं. पहला तो ये कि तीनों राज्यों में लोकसभा की 162 सीटें हैं. दूसरा कारण इन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कांग्रेस की संभावित मोर्चेबंदी.

नीतीश कुमार को आगे कर कांग्रेस उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में महागठबंधन को मूर्त रूप देने की कोशिश में जुटी है. ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने साथ देने की बात कही है, लेकिन महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ेंगे या नहीं, इस पर सस्पेंस कायम है.

कांग्रेस पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ पहले भी गठबंधन में चुनाव लड़ चुकी है. हालांकि, उस वक्त पार्टी की स्थिति काफी मजबूत थी. ऐसे में सवाल है कि इस बार महागठबंधन होता है, तो कांग्रेस की भूमिका क्या रहेगी?

यूपी और पश्चिम बंगाल की सत्ता से कांग्रेस 40 सालों से ज्यादा वक्त से बाहर है. इन राज्यों में मजबूत पकड़ बनाने के लिए कई प्रयोग किए गए, लेकिन सब ढाक के तीन पात ही साबित हुए.  

बंगाल, यूपी और बिहार में अगर महागठबंधन बनता है, तो उसमें कांग्रेस की भूमिका और सीटों पर उसके दावों का आधार क्या होगा, इसे विस्तार से जानते हैं...

बात पहले बिहार की...

यहां डिमांड ज्यादा पर जिताऊ उम्मीदवार नहीं
2019 के चुनाव में कांग्रेस महागठबंधन में आरजेडी, आरएलएसपी, वीआईपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस को महागठबंधन में 9 सीट मिला था, जिसमें से एक पर जीत मिली थी. कांग्रेस 2024 में भी उसी जोर से तैयारी कर रही है. 

हालांकि, इस बार समीकरण बदला हुआ है. आरजेडी के साथ ही 17 सांसदों वाली जेडीयू भी गठबंधन का हिस्सा है. जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के अलावा 4 अन्य दल भी गठबंधन में शामिल हैं. बिहार में कांग्रेस की सीटें जेडीयू-आरजेडी के स्टैंड से तय होगा.

आरजेडी और जेडीयू अंदरखाने नीतीश कुमार को पीएम के मजबूत दावेदार बनाने में लगी है. ऐसे में यह तय है कि दोनों पार्टियां मिलकर अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जिससे ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की जा सके.

अगर ऐसा होता है तो जेडीयू और आरजेडी 16-16 या 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. इस स्थिति में कांग्रेस को बिहार में 5-6 सीटें ही मिल सकती है. कांग्रेस के ज्यादा सीटों पर दावा करने के लिए जिताऊ कैंडिडेट भी नहीं है. 

किन सीटों पर कांग्रेस का मजबूत दावा
किशनगंज- बिहार में कांग्रेस को 2019 में एकमात्र किशनगंज सीट पर जीत मिली थी. 2009 से लगातार कांग्रेस इस सीट को जीत रही है. 2019 में कांग्रेस और जेडीयू के बीच मुकाबला हुआ था, जिसमें करीब 40 हजार वोटों से कांग्रेस जीत गई थी. 

इस बार जेडीयू कांग्रेस के साथ ही है. ऐसे में कांग्रेस का दावा इस सीट पर सबसे मजबूत है. हालांकि, जीतन राम मांझी की पार्टी ने भी किशनगंज सीट पर दावा ठोका है, लेकिन उनके इस दावे को प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा माना जा रहा है. 

कटिहार- यह सीट वर्तमान में जेडीयू के पास है और दुलाल चंद गोस्वामी सांसद हैं. कांग्रेस का कटिहार सीट पर मजबूत दावे के पीछे तारिक अनवर का चेहरा है. अनवर 2019 के चुनाव में कटिहार सीट पर दूसरे नंबर पर रहे थे. 

अनवर इस सीट से 5 बार लोकसभा पहुंच चुके हैं और अभी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं. अनवर पिछले चुनाव में 57 हजार वोटों से हार गए थे. अनवर का नीतीश कुमार और लालू यादव से अच्छे संबंध हैं. ऐसे में कटिहार के भी कांग्रेस खाते में जाने की संभावनाएं है.

सुपौल या मधेपुरा- सुपौल और मधेपुरा दोनों सीट पर वर्तमान में जेडीयू का कब्जा है. 2014 में सुपौल सीट पर कांग्रेस की रंजीत रंजन ने जीत दर्ज की थी. रंजन 2004 में भी इस सीट से जीत हासिल की थी. रंजन बाहुबली नेता पप्पू यादव की पत्नी हैं. 

पप्पू यादव के भी कांग्रेस में जाने की अटकलें लग रही है. पप्पू 2014 में मधेपुरा सीट से आरजेडी के टिकट पर सांसदी जीते थे. सब कुछ ठीक रहा तो मधेपुरा या सुपौल में से एक सीट पर कांग्रेस यादव परिवार के लिए दावा ठोक सकती है. 

बेगूसराय- 2019 में बिहार की बेगूसराय सीट सबसे ज्यादा सुर्खियों में था. इसकी वजह बीजेपी के गिरिराज सिंह और सीपीआई के कन्हैया कुमार के बीच चुनावी मुकाबला था. उस चुनाव में आरजेडी ने भी अपना कैंडिडेट उतारा था, लेकिन आरजेडी के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे.

कन्हैया कुमार अब कांग्रेस में है और गांधी परिवार के काफी करीब हैं. 2019 के चुनाव में कन्हैया को बेगूसराय में 2 लाख 69 हजार वोट मिले थे. कन्हैया के चलते बिहार की बेगूसराय सीट पर कांग्रेस की मजबूत दावेदारी है.

सासाराम- बाबू जगजीवन राम की सीट कहे जाने वाले सासाराम वर्तमान में बीजेपी के पास है और छेदी पासवान सांसद हैं. जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार 2004 और 2009 में इस सीट से सांसद रह चुकी हैं. 

सासाराम सीट पर मीरा कुमार अपने बेटे अंशुल अभिजीत को उत्तराधिकारी घोषित कर सकती हैं. अंशुल कांग्रेस में अभी प्रवक्ता हैं और लगातार सक्रिय हैं. 

बंगाल में भी हाल बेहाल

दावा 2009 वाला, लेकिन हालात काफी अलग
कांग्रेस 2009 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. इस चुनाव में कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस उस चुनाव में 14 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पार्टी का दावा इस बार भी 2009 वाला ही है, लेकिन इस बार हालात काफी बदल गए हैं.

2009 में कांग्रेस को मुर्शिदाबाद, ब्रह्मपुर, मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण, रायगंज और जंगीपुर सीट पर जीत दर्ज की थी. वर्तमान में जंगीपुर के अभिजीत बनर्जी और मालदा उत्तर के मौसम नूर तृणमूल में हैं. 2019 में कांग्रेस ब्रह्मपुर और मालदा दक्षिण में ही जीत दर्ज कर पाई. 

ममता बनर्जीन की पार्टी के साथ अगर चुनाव पूर्व गठबंधन होता है तो कांग्रेस 6 सीटों पर दावा ठोक सकती है. इनमें मुर्शिदाबाद, ब्रह्मपुर, मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण, रायगंज और जंगीपुर सीट है.

ब्रह्मपुर और मालदा दक्षिण में कांग्रेस के वर्तमान सांसद है. रायगंज से दीपा दासमुंशी को कांग्रेस उम्मीदवार बना सकती है. जंगीपुर से प्रणब मुखर्जी की बेटी को आगे कर इस सीट पर पार्टी दावा ठोक सकती है.

प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा अभी भी कांग्रेस में है और लगातार सक्रिय है. शर्मिष्ठा ने भाई के तृणमूल में जाने को लेकर भी सवाल उठाया था. 

अब बात सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की...

गठबंधन हुआ तो 2019 वाला फॉर्मूला लागू होगा
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में सपा के साथ कांग्रेस गठबंधन को नकार चुके हैं. हालांकि, नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने के आसार हैं. मथुरा मेयर इलेक्शन में सपा ने कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन भी दिया है. 

उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस अकेले लड़ती रही है. 2009 में कांग्रेस ने 21 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसके बाद कांग्रेस 2 और 1 सीटों पर ही सिमटती रही है. 

2019 के चुनाव में कांग्रेस ने रायबरेली सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि अमेठी, कानपुर और फतेहपुर सीकरी में दूसरे नंबर पर रही थी.  यानी कुल 4 सीटों पर कांग्रेस का बीजेपी से सीधा मुकाबला हुआ था. 

2019 में सीतापुर सीट से दूसरे नंबर पर रहने वाले बीएसपी के नकुल दुबे भी कांग्रेस में आ चुके हैं. इस हिसाब से 5 सीटों पर कांग्रेस के पास मजबूत उम्मीदवार हैं. 

कांग्रेस इसके अलावा गाजियाबाद, बिजनौर, जालौन और कुशीनगर सीट पर भी दावा ठोक सकती है. यूपी के ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने हाल ही में यूपी के 3 नेताओं को राज्यसभा भेजा था. 

इनमें प्रमोद तिवारी, इमरान प्रतापगढ़ी और राजीव शुक्ला का नाम शामिल हैं. तिवारी राज्यसभा में कांग्रेस की तरफ से उपनेता भी हैं. कांग्रेस ने दलित बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है.

विपक्ष के लिए बिहार, बंगाल और यूपी क्यों महत्वपूर्ण?
तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 162 सीटें हैं. 2019 में एनडीए को 121 सीटें मिली थी. कांग्रेस को तीनों राज्यों में सिर्फ 4 सीट पर जीत नसीब हुई थी. यूपी के अमेठी से कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव हार गए थे. 

2014 में इन तीनों राज्यों में एनडीए को 106 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 8 सीटें गई थी. 2009 के बाद से हिंदी बेल्ट के यूपी-बिहार और पश्चिम बंगाल में बीजेपी की मजबूत पकड़ है. 

नीतीश कुमार 2024 के चुनाव में उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़ा झटका देने के मिशन पर काम कर रहे हैं. 2009 में एनडीए को इन राज्यों में सिर्फ 48 सीटें मिली थी. इसके मुकाबले यूपीए को जबरदस्त फायदा मिला था. 

यूपी-बिहार के चुनावी मूड से हिंदी बेल्ट के अन्य राज्यों में भी नैरेटिव बनता है. इसके पीछे सीटों की संख्या है. सियासी गलियारों में एक कहावत भी मशहूर है- दिल्ली का रास्ता यूपी और बिहार से ही होकर जाता है. 

गठबंधन बनता है तो 162 सीटों पर सीधा मुकाबला
नीतीश कुमार 2024 में बीजेपी को 100 सीटों पर समेटने का दावा कर चुके हैं. मल्लिकार्जुन खरगे भी कांग्रेस की सरकार बनने की भविष्यवाणी कर चुके हैं. नीतीश कुमार इसके लिए कांग्रेस हाईकमान से रणनीति भी साझा कर चुके हैं.

नीतीश 450 सीटों पर बीजेपी से सीधा मुकाबला करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. ऐसे में बिहार-यूपी और बंगाल की 162 सीटें महत्वपूर्ण है. गठबंधन अगर फाइनल होता है, तो यह तय है कि कांग्रेस को सीटों की संख्या में एडजस्टमेंट करना पड़ेगा.

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