लखनऊ, संतोष कुमार। उत्तर प्रदेश में एक बार फिर बेहतर कानून व्यवस्था के लिए कमिश्नर प्रणाली लागू करने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। एक बार फिर नोएडा के साथ लखनऊ से कमिश्नर प्रणाली को लागू करने की तैयारी की जा रही है। बीते तीन सालों में कानून व्यवस्था, अपराध नियंत्रण के साथ-साथ बेहतर पुलिसिंग के फ्रंट पर फेल होती नजर आ रही उत्तर प्रदेश सरकार अब कमिश्नर प्रणाली के सहारे सब कुछ ठीक करने जा रही है। कैसे बेहतर होगी कमिश्नर प्रणाली से पुलिसिंग और कानून व्यवस्था? क्यों है कमिश्नर प्रणाली देश के 100 से अधिक बड़े महानगरों में सफल। हम आपको इसे रिपोर्ट के माध्यम से बताते हैं।


उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर कमिश्नर प्रणाली लागू करने की चर्चा तेज है। नोएडा और लखनऊ में सरकार प्रयोग के तौर पर कमिश्नर प्रणाली को लागू करने का मन बना चुकी है और इस नई व्यवस्था का प्रारूप तय करने के लिए मंथन का दौर भी शुरू हो चुका है।


कमिश्नर प्रणाली लागू होगी तो पुलिस के पास अधिकार बढ़ जाएंगे और वह अधिक ताकतवर हो जाएगी। कानून व्यवस्था से जुड़े तमाम मुद्दों पर पुलिस कमिश्नर ही निर्णय ले सकेगा। जिले के डीएम के पास अटकी रहने वाली तमाम अनुमति की फाइलों का झंझट खत्म हो जाएगा।


इस प्रणाली में एसडीएम और एडीएम को दी गई एग्जीक्यूटिव मजिस्टेरियल पावर पुलिस को मिल जाएंगी। यानी पुलिस शांति भंग की आशंका में निरुद्ध करने से लेकर गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और रासुका लगाने में सक्षम हो जाएगी। इन सभी कार्रवाई के लिए डीएम की परमिशन का झंझट खत्म कर पुलिस कमिश्नर इस पर फैसला ले सकेंगे।


और ताकतवर हो जाएगी पुलिस


कानूनी भाषा में कहे तो सीआरपीसी की मजिस्ट्रियल पावर वाली जो कार्यवाही अब तक जिला प्रशासन प्रशासन के अफसरों के पास थे वह सभी मजिस्टेरियल पावर पुलिस कमिश्नर को मिल जाएंगे। यानी सीआरपीसी में 107-16, धारा 144, 109, 110, 145 के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी पुलिस को मिल जाएंगी।


होटल के लाइसेंस, बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार भी पुलिस के पास आ जाएगा। धरना प्रदर्शन की अनुमति देना ना देना पुलिस तय करेगी। दंगे के दौरान लाठी चार्ज होगा या नहीं, कितना बल प्रयोग होगा यह भी पुलिस तय करेगी। जमीन की पैमाइश से लेकर जमीन संबंधी विवादों के निस्तारण में भी पुलिस को अधिकार मिलेगा। पुलिस सीधे लेखपाल को पैमाइश करने का आदेश देगी। हत्या मारपीट आगजनी बलवा जैसे तमाम घटनाएं जमीनी विवाद से शुरू होती हैं। कमिश्नर प्रणाली लागू होने से पुलिस ऐसे विवादों का जल्द निस्तारण कर सकेगी।


कमिश्नर प्रणाली से शहरी इलाके में अतिक्रमण पर भी अंकुश लगेगा। अतिक्रमण अभियान चलाने का सीधे आदेश कमिश्नर देगा और नगर निगम को उस पर अमल करना होगा।


पुलिस पर निरंकुश होने का खतरा
इन तमाम खूबियों के बीच इस प्रणाली से पुलिस के निरंकुश होने का भी खतरा होगा। घूसखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए कमिश्नर प्रणाली दो धारी तलवार की तरह होगी।


नोएडा के पूर्व एसएसपी वैभव कृष्ण के अश्लील वीडियो से शुरू हुआ उत्तर प्रदेश सरकार की किरकिरी का सिलसिला सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर विपक्षियों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। सरकार को एसएसपी नोएडा को सस्पेंड और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे 5 आईपीएस अफसरों को हटाना पड़ा। ऐसे में जब पुलिस के पास वसूली के अधिकार होंगे तो पुलिस में भ्रष्टाचार के और अधिक बढ़ने का खतरा भी मंडरा आएगा। लेकिन पुलिस को बेहतर समझने वाले और कमिश्नर प्रणाली की पैरवी करने वाली प्रकाश सिंह कमेटी हो या फिर सुलखान सिंह कमेटी की सिफारिशें, सभी ने एक आईजी स्तर के अफसर के हाथों में जिले की कमान और फिर डीसीपी और ज्वाइंट कमिश्नर के पदों पर भी डीआईजी रैंक के अफसरों की तैनाती इन अफसरों के अनुभव और साख से पुलिस के भ्रष्टाचार का खतरा कम होगा। दलील दी गई कि जब अफसर 15 से 20 साल के अनुभव वाला अफसर जिले की कमान संभालेगा तो उसके अनुभव का लाभ पुलिसिंग में होगा। साथ ही बेदाग करियर की चिंता में अफसर खुद भी भ्रष्टाचार में शामिल नहीं होगा। जिसका उदाहरण दिल्ली, मुंबई बैंगलुरू, हैदराबाद जैसे शहरों में चल रही कमिश्नर प्रणाली उदाहरण है।


प्रयोग के तौर पर ही सही उत्तर प्रदेश सरकार के लिए कमिश्नर प्रणाली लागू करना आसान भी नहीं होगा। सरकार को अभी यह तय करना है कि अगर नोएडा और लखनऊ में पुलिस की कमान आईजी रैंक के अफसर को दी जाएगी तो इलाके के अपर पुलिस अधीक्षक और सीओ सर्किल की कमान डीआईजी और एसपी स्तर के अफसरों को मिलेगी या फिर सिर्फ पद नाम बदलकर, कमिश्नर प्रणाली के अधिकार देकर यह व्यवस्था लागू की जाएगी।


उत्तर प्रदेश में कमिश्नर प्रणाली लागू करने की कवायद कोई पहली बार नहीं हुई है। सबसे पहले 1976-77 में प्रयोग के तौर पर कानपुर में कमिश्नर प्रणाली लागू करने की कोशिश की गई। फिर साल 2009 में प्रदेश की मायावती सरकार ने भी नोएडा और गाजियाबाद को मिलाकर कमिश्नर प्रणाली लागू करने की तैयारी की। मायावती सरकार में तो ट्रांस हिंडन और ग्रेटर नोएडा समेत चार क्षेत्रों में ज्वाइंट कमिश्नर तैनात कर पुलिसिंग का खाका तक तैयार हो गया था, लेकिन आईएएस लॉबी के अड़ंगे और कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से लागू नहीं किया जा सका। साथ ही 27 दिसंबर 2018 को पुलिस वीक की रैतिक परेड में तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने भी प्रदेश की योगी सरकार से लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद समेत तमाम शहरों में प्रयोग के तौर पर ही सही कमिश्नर प्रणाली लागू करने की सिफारिश की थी।


एक बार फिर उत्तर प्रदेश में कमिश्नर प्रणाली को लागू करने की तैयारी हो रही है। लेकिन इस बार प्रदेश में मजबूत इच्छाशक्ति का दावा करने वाली भाजपा की सरकार है। आईपीएस अफसरों के साथ जनता को भी उम्मीद है कि कमिश्नर प्रणाली धीरे-धीरे ही सही लेकिन लागू जरूर हो जाएगी।