जानिए क्या है आरती का महत्व ?
एबीपी गंगा के खास शो में आज पंडित शशिशेखर त्रिपाठी ने आरती करने के महत्व और उसके तरीकों पर बात की। पंडित जी ने आरती करने के नियम तो बताए ही साथ ही आरती क्यों जरूरी है ये भी बताया।
एबीपी गंगा के खास शो में आज पंडित शशिशेखर त्रिपाठी ने आरती करने के महत्व और उसके तरीकों पर बात की। पंडित जी ने आरती करने के नियम तो बताए ही साथ ही आरती क्यों जरूरी है ये भी बताया।
जिस घर में हो आरती चरण कमल चित्त लाय । कहां हरि बासा करें, जोत अनंत जगाय ।।
अर्थात जिस घर में प्रभु के चरण कमलों का ध्यान रखते हुए यानि पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा भाव के साथ आरती अथवा अर्चन होता है वहां प्रभु का वास होता है। शास्त्रों में भक्ति को श्रेष्ठ माना गया है जिसमें श्रवण, कीर्तन, पादसेवन, अर्चन एवं वंदन आदि के बाद की जाती है आरती। आरती को अरार्तिक या निराजन भी कहते हैं। आरती शब्द अत्यन्त प्राचीन है। किसी भी देवता के पूजन से संबंधित स्थलों पर हम आरती का अवश्य दर्शन करते हैं।
यह बतलाया गया है कि जिस देवता की आरती करने चलते हैं, उस देवता का बीज मंत्र, स्नान थाली,नीराजल थाली, घण्टिका और जल कमंडलु आदि पात्रों पर चंदन आदि से लिखना चाहिए और फिर आरती द्वारा भी उस बीज मंत्र को देव प्रतिमा के सामने बनाना चाहिए। पूजा के अंत में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है उसकी क्षमा याचना अथवा पूर्ति के लिए आरती की जाती है। यदि कोई मंत्र नहीं जानता है और पूजा की विधि भी नहीं जानता है लेकिन भगवान की आरती कहीं हो रही हो तो वहां पर खड़े होकर भक्ति भाव के साथ श्रवण करना चाहिए।
कैसे करें आरती ? यदि कोई व्यक्ति तत्तद देवताओं के बीज मंत्रों का ज्ञान न रखता हो तो सभी देवताओं के लिए 'ऊं' को लिखना चाहिए अर्थात आरती को ऐसे घुमाना चाहिए, जिससे कि 'ऊं' वर्ण की आकृति बन जाए। किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है।
आरती के लिए सुबह और शाम का समय होना चाहिए। स्ट्रेस दूर करने के लिए संध्या को आरती करने की आदत बनानी चाहिए। आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है। इसके साथ पूजा के फूल और कुमकुम भी जरूर रखें।
आरती करते समय ध्यान रखें कि सर्वप्रथम चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार आरती करने के बाद पुनः समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए। जल को भगवान के चारों ओर घुमाकर उनके चरणों में निवेदन करना चाहिए। आरती के उपरान्त थाल में रखे हुए पुष्प को समर्पित करना चाहिए और कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए। एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आरती लेने वाले को थाल में कुछ दक्षिणा अवश्य रखनी चाहिए।
आरती करने के नियम? बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती। हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है। अगर दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी होना चाहिए। आरती से ऊर्जा लेते समय सिर अवश्य ढक लें। खासतौर पर महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सिर के मध्य भाग पर लगायें। आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट हाथ नहीं धोने चाहिए।
विष्णु भगवान जी की बारह बार आरती घुमानी चाहिए। सूर्य सात रश्मियों वाले हैं, इनके रथ में सात घोड़े लगे रहते हैं। इसलिए सूर्य भगवान को सात बार आरती घुमानी चाहिए। दुर्गा जी की नौ बार आरती करनी चाहिए। शंकर भगवान को ग्यारह बार आरती घुमाना चाहिए। गणेश जी चतुर्रथी तिथि के अधिष्ठाता हैं, इसलिए श्री गणेश जी को चार बार आरती दिखानी चाहिए। इसके अलावा सभी देवी-देवताओं के लिए सात बार आरती करने को कहा गया है।