कानपुरः उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण की रफ्तार थोड़ी कम हुई है लेकिन मौतों का आंकड़ा अभी भी थम नहीं रह है. बीते दिनों गंगा नदी में लाशें बहाने के मामले से देशभर में हड़कंप भी मचा. कानपुर, उन्नाव, रायबरेली, कन्नौज में नदी में बहाई गई लाशों के साथ-साथ इन्हें किनारे पर ही दफन करने की खबरों ने चिंता बढ़ा दी है. इन खबरों ने नमामि गंगे मिशन से जुड़े भारत सरकार के अधिकारियों के माथे पर भी बल ला दिया है. यही वजह है कि अब गंगाजल और किनारे की मिट्टी की जांच का काम शुरू करने पर विचार किया जा रहा है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर यानी आईआईटी कानपुर जल्द ही गंगाजल और इसकी मिट्टी की जांच का अभियान शुरू करने वाला है. इसके तहत IIT-K यह जांच करेगा कि गंगा में लाशें बहाए जाने और नदी किनारे इन्हें रेत में दफन करने से पानी और मिट्टी पर क्या प्रभाव पड़ा है.
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के सलाहकार प्रो. विनोद तारे ने कहा है कि गंगा में कोरोना संक्रमण से हुई मौत के बाद शव बहाए जाने की आशंका को लेकर यह अध्ययन किया जाएगा.
गौरतलब है कि यूपी के रायबरेली, उन्नाव, फतेहपुर, कन्नौज, गाजीपुर, चंदौली और प्रयागराज में गंगा नदी में लाशें बहाए जाने की खबरें आई हैं. इसके अलावा बिहार के बक्सर जिले में भी गंगा से 50 से ज्यादा शव बरामद किए गए थे. इसके बाद गंगा नदी के किनारे रेत में शवों को दफन करने की तस्वीरें सामने आई.
कानपुर आईआईटी के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ प्रो. तारे ने कहा है कि गंगा नदी में कोरोना संक्रमित मरीजों का शव बहाए जाने के बाद भी कोरोना वायरस खत्म नहीं होगा. इस वायरस को नष्ट करने के लिए कई दूसरी चीजों की भी जरूरत होगी. लेकिन इन शवों के कारण पानी के प्रदूषित होने की आशंका जरूर है. इसलिए आईआईटी कानपुर को गंगाजल और इसकी मिट्टी के अध्ययन की जिम्मेदारी दी गई है.
कोरोना संकट के बीच लंदन के लिए आज से एयर इंडिया की उड़ानें शुरू