एबीपी गंगा के एस्ट्रो शो समय चक्र में आज पंडित शशिशेखर त्रिपाठी ने अमावस्या के महत्व के बारे में बताया। जिस दिन आकाश में चंद्रमा दिखाई नहीं देते हैं, उसी तिथि या दिन को अमावस्या कहते हैं। भारतीय काल गणना में प्रत्येक माह को दो भागों में विभाजित किया गया है। यह मास व्यवस्था आकाश में चंद्रमा के पूर्ण दृश्य होने व पूर्ण अदृश्य होने की स्थिति पर आधारित होती है।


एक माह में 30 तिथियां होती हैं। इनमें से पहली 15 तिथियों में तो चंद्रमा का आकार बढ़ता है, इन 15 दिनों की अवधि को शुक्ल पक्ष कहते हैं और 15वीं तिथि को चंद्रमा पूर्ण गोलाकार दिखाई देते हैं, इसलिए इस पन्द्रहवीं तिथि को पूर्णिमा कहा जाता है।


जिन पन्द्रह दिनों में चंद्रमा का आकार कम होता जाता है, उस अवधि को कृष्ण पक्ष कहते हैं। कृष्ण पक्ष की अंतिम पन्द्रहवीं तिथि को चंद्रमा पूरी तरह से अदृश्य होते हैं। और चंद्रमा का प्रकाश नहीं होता है जिससे यह रात्रि अंधकार मय हो जाती है। इस तिथि को ही अमावस्या कहते हैं।


ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा का वह भाग जो प्रथ्वी से कभी नहीं दिखता है, वही पर पितृ निवास करते हैं। यह वही स्थान है जहां चंद्रयान-2 की सफल लैंडिंग कराने की कोशिश हुई। इसलिए चंद्रमा का पितरों से बहुत गहरा कनेक्शन है। ऐसी सनातन मान्यता है कि अमावस्या को पितृ अपने परिवार से मिलने आते हैं। इसलिए अमावस्या का विशेष स्थान है। अमावस्या के देवता भी पितृ हैं। इसलिए ध्यान रहे कि हर अमावस्या को ऐसा नियम बना लें कि अपने पितरों का शाम के समय ध्यान करें। उनकी फोटो पर पुष्प माला पहनाएं और उनको श्रद्धा भाव प्रेषित करें।


अमावस्या पर क्या करें? क्या न करें?
- इस दिन बेडशीट अवश्य बदलनी चाहिए और सात्विक रहना चाहिए।


- अमावस्या तिथि को पितरों (पूर्वजों ) की तृप्ति करने के लिए किए जाने वाले कार्य तर्पण, श्राद्ध, पिण्डदान, दान-धर्म आदि ही किए जा सकते हैं। अन्य किसी प्रकार के शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। सारा फोकस पितरों पर ही रखना चाहिए।


- भारतीय धर्म-दर्शन, आध्यात्म और ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा ग्रह अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। सूर्यदेवता आत्मा के और चंद्रमा मन के कारक होते हैं।


- अमावस्या तिथि को पृथ्वी का संपूर्ण भू-भाग चंद्रमा के प्रकाश से अछूता रहता है और सभी मनुष्यों की मनोस्थिति और मानसिक क्रियात्मकता भी अत्यधिक कमजोर रहती है। कोई भी मनुष्य अपनी कमजोर मानसिकता के साथ किसी भी प्रकार का कार्य सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न नहीं कर सकता।


- वैशाख की अमावस्या को वट वृक्ष की पूजा फलदायी होती है। जेठ की अमावस्या को वट सावित्री पूजा, श्रावण की अमावस्या को शिव की पूजा, अश्वनी में पितृ की पूजा विशेष रूप से की जाती है। सभी अमावस्याओं की पितृ पूजा तो आवश्यक ही होती है।


- अमावस्या के दिन प्रकाश जरूरी है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है और देवी लक्ष्मी जी का अन्य देवताओं के साथ पूजन किया जाता है।


अमावस्या के उपाय
- अमावस्या के दिन आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर तालाब में मछलियों को खिलाएं। इससे आपको पुण्य मिलेगा और घर में धन का आगमन होगा। यह काम आप घर के बच्चे से करवाएंगे तो और भी फलित सिद्ध होगा।


- अमावस्या के दिन सुबह समय पर उठकर, स्नानादि करके हनुमान जी का पाठ कर उन्हें लड्डू का भोग लगाएं। यदि पाठ ना करें तो सीता राम सीता राम का जप भी कर सकते हैं।


- अमावस्या के दिन शनि देव के लिए तेल का दान करें।


- यदि संभव हो तो इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करें या फिर गंगा जल से स्नान करने का भी महत्व है।


- अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष का पूजन करना अति उत्तम होता है।


- नजर दोष से परेशान हो तो अमावस्या के दिन अपने घर के दरवाजे के ऊपर काले घोड़े की नाल को स्थापित करें। ध्यान रहे कि उसका मुंह ऊपर की ओर खुला रखें।


- अमावस्या को खीर का दान भी करना चाहिए। खीर का दान का अर्थ केवल शकुन करना नहीं है बल्कि भरपेट खीर खिलाएं ताकि आशीर्वाद प्राप्त हो और पितृ प्रसन्न हों।