हरिद्वार. श्राद्ध यानि पितरों को श्रद्धा से किया गया दान. वैसे श्राद्ध को मुक्ति का मार्ग भी माना जाता है और पितृ पक्ष के दौरान किये जाने वाले श्राद्ध का विशेष फल मिलता है. पितृ पक्ष का श्राद्ध सभी मृत पूर्वजों के लिए किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में सभी पितृ यमलोक से पृथ्वी लोक पर आ जाते हैं. इसीलिए श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है. हरिद्वार मुक्ति का द्वार है. हरिद्वार में हर की पौड़ी को सावंत घाट नारायणी शिला और कनखल में पिंडदान और अपने पितरों का श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है. कोरोना महामारी की वजह से इस बार श्राद्ध में भारी संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार आकर अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण नहीं कर पाएंगे. इसे देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा भी सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं और साथ ही नारायणी शिला कुशाघाट और हर की पौड़ी पर पुलिस प्रशासन द्वारा निर्देशित किया गया है कि भारत सरकार की गाइडलइन के अनुसार ही श्रद्धालुओं को कर्मकांड कराया जाए. तीर्थ पुरोहित समाज द्वारा भी श्रद्धालुओं से अपील की गई है की भारी संख्या में हरिद्वार ना आकर अपने अपने घरों में ही अपने पितरों पर श्राद्ध करें और अगर हरिद्वार आना है तो परिवार का एक सदस्य आकर ही अपने पितरों के लिए दर्पण और पिंडदान करें.



गया से भी अधिक फल मिलता है यहां तर्पण से
बिहार के गया जी को सबसे बड़ा पितृ तीर्थ माना जाता है. गया में पितृ पक्ष के दिन पूर्ण गया जी करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल कर मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी के साथ ही हरि के द्वार हरिद्वार में कुशा घाट हरकी पौड़ी कनखल नारायणी शिला मंदिर की भी विशेष मान्यता है. नारायणी शिला मंदिर पर पिण्डदान और श्राद्ध कर्म करने से गया जी का पुण्य फल मिलता है. इसके अलावा हरिद्वार के इस मंदिर में श्राद्ध करने का अधिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि माना जाता है कि गया में श्राद्ध करने से तो मात्र पित्रों को मोक्ष मिलता है, मगर हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर में श्राद्ध करने से पित्रों को मोक्ष के साथ ही सुख-सम्पत्ति भी मिलती है. नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार जब गया सुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानि नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा तो भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानि मस्तक वाला हिस्सा श्री बद्रीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा, उनके ह्दय वाले कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में गिरे. जहां नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई यानि वही उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था. स्कंध पुराण के केदार खण्ड के अनुसार हरिद्वार में नारायण का साक्षात ह्दय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है, क्योंकि मां लक्ष्मी उनके ह्दय में निवास करती है इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व माना जाता है.



पृथ्वी लोक पर आते हैं पूर्वज
हरिद्वार तीर्थ पुरोहित प्रतीक मिश्र पूरी का कहना है कि श्रद्धा द्वारा किया गया अपने पितरों को नियमित कार्य को श्राद्ध कहा जाता है, अगर आप अपनी आंखों से दो आंसू भी अपने पितरों के निमित्त निकाल देते हैं तो पितृ उसी से ही त्रप्त हो जाते हैं. पित्रों के तर्पण और पिंड दान करने का हरिद्वार में विशेष स्थान है उसमे हरकी पैड़ी, कुशा घाट कनखल और नारायणी शिला इन स्थानों पर पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है, क्योंकि हरिद्वार हरि का द्वार है और हरिद्वार में भगवान विष्णु और महादेव दोनों ही निवास करते हैं. इसलिए हरिद्वार में किया गया अपने पितरों के लिए कोई भी कार्य किया जाए तो उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है और आपके पितृ जिस भी योनि में होते हैं वह तृप्त हो जाते हैं. अब 15 दिनों तक पितृ पितृलोक से धरती पर ही निवास करते हैं और अमावस्या के दिन वह पितृलोक के लिए वापसी चले जाते हैं जब पितृ खुश हो जाते हैं तो परिवार में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं रहती.


हरि का द्वार यानी हरिद्वार धर्मनगरी हरिद्वार में यदि लोग गंगा में डुबकी लगाकर जन्म-जन्मान्तरों के पाप धोने आते हैं तो हरिद्वार लोग अपने पित्रों की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष दिलाने की कामना लेकर भी आते हैं. हरिद्वार में गंगा जहां सबके पाप धो देती है तो वहीं वह मृतकों की आत्माओं को मोक्ष भी प्रदान करती है. हरिद्वार में आकर श्रद्धा पूर्वक अपने पित्रों का पिंडदान व गंगा जल से तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिल जाता है अपने पितरों का तर्पण और पिंड दान करने आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि हरिद्वार की नारायणी जिला मंदिर में पिंडदान और तर्पण करने से पित्रों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां पिंड दान करने से मन को शांति मिलती है और परिवार में सुख शांति रहती है. श्राद्ध पक्ष में श्रद्धालु यहां आकर अपने पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं.


गाइड लाइन का करना होगा पालन
वहीं इस बार कोरोना वायरस की वजह से श्रद्धालु बड़ी संख्या में हरिद्वार अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान नहीं कर सकेंगे और जो भी श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने आएगा उसको भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार ही कर्मकांड कराने होंगे. नारायणी शिला मंदिर के पुजारी मनोज त्रिपाठी का कहना है कि इस बार कोरोना महामारी होने की वजह से श्रद्धालुओं की संख्या में कमी रहेगी हम श्रद्धालुओं से अपील भी करते हैं कि श्रद्धालु कम संख्या में हरिद्वार आए और अगर जरूरत पड़ती भी है हरिद्वार आने की तो परिवार का एक व्यक्ति ही हरिद्वार आकर अपने पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण करें हमारे द्वारा पितृ विसर्जन वाले दिन नारायणी शिला पर जो मेला लगता है उसको भी स्थगित कर दिया है. उस दिन नारायणी शिला मंदिर बंद रहेगा. श्रद्धालु उससे पहले ही नारायणी शिला मंदिर में दर्शन कर सकेंगे. नारायणी शिला मंदिर आने वाले सभी श्रद्धालु मास्क लगाकर ही प्रवेश कर सकेंगे गेट पर ही उनका चेकअप किया जाएगा और साथ ही सैनिटाइज की व्यवस्था भी की गई है. श्रद्धालु अपने घर पर ही अपने पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करें, सूर्य को अर्ग दें और गाय को भोजन कराएं अगर ब्राह्मण भोजन के लिए नहीं आ पाते हैं तो श्रद्धा भाव से ही श्राद्ध करें उससे ही पितृ तृप्त हो जाएंगे.


श्राद्ध पक्ष में भारी संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार आकर अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान कर आते हैं. कोरोना वायरस की वजह से श्रद्धालुओं की सुरक्षा को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. हरिद्वार सीओ सिटी पूर्णिमा गर्ग का कहना है कि भारत सरकार की गाइडलइन के अनुसार ही सोशल डिस्टेंस का पूरा पालन किया जाएगा और भारी संख्या में श्रद्धालुओं को आने नहीं दिया जाएगा. जो भी कर्मकांड कराने आएगा उसे मास्क लगाना अनिवार्य होगा. इसको लेकर हमारे सभी धार्मिक स्थानों पर मंदिर के प्रबंधक से वार्ता की गई है और उनको निर्देशित किया गया है कि कोरोना महामारी के वक्त किसी भी प्रकार का पूजन भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार ही किया जाए.


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