Independence Day 2021:  लगभग 75 साल से मेरठ का एक परिवार राष्ट्र की एक धरोहर को संभाले हुए है. मेरठ के हस्तिनापुर के गुरु नागर के परिवार के पास 14 फीट चौड़ा और 9 फीट लंबा एक ऐसा तिरंगा है जिसको 23 नवंबर 1946 में कांग्रेस के एक अधिवेशन में मेरठ के विक्टोरिया पार्क में फहराया गया था. इस ऐतिहासिक झंडे से देश के चंद महत्वपूर्ण लोगों की यादें भी जुड़ी हुई हैं. 


झंडे का ऐतिहासिक महत्व


द्वितीय विश्व युद्ध में आजाद हिंद फौज के मलाया डिवीजन के कमांडर रहे स्वर्गीय कर्नल गणपत राम नगर के परिवार के लिए यह झंडा किसी अमूल्य धरोहर से कम नहीं है. गणपत राम नागर के पोते गुरु नागर बताते हैं कि, आजादी से पहले विक्टोरिया पार्क में आजादी से पहले के कांग्रेस के आखिरी अधिवेशन में इस तिरंगे को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आचार्य जेबी कृपलानी के हाथों फहराया गया था. झंडारोहण के समय गणपत राम नागर भी वहीं मौजूद थे. गुरु नागर ने बताया कि, अधिवेशन के बाद खुद जवाहरलाल नेहरू ने इस झंडे को एक धरोहर के रूप में गणपत राम नागर को सौंप दिया था, जिसके बाद गणपत राम ने यह झंडा अपने बेटे सूरज नाथ नागर को सौंप दिया था. सूरज नाथ नागर के बाद अभी ये जिम्मेदारी सूरज नाथ के जुड़वा बेटे गुरु नागर और देव नागर संभाले हुए हैं. गणपत राम नागर की तीसरी पीढ़ी इस झंडे को एक धरोहर की तरह संभाले हुए है. गुरु नागर ने बताया कि, यह वही झंडा है जिसके तले आजादी की लड़ाई को लड़ा गया था. अब इसे धरोहर के रूप में परिवार संभाले हुए है.


75 साल से है उनके परिवार के पास 


गुरु नागर ने बताया कि लगभग 75 साल से यह तिरंगा उनके परिवार के पास चला आ रहा है. इस दौरान कई राजनैतिक पार्टियों से जुड़े उनके पास इस झंडे को मांगने के लिए आये लेकिन उन्होंने यह झंडा किसी को भी नहीं दिया, क्योंकि वह जानते थे कि अगर यह झंडा किसी और को दे दिया जाता तो वो शायद इसे इतना संभाल कर नहीं रख पाता, लेकिन समय के थपेड़ों से यह झंडा भी काफी कमजोर हो गया है. इसकी जीर्ण हालत अब इस परिवार की चिंता का सबब बन गया है. कई लोगों ने सलाह दी कि इस झंडे को अब म्यूजियम में रखवा दिया जाए वहां यह ज्यादा सुरक्षित रहेगा. इस पर परिवार का कहना है कि अगर पूरा परिवार एक राय होगा तो वो इसे म्यूजियम में रखवा सकते हैं. लेकिन परिवार के सभी सदस्यों की सहमति नहीं हुई तो यह झंडा आगे भी उन्हीं के पास रहेगा. फिलहाल गुरु नागर अपनी पत्नी अंजू नागर के साथ हस्तिनापुर में अपनी मां की देखभाल करते हैं, जबकि गुरु नागर के जुड़वा छोटे भाई देव नागर मेरठ के एक कॉलेज में पढ़ाते हैं, गुरु नागर का एक बेटा है जो नोएडा में एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता है. गुरु नागर को उम्मीद है कि उनके बाद उनका बेटा इस धरोहर को संभालकर रखेगा.


गणपत राम नागर का परिचय 


गणपत राम नागर के बारे में परिजनों ने बताया कि, गणपत राम नागर का जन्म 16 अगस्त 1905 को मेरठ में हुआ था. अपनी स्नातक तक कि पढ़ाई उन्होंने मेरठ से ही की. उनकी मेहनत और ऊर्जा को देखकर मेरठ कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल कर्नल ओडोनल ने नागर को पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया था. जहां उन्होंने दो साल का सैनिक प्रशिक्षण भी लिया, जिसके बाद ब्रिटिश आर्मी ने उन्हें किंग कमीशन अफसर बना दिया था, लेकिन 1939 में सिंगापुर पर अंग्रेजो की बर्बरता को देखा तो उन्होंने बगावत कर दी. अंग्रेज सरकार ने उन्हें कैद कर लिया. नागर जब रिहा हुए तो नेताजी सुभाष चंद बोस की आज़ाद हिंद फौज में भर्ती हो गए. नेताजी की फौज में उन्हें मेजर जनरल की पोस्ट से नवाजा गया. गणपत राम नागर के बेटे सूरज नाथ नागर भी 1950 से 1975 तक कुमाऊ रेजिमेंट में कर्नल के पद पर रहे.


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