Independence Day 2022: जंग-ए-आजादी को लेकर जब-जब स्वतंत्रता के दीवानों का जिक्र होगा, तब-तब यूपी (UP) के हापुड़ (Hapur) के उन चार अमर शहीदों का भी नाम लिया जाएगा, जिन्होंने आजादी की वेदी पर हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दी थी. 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) की घोषणा के बाद अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस (Congress) के सभी वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. गिरफ्तारी से देश में अनेक स्थानों पर हड़तालों और प्रदर्शनों का आयोजन होने लगा था.


इसी कड़ी में 9 अगस्त 1942 को हापुड़ में लाला बख्तावर लाल, सरयू प्रसाद, बाबू लक्ष्मी नारायण की गिरफ्तारी से यहां की जनता में आक्रोश फैल गया. नगर में हड़ताल हुई और सभी शिक्षण संस्थान को बंद रखने का ऐलान कर दिया गया. 10 अगस्त को जनता ने टाउन हॉल पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया. पुलिस को इसकी भनक लगते ही निषेधाज्ञा लागू कर दी गई. 11 अगस्त 1942 की सुबह लाला परमानंद, लाला अमोलक चंद , रतन लाल शर्मा, बाबू मुरारी लाल तबले वाले आदि नेताओं को अंग्रेज सरकार ने जेल भेज दिया गया.


लगे थे 'जेल के फाटक तोड़ दो, हमारे नेता छोड़ दो' नारे


इस पर आजादी के मतवालों ने 'जेल के फाटक तोड़ दो, हमारे नेता छोड़ दो' के नारे लगाते हुए जुलूस निकाला. कैलाश चंद महेश, लाला शादी राम जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे. जैसे ही जुलूस अतरपुरा चौपला पर पहुंचा तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. इसमें कैलाश चंद महेश और लाला शादी राम गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस पर भी जुलूस के न रुकने पर पुलिस ने गोलियां चला दी. फायरिंग में पंडित अंगनलाल शर्मा, मांगे लाल वैश्य, रामस्वरुप जाटव, गिरधारी लाल ठठेरे शहीद हो गए थे, जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए.


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लाला सेवाराम ने नहीं गिरने दिया था तिरंगे को नीचे


वहीं गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी लाला सेवाराम ने तिरंगे को नीचे नहीं गिरने दिया था. आजादी के बाद नगर के अतरपुरा चौपला पर शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया और शहीदों को श्रद्धांजलि दी. इस शहीद स्मारक पर आज भी उस समय अंग्रेजी सरकार द्वारा बरसायी गई गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं. तब से हर साल 11 अगस्त को इस स्मारक पर दीप प्रज्वलित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है, लेकिन इतना सब होने के बाद आज भी शहीद स्मारक बदहाली का शिकार है.


अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है शहीद स्मारक


हापुड़ नगर के प्रमुख चौराहा अतरपुरा चौराहा पर शहीदों की याद में बना शहीद स्मारक अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. स्मारक के आस-पास ठेले वालों का जमघट लगा रहता है. कुछ लोग यहां कूड़ा भी फेंक देते हैं. 11 अगस्त को ही स्मारक की सुध-बुध ली जाती है. पालिका के अफसर भी इस ओर गंभीर नहीं हैं. पुलिस की गोलियों के निशान आज भी पुलिस चौकी की दीवार पर देखा जा सकता है, लेकिन वर्तमान समय में इन गोलियों के निशान को अतिक्रमणकर्ता द्वारा घेरकर अपनी दुकान लगा दी गई है. कई बार हापुड़ की डीएम मेधा रूपम से शिकायत की गई, लेकिन लेकिन अभी तक अतिक्रमणकर्ता को हटाया नहीं जा सका है.


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