Independence Day 2024: आज देश को आजाद हुए 77 वर्ष हो चुके हैं लेकिन देश की आजादी में न जाने कितनों ने अपनी शहादत दी. कानपुर देहात जिले का इतिहास देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीरों से भरा पड़ा है. उन्हीं में से एक नाम राजा दरियाव चंद्र का था, जिनके नाम से अंग्रेज कांप उठते थे. राजा दरियाव चंद्र ने अपने प्राणों की आहुति देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़कर दी थी. देश की आजादी की कहानी में एक से बढ़कर एक क्रांतिकारियों का नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है, उसमे से एक नाम कानपुर देहात के राजा दरियाव चंद्र का था जो रानी लक्ष्मीबाई के खास माने जाते थे.


कानपुर देहात का वो नाम जिसके नाम से अंग्रेज कांप जाते थे, अंग्रेजी हुकूमत को कमजोर करने के लिए इन्होंने ऐसे ऐसे प्रयास किए जिसे अंग्रेज आर्थिक कमजोर हो गए थे. जिसके बाद अंग्रेजों ने रातों-रात इस राजा को छल से मारकर नीम के पेड़ से लटका दिया था. 1857 की क्रांति के दौरान राजा दरियाव ने देश की सेवा और देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचने के लिए अपना राजपाट तक छोड़ दिया था.


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अंग्रेजों ने की थी छल पूर्वक हत्या
राजा दरियाव ने 1875 में रानी लक्ष्मी बाई के संपर्क के होकर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, कानपुर देहात के रसूलाबाद क्षेत्र में अंग्रेजी हुकूम का खजाना भी लूटा था. इसी दौरान कई अंग्रेजों को काल के गाल में भी राजा ने समा दिया था लेकिन उसके बाद अंग्रेजों ने छल पूर्वक उनकी हत्या करवाकर नीम के पेड़ पर लटकवा दिया था. इतिहासकारों की मानें तो राजा दरियाव चंद्र सूर्य चंद्र के मृत्यु के बाद राजा बने थे.


उन्होंने नारखुर्द को ही अपनी राजधानी बनाया गया था लेकिन अंग्रेजी हुकूमत से मोर्चा लेने वाले राजा दरियाव को अंग्रेजों ने युद्ध के दौरान पकड़ लिया और उन्हें मारकर फांसी के फंदे से एक नीम के पेट पर लटका दिया. अंग्रजों की क्रूरता यहीं नहीं समाप्त हुई अंग्रेजों ने उनके शव को तोप के आगे बांधकर तोप के गोले से उड़ा दिया था. देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले राजा दरियाव का जिक्र और उनकी याद आज भी कानपुर देहात में बनी हुई है.