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फांसी इमली आजादी के दीवानों के बलिदान का है गवाह, अब बदहाली का है शिकार

Prayagraj Memorial Fansi Imali: इतिहास के पन्नों में दर्ज दस्तावेजों के मुताबिक अंग्रेजों ने यहां लगे इमली के पेड़ पर सौ से ज्यादा क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था.

UP News: देश एक तरफ स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ मना रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ मुल्क की आजादी के लिए अपनी जान गंवाने वाले शहीदों से जुड़े स्मारक इस राष्ट्रीय पर्व के मौके पर भी उपेक्षित और बदहाल हैं. इन्हीं बदहाल स्मारकों में एक है संगम नगरी प्रयागराज का फांसी इमली.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यहां लगे इमली के पेड़ पर अंग्रेजों ने सौ से ज्यादा क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था. पहले यहां भव्य स्मारक था, लेकिन इन दिनों यह जगह झाड़ी में तब्दील है. न बोर्ड नजर आता है और न ही पेड़. इस स्मारक स्थल पर गंदगी का अम्बार रहता है तो साथ ही बाहर की जगह पर फुटपाथ के दुकानदारों का कब्जा रहता है. सरकारी अमले की उपेक्षा का आलम यह है कि छोटे से गेट में झुके बिना स्मारक स्थल के अंदर दाखिल नहीं हुआ जा सकता. प्रयागराज के लोगों को इसका मलाल भी है, लोगों का कहना है कि अगर इस स्मारक स्थल को ठीक कर दिया जाए तो न सिर्फ शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी, बल्कि युवा पीढ़ी को आजादी के संघर्ष के बारे में जानकारी मिलेगी और उनमें देशप्रेम की भावना और ज्यादा जागृत होगी.

फांसी इमली स्मारक स्थल प्रयागराज के सुलेम सरांय इलाके में दिल्ली-हावड़ा नेशनल हाइवे नंबर टू के बगल में स्थित है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जो क्रांतिकारी बगावत का बिगुल बजाते हुए अंग्रेजों के हत्थे चढ़ जाता था, उसे यहां तब स्थित इमली के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी जाती थी. इतिहास के पन्नों में दर्ज दस्तावेजों के मुताबिक अंग्रेजों ने यहां लगे इमली के पेड़ पर सौ से ज्यादा क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया था. इसी वजह से अंग्रेजों के शासन काल में ही इस जगह को फांसी इमली कहा जाने लगा था.

पूर्व पीएम नेहरू भी यहां आए थे

देश की आजादी के बाद यहां लगे पेड़ को शहीद स्मारक घोषित किया गया था, यहां कई क्रांतिकारियों की मूर्तियां लगाई गई थीं. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू खुद एक बार यहां आए थे, लेकिन वक्त के साथ यह पेड़ और स्मारक स्थल दोनों ही गुमनामी में खो गए. कुछ सालों पहले तक तो यहां बहुत बुरा हाल था. इन दिनों यह जगह फुटपाथ की रेलिंग के अंदर आ गई है, लेकिन इसकी बदहाली अब भी खत्म नहीं हो सकी है. पुराने पेड़ की जगह इमली का ही नया पेड़ पैदा हो गया है. स्मारक स्थल के अंदर जाने के लिए बेहद छोटा गेट है, जहां झुककर ही दाखिल हुआ जा सकता है. चारों तरफ इतनी झाड़ियां हैं कि स्मारक स्थल का बोर्ड तक साफ़ नज़र नहीं आता. जिस जगह पेड़ लगा है, वहां गंदगी का अम्बार है और मुख्य स्थल को लोहे के तारों और रस्सियों से बैरीकेड कर दिया गया है. यानी कोई भी वहां तक जा भी नहीं सकता.

 स्मारक स्थल के बाहर बहता है गंदा पानी 

हाईकोर्ट के वकील राम जी सिंह व कुछ अन्य लोगों ने निजी पैसे से यहां भारत माता के साथ ही चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह की मूर्तियां लगा दी हैं. नई पीढ़ी को बदहाली और नजर अंदाजी के चलते इस जगह के महत्व का अंदाजा ही नहीं है. स्मारक स्थल के बाहर गंदा पानी बहता है. यहां फुटपाथ के दुकानदार सब्जियां व दूसरे सामान बेचते हैं. यहां सेवाभाव करने वाले राम जी सिंह के मुताबिक दर्जनों बार गुहार लगाने के बावजूद सरकारी अमला कोई ध्यान नहीं देता है. सोशल वर्कर हसीब अहमद के मुताबिक यह शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है. जिम्मेदार लोग आश्वासन और वादों की घुट्टी तो पिलाते हैं, लेकिन उसे हकीकत में अमल में नहीं ला पाते हैं. 

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