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'सियासी रोटी न सेंकी जाए तो...', महिला सुरक्षा के मुद्दे पर बोले अखिलेश यादव

Independence Day 2024 Special: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सपा चीफ अखिलेश यादव ने महिलाओं की स्वतंत्रता और सुरक्षा के हनन के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को सबसे अधिक तेजी से कार्य करने की मांग की है.

Akhilesh Yadav On Women Sefty: देश में आज आजादी का उत्सव मनाया जा रहा है. इस अवसर पर देशवासी स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहे हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं रहे हैं. आजादी के अवसर पर सपा चीफ और कन्नौज से सांसद अखिलश यादव ने लोगों को बधाई देने के बाद नारी की स्वतंत्रता और सुरक्षा का जिक्र करते हुए सरकार पर हमला बोला. उन्होंने स्वतंत्रता के मौके पर कहा कि बड़े बड़े दावों के बीच भी महिलाओं के लिए भयमुक्त स्वतंत्र वातावरण नहीं बन पा रहा है.

'बड़े-बड़े दावों के बीच भी भयमुक्त माहौल नहीं'

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सपा चीफ अखिलश यादव ने एक्स पर लिखा, ''स्वतंत्रता दिवस पर एक बात ‘आधी आबादी’ की स्वतंत्रता की: नारी, महिला, स्त्री या बहन, बेटी, बहू चाहे जो कह लें, इन सबमें एक बात समान है कि बड़े-बड़े दावों के बीच भी इनके लिए भयमुक्त स्वतंत्र वातावरण नहीं बन पा रहा है. सवाल सिर्फ ये नहीं है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है, सवाल ये भी है कि ये कब और कैसे मुमकिन होगा."

'व्यक्तिगत सोच से करनी होगी शुरुआत'

उन्होंने आगे लिखा, "अक्सर जिम्मेदारी तय करने की बात लोगों को बीती घटना तक ही सीमित कर देती है. जिसमें घटना की बात तो होती है पर उसकी मूल वजहों पर बात नहीं होती. इसलिए बात समस्या में उलझकर रह जाती है, सार्थक समाधान की बात नहीं कर पाती है. इसी वजह से समय की मांग ये है कि प्रश्न में वर्तमान की चिंता के साथ-साथ सच्चे समाधान की बात आज से ही शुरू होनी चाहिए. इसके लिए व्यक्तिगत सोच से शुरुआत करनी पड़ेगी, जो परिवार, समाज और फिर देश के स्तर पर बदलाव लाएगी."

'बड़ी मानसिक क्रांति की जरूरत'

सपा अध्यक्ष ने कहा, "नारी की गरिमा को किसी भी प्रकार जो ठेस पहुंचती है फिर वह चाहे मानसिक हो या शारीरिक; उसके पीछे सदैव कोई नकारात्मक सोच होती है. जो कभी किसी को कमतर मानने की सोच हो सकती है या हीन भावना से देखने की. इसलिए सुधार के लिए एक बड़ी मानसिक क्रांति की जरूरत है. जिसकी शुरुआत शिक्षा ही से करनी पड़ेगी, जो लड़के-लड़की के भेद को मिटाए, बराबरी का भाव लाए, इसके लिए चाहे नयी कहानियां या नयी कविताएं, नये सबक या नये पाठ लिखने पड़ें. ये बीज-प्रयास करने ही पड़ेंगे."

सरकारों को इसके लिए आगे आना होगा- अखिलेश

इसके साथ ही अखिलेश यादव ने लिखा, "इसके लिए नारी पर एकतरफा पाबंदी की बात भी नारी-उत्पीड़न का ही एक और रूप है. शर्तों के नाम पर जीवन की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती है. शिक्षण संस्थानों से लेकर खुले और कार्य स्थलों तक, हर जगह नारी-सुरक्षा के लिए नयी चेतना जगानी होगी, सार्थक व्यवस्थाएं करनी होंगी. सरकारों को इसके लिए आगे आना होगा. हर तरफ सुरक्षा व्यवस्था को चौकन्ना करना होगा."

'तब कोई गुनाहगार ये नहीं सोचेगा कि...'

सपा अध्यक्ष ने कहा, "यदि संकीर्ण राजनीति का हस्तक्षेप न हो और ऐसी घटनाओं का राजनीतिकरण करके सियासी रोटी न सेंकी जाए तो आधी समस्या खुद-ब-खुद सुलझ जाएगी क्योंकि तब कोई गुनाहगार ये नहीं सोचेगा कि वो कुछ गलत करने के बाद सत्ता का संरक्षण पाकर बच पाएगा. नारी-अपराध के मुजरिम को जब ये पता होगा कि उसको गले में हार डालकर बचानेवाला कोई नहीं है और उसे सख्त सजा मिलेगी तो अपराधियों का मनोबल चूर-चूर हो जाएगा. नारी-अपराध की घटनाओं पर विचारधारा के नाम पर दूर से मुंह मोड़कर, अंधे बने रहना और ऐसे कुकृत्यों पर सुविधाजनक चुप्पी साध लेना अब और नहीं चलनेवाला."

'नारी को सिर्फ़ नारी मानकर देखना होगा'

अखिलेश यादव ने कहा कि महिला-अपराधों के मामलों में नारी को सिर्फ़ नारी मानकर देखना होगा. पीड़िता की पारिवारिक, सामाजिक, वैचारिक, आर्थिक, सामुदायिक पृष्ठभूमि देखकर जो लोग अपनी प्रतिक्रिया दें, उन्हें पक्षपाती मानना चाहिए. ऐसे में वो भी कहीं-न-कहीं उस अपराध के आंशिक हिस्सेदार बन जाते हैं क्योंकि इससे ये साबित होता है कि उनकी संवेदना नारी की गरिमा, स्वतंत्रता, सुरक्षा, संरक्षा जैसी मूल भावनाओं से नहीं जुड़ी है बल्कि वो अपने पक्ष तक सीमित है. ऐसे लोग नारी के विरुद्ध हो रहे अपराधों में सीधे नहीं मगर मानसिक हिंसा के गुनाहगार ज़रूर होते हैं.

'न्याय में देरी ताकतवर गुनाहगारों को और भी ताकत देती है'

उन्होंने आगे कहा कि नारी की स्वतंत्रता और सुरक्षा के हनन के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को सबसे अधिक तीव्रता से कार्य करने की मांग अब आवश्यकता नहीं, अपरिहार्यता बन गयी है. न्याय में देरी ताकतवर गुनाहगारों को और भी ताकत देती है. सबूत से लेकर गवाह तक बदलने के मौके देती है. साथ ही तरह-तरह के दबावों को जन्म देती है. न्यायालय की देखरेख में पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा के लिए नये सुरक्षा-प्रबंध करने होंगे, तभी सही मायनों में नारी अपनी सामर्थ्य दिखा पाएगी. परिवार, समाज और देश-दुनिया के विकास में अपनी भूमिका निभा पाएगी. सच्चा स्वतंत्रता दिवस मना पाएगी.''

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