Independence Day Shaheed Balkaran Singh: देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद का परिवार आज 22 साल बाद भी सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर है. कारगिल युद्ध के दौरान खुद की कुर्बानी देने वाले शहीद सूबेदार बलकरन सिंह के परिजनों को सरकार ने तमाम सुख सविधाओं को मुहैया करवाने का वादा किया था. लेकिन, वास्तविक हकीकत कुछ और ही दिखती है. आज भी शहीद के घर तक जाने के लिए कोई मार्ग नहीं है जिसकी वजह से परिवार तमाम तकलीफों का सामना कर रहा है. 


मिला है तो सिर्फ आश्वासन
व्हीलचेयर पर बैठे शहीद के पुत्र बताते हैं कि 22 वर्ष में केवल 2 बार अधिकारी उनके घर का हालचाल जानने आए हैं, उसके बाद आज तक कोई नहीं आया. शहीद के नाम पर बनने वाली सड़क का भी कोई अता पता नहीं है. अब भी बरसात के दिनों में इस गांव के लोग घुटने भर पानी में होकर मुख्य रोड पर आते-जाते हैं. हर वर्ष विजय दिवस पर शहीद परिवार को प्रशासन की ओर से आश्वासनों की घुट्टियों के सिवा और कुछ नहीं मिला है.


दुश्मनों को दिया मुंहतोड़ जवाब
भारतीय सेना के जांबाज सैनिक सूबेदार बलकरन सिंह कश्मीर के बटालिक इलाके में तैनात थे. कारगिल में वर्ष 1999 में हुए संघर्ष के दौरान पाकिस्तान के नापाक इरादों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने मोर्चा संभाला था. इस मोर्चे पर डटे बलकरन सिंह अकेले ही लोहा लेते हुए अनेक दुश्मन सैनिकों को ढेर करते हुए सामने से चलने वाली गोलियों की परवाह किए बिना दुश्मनों को पछाड़ते हुए आगे बढ़ते रहे. शत्रु सेना की ओर से की जा रही भीषण गोलीबारी के बावजूद भी उनका उत्साह नहीं डिगा. दुश्मनों से लड़ते हुए भारत माता का ये सपूत 28 मई 1999 को वीरगति को प्राप्त हुआ.


1971 में सेना में भर्ती हुए थे बलकरन सिंह
हुजूरपुर ब्लॉक के त्रिकोलिया गांव में वर्ष 1951 में जन्मे बलकरन सिंह सन 1971 में 23 राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. बचपन से ही वो राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत थे. जिससे उन्होंने सेना में भर्ती होकर मातृभूमि की रक्षा करने का संकल्प लिया. सेना में भर्ती होने के बाद उनकी राष्ट्रभक्ति और बलवती होती गई. इस बीच देश के विभिन्न प्रांतों में अपनी तैनाती के दौरान दृढ़ निष्ठा से अपने सैनिक कर्तव्य का निर्वहन करते रहे.


सम्पर्क मार्ग तक नहीं बना
कारगिल में बलकरन सिंह की शहादत के बाद सरकार की ओर से अनेक घोषणाएं की गई थी. जिसमें करनैलगंज-बहराइच रोड पर खैरी चौराहे से उनके गांव तक उनके नाम से सम्पर्क मार्ग, उनके नाम से स्कूल व अस्पताल बनाने का वादा भी किया गया था. स्कूल और अस्पताल की बात तो दूर इन 21 सालों में सम्पर्क मार्ग तक नहीं बना. अभी भी शहीद का परिवार और गांव के लोग बरसात में चकरोड पर पानी भर जाने के कारण पगडंडी के रास्ते से ब्लॉक व जिला मुख्यालय जाने को मजबूर हैं.



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