Uttarakhand News: देश की आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. आज आजादी की 78 वी वर्षगांठ है, 15 अगस्त 1974 को आज ही के दिन देश आजाद हुआ था. इस आजादी के लिए देश के लाखों मतवालों ने अपनी जान न्यौछावर कर दी थी. इन्हीं में से उत्तराखंड के कुछ स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों का बलिदान दिया था.
उत्तराखंड, एक ऐसा क्षेत्र जिसने देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इस क्षेत्र ने कई ऐसे क्रांतिकारी पैदा किए जिन्होंने अपने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. उन्हीं नामों में से एक नाम पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी का शामिल है. पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे. उन्होंने अपने राजनीतिक ज्ञान और कौशल से देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने अल्मोड़ा जेल में कई साल बिताए और देश की आजादी के लिए संघर्ष किया.
पंडित बद्री दत्त पांडे जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह में भाग लेकर देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया. उन्होंने अल्मोड़ा जेल में कई साल बिताए और देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. देव सुमन जी और लाला जगत नारायण मावी जी दोनों महान स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लेकर देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया. उन्होंने अल्मोड़ा जेल में कई साल बिताए और देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. रामचंद्र गहतोड़ी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लेकर देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया. उन्होंने अल्मोड़ा जेल में कई साल बिताए और देश की आजादी के लिए संघर्ष किया.
इस वजह से बना पेशावर कांड
वीर चंद्र गड़वाली पेशावर में स्वतंत्रता संग्राम की लौ पूरे जोरों पर थी और अंग्रेजी जनरल ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए 23 अप्रैल 1930 को गढ़वाली जी और उनके कुछ गढ़वाली साथियों को पेशावर भेजा, जहां उनके तत्कालीन कमांडर ने उन्हें आंदोलनकारियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया परंतु चंद्र सिंह जी ने अपने निहत्थे देशवासियों पर गोली चलाने से साफ इंकार कर दिया जिसे आज के इतिहास में पेशावर कांड के नाम से जाना जाता है.
अंग्रेजो के हुक्म को न मानने की एवज में उनको और उनके साथियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई परंतु उनके मुकदमे की पैरवी करते हुए श्री मुकंदी लाल ने उनकी मृत्युदंड की सजा को 14 वर्ष कारावास की सजा में तब्दील करवाया अपनी सजा काटने के बाद 26 सितंबर 1941 को उन्हें आजाद कर दिया गया. इस दौरान गढ़वाल जाने में उन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद वह महात्मा गांधी जी के पास चले गए और भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने लगे.
पंडित रेवाधर पांडे और नयन सिंह बिष्ट, को घर में नजरबंद कर दिया गया था, ऐसे में आंदोलन का नेतृत्व राम सिंह आजाद और प्रताप सिंह बोरा के हाथों में आ गया था. सालम के क्रांतिकारी नौ अगस्त 1942 की रात नौगांव, में क्रांतिकारियों को पटवारी ने गिरफ्तार कर लिया,क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए जनता की पटवारियों से झड़प हो गई थी. इस बीच गोलीबारी में शेर सिंह घायल हो गए, इस घटना के बाद नाराज जनता ने जैंती में एक डाकखाने को आग के हवाले कर दिया था. इससे गुस्साए डिप्टी कलेक्टर ने हथियारों से लैस सिपाहियों की टुकड़ी सालम भेजी,सिपाहियों ने बंदूक की नोक पर आजादी के मतवालों पर जुर्म ढाए. 25 अगस्त 1942 को क्रांतिकारी जैंती तहसील के धामद्यो में एकत्रित हुए थे.
क्रांतिकारियों ने नहीं टेके अंग्रेजों के सामने घुटने
इसी बीच अंग्रेजी सेना मौके पर पहुंची और क्रांतिकारियों कई प्रलोभन दिए, लेकिन क्रांतिकारियों ने उनकी मांग ठुकराकर भारत माता का जयघोष करते हुए अंग्रेजी सेना पर पथराव कर दिया इस पर कमांडर ने सेना को गोली चलाने का आदेश दे दिया. सिपाहियों द्वारा की गई गोलीबारी में नर सिंह धानक मौके पर शहीद हो गए, जबकि दूसरे क्रांतिकारी टीका सिंह कन्याल ने अस्पताल में दम तोड़ दिया कई क्रांतिकारियों को जेलों में बंद कर दिया गया. अंग्रेजी सेना ने घरों में रखा सामान जला दिया कई लोगों की कुर्की कर दी गई लेकिन इस वक्त भी इन उत्तराखंडी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके जिसका नतीजा है कि आज हम आजादी की इस सुबह को देख पा रहे है.
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