Independence Day 2024: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पूरा देश क्रांतिकारियों को नमन कर रहा है. आज स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े अनेक संघर्षों को हर भारतवासी सुनना चाहता है. देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी भी स्वतंत्रता आंदोलन का महत्वपूर्ण केंद्र रही है. इस जनपद में ही अनेक ऐसे आंदोलन रहे हैं जिसने वृहद स्तर पर न केवल स्थानीय लोगों को बल्कि दूसरे राज्यों पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा था . 1942 के दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन ने बनारस के लोगों पर मानो स्वतंत्र भारत की तस्वीर को  पूरी तरह साफ कर दिया था .


काशी के क्रांतिकारी पर स्वतंत्र रूप से शोध कर रहे नित्यानंद राय 1942 के दौर के बारे में बताते हैं कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तरफ से अगस्त 1942 में शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन का वाराणसी पर गहरा प्रभाव पड़ा था. बापू के आह्वाहन पर मानो काशी वालों ने स्वतंत्र भारत के लिए अंग्रेजी हुकूमत के छाती पर चढ़कर ललकारना शुरू कर दिया था. BHU छात्रों ने इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.


काशी में भी घटा था चौरी चौरा कांड
वाराणसी के साथ-साथ आसपास के जनपद में भी वह जन-जन तक पहुंच कर अंग्रेजों के भारत छोड़ो आंदोलन का संदेश पहुंचाते थे. इसका प्रभाव इतना पड़ा था कि लोगों ने सरकारी दफ्तर, थाना, कार्यालय और ब्रिटिश अफसरों के ठिकानों पर 1942 अगस्त के दूसरे सप्ताह में ही तिरंगा फहराना शुरू कर दिया था. इसमें बिल्कुल भी संदेह नहीं कि उस दौर में लोगों ने मान लिया था कि अब हम आजादी के बिल्कुल दहलीज पर खड़े हैं और अंग्रेज हर हाल में भारत छोड़कर जाने वाले हैं. स्पष्ट रूप से कहना होगा की महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ था.


अधिवक्ता नित्यानंद राय बताते हैं कि गोरखपुर के चौरी चौरा कांड के तर्ज पर 16 अगस्त 1942 को  वाराणसी जनपद में धानापुर क्षेत्र में भी एक बड़ी घटना घटी थी, जब गुस्साई भीड़ ने धानापुर के एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया था. वर्तमान में धानापुरा क्षेत्र चंदौली जनपद में आता है. इसका नेतृत्व स्वतंत्रता सेनानी कांता प्रसाद विद्यार्थी ने किया था. आक्रोशित भीड़ ने न केवल पुलिस थाने को जला दिया था बल्कि वहां तैनात अंग्रेजी हुकूमत के तीन सिपाही और दरोगा को भी फाइलों और किताबों के बंडल पर रखकर जला दिया था.


क्रांतिकारीयों द्वारा लाशो को गंगा जी में प्रवाहित भी कर दिया गया. इस घटना ने क्षेत्र में अंग्रेजों की नींव हिलाकर रख दी थी. इसके बाद 18 अगस्त को ब्रिटिश हुकूमत की फौज गंगा मार्ग से आसपास के गांव में तकरीबन सैकड़ो लोगों को पकड़कर जेल भेज देती है. इस घटना का वाराणसी जनपद पर गहरा प्रभाव पड़ा था. इसमें दर्जनों लोगों को आजीवन कारावास और फांसी की भी सजा सुनाई गई थी.


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