नई दिल्ली, एबीपी गंगा। सियासत के अतीत की यादों का ये किस्सा गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा हुआ है। वर्तमान की अकबरपुर और पूर्व में बिल्हौर लोकसभा सीट पर हमेशा स्थानीय नेताओं का बोलबाला रहा। स्थानीय नेता ही यहां से चुनाव लड़ते और जीतते रहे, लेकिन जनता दल के गठन के दौरान एक वक्त ऐसा आया, जब बिल्हौर सीट से कोई बाहरी पहली बार चुनावी मैदान में लड़ने आया और जीता भी। ये शख्स कोई और नहीं बल्कि नेहरू-गांधी परिवार के ही सदस्य अरुण नेहरू थे।


अरुण नेहरू...गांधी परिवार के बेहद करीबी थे। वे इंदिरा गांधी के करीबी सदस्यों में से एक थे। वो इंदिरा गांधी ही थी, जिन्होंने अरुण नेहरू पर भरोसा कर, न सिर्फ उन्हें राजनीति में लेकर आईं बल्कि गांधी परिवार की विरासत कही जाने वाली रायबरेली सीट से कांग्रेस का प्रत्याशी भी बनाया।


दरअसल, इमरजेंसी के बाद 1980 में इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली और आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से चुनाव लड़ीं थीं। दोनों जगह उन्होंने जीत दर्ज की। जब एक सीट छोड़ने की बात आई, तो उन्होंने रायबरेली को मजबूत सीट देखते हुए उसे छोड़ दिया। यहां पर प्रत्याशी तलाशने के बारे में सोचा गया, तो इंदिरा के स्वीकृति से अरुण नेहरू का नाम आगे आया। अरुण नेहरू न सिर्फ यहां से जीते बल्कि पार्टी में उनका कद भी बड़ी तेजी से बढ़ा।


इंदिरा गांधी के निधन के बाद वे अरुण नेहरू ही थे, जिन्होंने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा। इससे वे राजीव के भी करीबी हो गए। जिसके बाद उन्हें आतंरिक सुरक्षा मंत्री भी बनाया गया। हालांकि, ये रिश्ता ज्यादा दिन चला नहीं। कई मुद्दों को लेकर उनका राजीव गांधी से विरोध हुआ और आखिरकार वीपी सिंह के साथ उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।


जब जनता दल का गठन हुआ, तो वीपी सिंह ने उन्हें बिल्हौर से प्रत्याशी बनाया। ये पहला मौका था जब कोई बाहरी प्रत्याशी यहां से चुनाव लड़ा। अपने बड़े कद के चलते वे यहां से जीत भी गए। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जगदीश अवस्थी को करीब डेढ लाख वोटों से पराजित किया। हालांकि इसके बाद वो कभी दोबारा इस सीट से नहीं लड़े।