मेरठ. कोरोनाकाल में स्कूल बंद चल रहे हैं और ऑनलाइन क्लासेज़ के माध्यम से ही बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. लेकिन उन बच्चों और अभिभावकों का क्या जो ये जानते ही नहीं ऑनलाइन पढ़ाई कौन सी बला होती है? ऐसे बच्चों के लिए कम से कम मेरठ में कार वाले मास्टरजी किसी वरदान से कम नहीं हैं.

चलती फिरती ज्ञान की पाठशाला

कारवाले मास्टर जी अपनी कार से रोज़ाना निकलते हैं और झुग्गी झोपड़ी के पास या किसी भी पेड़ की छांव में दो चार बच्चों की पाठशाला लगा देते हैं. मास्टरजी की कार चलती फिरती ज्ञान की पाठशाला है.

अंधेरा घना है लेकिन दिया जलाना कहां मना है. ये लाइनें मेरठ में एक कारवाले मास्टर जी पर बिलकुल सटीक बैठती है. आप सोच रहे होंगे कि हम मास्टर जी के नाम के आगे कारवाले मास्टर जी क्यों लिख रहे हैं. दरअसल ये नाम नन्हें मुन्हें बच्चों ने उन्हें दिया है.

नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं मास्टर जी

कोरोनाकाल में स्कूल बंद चल रहे हैं और ऑनलाइन क्लासेज़ का शोर चहुंओर सुनाई देता है. लेकिन उन बच्चों का क्या जो ऑनलाइन का अर्थ तक नहीं जानते. बच्चे तो बच्चे उनके अभिभावक न तो स्मार्ट फोन से परिचित हैं और न ही ऑनलाइन क्लासेज़ से. ऐसे बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं कार वाले मास्टर जी.

बैंक से रिटायर्ड हैं मास्टर जी

मेरठ के रहने वाले स्टेट बैंक में एजीएम पद से रिटायर हुए बी बी शर्मा जी कहीं भी किसी पेड़ की छांव में अपनी पाठशाला लगा देते हैं. कभी किसी झुग्गी झोपड़ी के पास अपनी कार से चले जाते हैं तो कभी किसी बस्ती में जाकर ज्ञान का उजियारा फैलाने की कोशिश करते हैं.

मास्टरजी का कहना है कि वो धन से तो नहीं लेकिन तन और मन से आखिरी सांस तक बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. क्योंकि ज्ञान का उजियारा फैलाने से उन्हें आत्मिक शांति मिलती है. बच्चे भी कार वाले मास्टर जी से पढ़कर ख़ुशी से फूले नहीं समाते हैं.

कई स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आईं

मास्टर जी को पढ़ाते देख कई स्वयं सेवी संस्थाएं भी बच्चों की मदद को आगे आ रही हैं. कभी कोई संस्था मास्टर साहब को किताबें भेंट करती है तो कभी बच्चों को पेन पेंसिल देती है. मास्टर साहब की कार भी चलती फिरती ज्ञान की पाठशाला है. वाकई में अगर ऐसा प्रयास दूसरे ज़िलों के लोग भी करें तो कोई भी बच्चा अशिक्षित नहीं रहेगा.

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