सिक्कों का रोचक इतिहास कुछ ऐसा रहा, पढ़ें दमड़ी से रुपयों तक का सफर
खरीदारी में रुपये पैसे का लेनदेन होता है. मौजूदा दौर में मुद्रा का रूप अलग है. यही नहीं, मुगल से लेकर अंग्रेजी शासन काल तक सिक्कों का ये सफर बेहद रोचक रहा है.
हरिद्वार: अगर आप पुरानी चीजे देखने और रखने के शौकीन है और अपनी सभ्यता से जुड़ी जानकारी जुटाना चाहते हैं, तो एबीपी गंगा आपको बताएगा सदियों की विरासत से जुड़ी कहानी. अपनी सभ्यता से जुड़ी तमाम चीजे देखी होंगी, लेकिन हम आपको सदियों की सभ्यता से जुड़े पुराने सिक्को की कहानी बताएंगे.
दमड़ी से रुपयों तक का सफर
पैसा हर किसी की जरूरत है और पैसे के बिना कुछ हो भी नहीं सकता, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हजारों साल पहले भारत में सिक्के कैसे होते थे. नही जानते, तो हम आपको बताते हैं. मुगलों के काल से अब तक के सिक्कों की कहानी. हम आपको बता रहे हैं, मुगलों के काल में भारत में दमड़ी चलती थी. दमड़ी पत्थर के आकार की होती थी जिस पर उर्दू में लिखा होता था. ये तांबे,चांदी की होती थी, जो धीरे धीरे ये बदल कर आना में आ गई. एक आना (ANNA), दो आना का चलन शुरू हुआ और फिर चलन हुआ पाई का, और अंग्रेजों के दौरान ये पैसे में बदल गया. 1 पैसा, 2 पैसा में बदल गया. बदलाव के साथ धीरे-धीरे आज हम रुपये का इस्तेमाल कर रहे हैं.
भारत में धातु के सिक्के सर्वप्रथम गौतमबुद्ध के समय में प्रचलन में आये. जिसका समय 500 ई० पू० के लगभग माना जाता है. बुद्ध के समय पाये गये सिक्के’ आहत सिक्के‘ कहलाये. इन सिक्कों पर पेड़, मछली, साँड़, हाथी, अर्द्धचंद्र आदि की आकृति बनी होती थी. ये सिक्के अधिकांशतः चाँदी के और कुछ ताँबे के बने होते थे. ठप्पा मार कर बनाये जाने के कारण इन सिक्कों को ‘आहत सिक्का’ कहा गया.
जब सोने के सिक्के जारी किये
भारत में सर्वप्रथम भारतीय यूनानियों ने सोने के सिक्के जारी किये. सोने के सिक्के सर्वप्रथम बड़े पैमाने पर कुषाण शासक कडफिसस द्वितीय द्वारा चलाये गये. गुप्तकाल में सर्वाधिक सोने के सिक्के जारी किये गये परन्तु इनकी शुद्धता पूर्वकालीन कुषाणों के सिक्के की तुलना में कम थी. गुप्तकालीन स्वर्ण सिक्के ‘दीनार’ कहे जाते थे.
सोने, चाँदी, ताँबा, पोटिन तथा काँसा द्वारा बने सर्वाधिक सिक्के मौर्योत्तर काल में जारी किये गये. 650 ई० से 1000 ई० के बीच सोने के सिक्के प्रचलन से बाहर हो गये. 9वीं सदी में प्रतिहार शासकों के कुछ सिक्के मिलते हैं. 7वीं सदी से 11 वीं सदी के मध्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, एवं गुजरात में ‘गधैया सिक्के‘ पाये गये. इन सिक्कों पर अग्निवेदिका का चित्रण है.
धातु के सिक्कें
द्वारका की प्राचीन नगरी में छेदयुक्त मुद्राएँ मिली हैं, जिनका काल लगभग पाँच हजार वर्ष से भी अधिक पुराना माना गया है. भारत में मौर्य वंश के बहुत पहले से ही धातु के सिक्कों का निर्माण शुरू हो चुका था. आधुनिक कार्बन के अनुसार ये धातु के सिक्के ५वीं शदी ईसापूर्व से भी पहले माने गए हैं. भारत में तुर्कों और मुगलों के शासन के समय विशेष परिवर्तन यह आया कि सिक्कों पर अरबी लिपि का प्रयोग किया जाने लगा. 19वीं शताब्दी में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में एक समान मुद्रा का प्रचलन किया.
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