देहरादून: उत्तराखंड में खिलाड़ियों को राज्य सरकार किस हद तक प्रोत्साहन देती है, इसकी बानगी देहरादून में देखने को मिली. जहां देहरादून की ही रहने वाली देश की पहली दिव्यांग निशानेबाज दिलराज कौर आर्थिक संकट से जूझ रही हैं, और इन दिनों गांधी पार्क के बाहर अपनी बूढ़ी मां के साथ नमकीन और बिस्किट बेचकर परिवार का पालन पोषण कर रही है.


अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम किया रोशन


इसे वक्त की मार ही कहेंगे कि, कभी पैरालम्पिक शूटिंग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रजत पदक जीतने वाली दिलजीत कौर इन दिनों आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं. खिलाड़ी के तौर पर दिलराज कौर का कोई छोटा नाम नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक रजत, राष्ट्रीय स्तर पर 24 स्वर्ण समेत कई पदक अपने नाम कर चुकी हैं, इतना ही नहीं वर्ल्ड पैरा स्पोर्ट्स में पहली सर्टिफाइड कोच, स्पोर्ट्स एजुकेटर जैसी कई उपलब्धियां उनके साथ जुड़ी हैं, लेकिन इन दिनों वक्त की ऐसी मार पड़ी कि ,सिर से बाप और भाई का सहारा भी भगवान ने छीन लिया, हालात इतने खराब हो गए हैं कि सरकार को आईना दिखाने के लिए गांधी पार्क के बाहर अपनी बूढ़ी मां के साथ नमकीन और बिस्किट बेचने को मजबूर है, जो कुछ पैसा बचत के रूप में था वह पिता की गंभीर बीमारी में खर्च हो गया, अब बूढ़ी मां के इलाज और अपने खर्चे के लिए दूसरा कोई चारा नहीं था, इसलिए गांधी पार्क के बहार नमकीन और बिस्किट ही बेचना शुरू कर दिया.


अंतरराष्टीय स्तर पर शूटिंग में पदक जीतने वाली बेटी के हालात देखकर मां की आंखें भी नम हो जाती हैं. बूढ़ी मां भी अपनी बेटी की सहायता के लिए दिनभर गांधी पार्क के बाहर ही बैठी रहती हैं,, और जो भी मिलता है उससे परिवार का गुजारा चलाती हैं.


कई मेडल जीते


दिलराज कौर दिव्यांग जरूर हैं, लेकिन उनके इरादे मजबूत रहें हैं कि, वो अपने हालात देखर कभी पीछे नहीं हटी. यही वजह रही कि इंटरनेशनल लेवल पर  देश और प्रदेश का नाम रोशन कर चुकी हैं. शुरुआत से ही उन्होंने अपने शूटिंग को इतना बेहतरीन तरीके से किया कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई. शूटिंग रेंज में उनका अचूक निशाना ही आज भी उनकी पहचान है. स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें शूटिंग की प्रेरणा मिल. 2004 में तीसरी उत्तरांचल स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में 10 मीटर एयर पिस्टल में पदक जीता था. उसी वक्त से दिलराज कौर ने शूटिंग में करियर की शुरुआत की थी. हालांकि, आज हालात बदल गए हैं और दिलराज कौर के लिए गोल्ड मेडल ,पदक, ज्यादा मायने नहीं रखते,,क्योंकि इतना सब करने के बाद भी आज दिलराज कौर को आजीविका के लिये ये सब करना पड़ रहा है.


हार नहीं मानने वाली दिलराज


वक्त दिलराज कौर को इस मोड़ पर लाकर खड़ा करेगा, ये कभी उन्होंने नहीं सोचा होगा. लेकिन सरकार की कमी वक्त की बेरुखी ने हालत ऐसे बना दिए. लेकिन उनका आज भी यही कहना है कि, कोई काम छोटा नहीं होता. ये उनके लिए आत्मनिर्भरता है, लेकिन सवाल ये है दिलराज कौर के ये हालात वक्त ने जरूर बना दिये, लेकिन इससे इस बात का भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि, एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के हालात सरकार के मुंह पर भी गम्भीर तमाचा है.


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