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तर्कहीन और अविवेकपूर्ण गिरफ्तारी मानवाधिकारों का भारी उल्लंघन- इलाहाबाद हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा, ''प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस अपनी इच्छा से गिरफ्तारी कर सकती है, जिस आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसकी गिरफ्तारी के लिए कोई निश्चित अवधि तय नहीं है और तर्कहीन एवं अविवेकपूर्ण गिरफ्तारी मानवाधिकारों का भारी उल्लंघन है.''
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है कि तर्कहीन और अविवेकपूर्ण गिरफ्तारी मानवाधिकारों का भारी उल्लंघन है. अदालतें बार बार दोहराती रही हैं कि पुलिस के लिए गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए और यह अपवाद स्वरूप मामलों तक सीमित होना चाहिए जहां आरोपी की गिरफ्तारी अपरिहार्य हो. जस्टिस सिद्धार्थ ने जुगेंद्र सिंह नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. जुगेंद्र के खिलाफ आरोप है कि वह ट्रकों को पास कराने के लिए पैसे ले रहा था और उसके खिलाफ अलीगढ़ के दिल्ली गेट स्थित पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई.
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस मामले में कोई फारेंसिक रिपोर्ट नहीं है और ना ही याचिकाकर्ता से कोई बरामदगी की गई और जांच अभी जारी है. याचिकाकर्ता को इस बात का पक्का अंदेशा है कि पुलिस उसे किसी भी समय गिरफ्तार कर सकती है.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर कुछ शर्तें भी लगाईं
अदालत ने याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत मंजूर करते हुए कहा, ''प्राथमिकी दर्ज करने के बाद पुलिस अपनी इच्छा से गिरफ्तारी कर सकती है, जिस आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसकी गिरफ्तारी के लिए कोई निश्चित अवधि तय नहीं है और तर्कहीन एवं अविवेकपूर्ण गिरफ्तारी मानवाधिकारों का भारी उल्लंघन है.''
कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर कुछ शर्तें भी लगाईं जैसे कि वह जब भी जरूरत पड़ेगी, पूछताछ के लिए पुलिस के समक्ष उपलब्ध रहेगा और साथ ही वह इस मामले के तथ्यों से परिचित किसी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित नहीं करेगा. अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता इस अदालत की पूर्व अनुमति के बगैर भारत नहीं छोड़ेगा और यदि उसके पास पासपोर्ट है तो वह उसे संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पास जमा करेगा. अदालत ने यह आदेश 28 मई, 2021 को पारित किया.
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