उन्नाव पीड़िता एक्सीडेंट केस : कहीं हाईकोर्ट में केस खत्म होने का इंतजार तो नहीं कर रहे थे साजिशकर्ता
उन्नाव रेप पीड़िता की सड़क दुर्घटना में घायल हो जाना कहीं कोई साजिश तो नहीं थी। क्या साजिशकर्ता इस ताक में तो नहीं थे कि हाई कोर्ट में केस खत्म हो और हम नई चाल चलें।
प्रयागराज, मोहम्मद मोइन। उन्नाव गैंगरेप केस के पीड़ित परिवार का एक्सीडेंट हाईकोर्ट में मुकदमा खत्म होने के बाद हुआ है। इलाहाबाद हाई कोर्ट में यह मुकदमा इसी साल दस मई को ख़त्म हो गया था। गैंगरेप मामले में सीबीआई की जांच पूरी होने और ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने के बाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मुकदमे को खत्म कर दिया था। इस मामले में एक सीनियर वकील की चिट्ठी पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने स्वत: संज्ञान लिया था और यूपी सरकार को फटकार भी लगाई थी। हाईकोर्ट के दखल पर ही योगी सरकार ने पिछले साल इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश भी दिया था। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच इस मामले में सीबीआई जांच की मानीटरिंग भी कर रही थी।
उन्नाव गैंग रेप केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले साल ग्यारह अप्रैल को सीनियर एडवोकेट गोपाल स्वरुप चतुर्वेदी की चिट्ठी पर स्वत: संज्ञान लिया था। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर ने गोपाल चतुर्वेदी की चिट्ठी को पीआईएल में तब्दील कर मामले की सुनवाई करते हुए यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया था।
हाईकोर्ट ने योगी सरकार से पूछा था कि क्यों न इस मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए जाएं। हाईकोर्ट का सख्त रुख देखने के बाद ही योगी सरकार ने इस मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने तकरीबन साल भर तक सीबीआई जांच की मानीटरिंग भी की थी। सीबीआई ने जब इस मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी और ट्रायल की प्रक्रिया शुरू हो गई तो हाईकोर्ट ने इस साल दस मई को मुकदमे को निस्तारित कर दिया।
चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस एसएस शमशेरी की डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में लिखा है कि मामले में जांच पूरी होकर चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और ट्रायल की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है, इसलिए इस पीआईएल को अब यहीं खत्म किया जाता है। इस मामले से जुड़े हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट एमडी सिंह शेखर के मुताबिक़ अदालत इस मामले को लेकर काफी सख्त थी, इसीलिये उसने पहले राज्य सरकार से जवाब मांगा था और लगातार खुद ही पूरी जांच की मानीटरिंग कर रही थी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच सीबीआई से लगातार स्टेटस रिपोर्ट भी तलब कर रही थी।
इस मामले में रायबरेली में पीड़िता व उसके परिवार का एक्सीडेंट होने के बाद उसे साजिश करार दिया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर हकीकत में यह साजिश है तो क्या साजिश रचने वाले लोग हाईकोर्ट में मुकदमा खत्म होने के इंतजार में थे। उन्हें इस बात का इंतजार था कि हाईकोर्ट इस मामले में निगरानी बंद कर दे, तब उसे अंजाम दिया जाए। बहरहाल यूपी सरकार ने एक्सीडेंट मामले की जांच भी सीबीआई को सौंप दी है। अब यह सीबीआई को पता लगाना होगा कि एक्सीडेंट महज हादसा है या साजिश। अगर यह साजिश है तो क्या साजिशकर्ता हाईकोर्ट में केस ख़त्म होने का इंतजार कर रहे थे क्या।