महोबा, एबीपी गंगा। कारगिल युद्ध के 20 साल पूरे होने जा रहे हैं। विजय दिवस के दो दशक पूरे होने पर पूरा देश शहीदों को नमन कर रहा है। कारगिल युद्ध के कई वीरों की बहादुरी की मिसाल आज भी दी जाती है। इन वीरों में ऐसा ही नाम है जगदीश यादव का। महोबा जिले के पचपहरा गांव के जगदिश कारगिल युद्ध में दो जुलाई को शहीद हो गए थे।


पचपहरा जैसे छोटे से गांव में जन्मे जगदीश यादव का जन्म बेहद ही सामान्य परिवार में हुआ था। जगदीश के माता-पिता ने खेती-बाड़ी कर अपने बेटे को पढ़ाया था। बचपन से ही जगदीश के अंदर देश के लिए कुछ करना का जज्बा था। इसीलिए मात्र 21 साल की उम्र में उन्होंने मराठा रेजिमेंट ज्वाइन कर ली। जगदीश छुट्टियों के समय जब भी घर आते तो अपनी मां से सिर्फ एक ही बात कहते थे कि मां मुझे मातृभूमि के नमक का कर्ज अदा करना है। जब भी वो ड्यूटी पर निकलते तो कहते थे... मां शायद मैं अब न आऊं। आखिरकार वो दिन भी आ गया जब जगदीश को भारत माता के नमक का कर्ज अदा करने का मौका मिला। जगदीश कारगिल की लड़ाई में गए और उन्होंने वही मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी।


जगदीश के भाई बताते हैं, 'जगदीश में देश सेवा का जज्बा कूट-कूट कर भरा था। 21 वर्ष में ही उसका मराठा रेजिमेंट में चयन हो गया था। ब्लैक कैट कमांडो के तौर पर भी जगदीश ने अपनी सेवाएं दी है।'


जगदीश को शहीद हुए भले ही दो दशक बीत चुके हो, लेकिन आज भी उनके गांव में जगदीश का नाम फक्र से लिया जाता है। शहीद जगदीश आज भी अपने गांववासियों के लिए एक मिसाल के तौर पर जाने जाते है। स्वभाव से सहज, सरल शहीद जगदीश को याद कर आज भी गांव के लोगो की आंखे भर आती है।