Jalaun News: देश की आजादी के बाद पूरे देश में हो रहे तिरंगे के अभिनंदन को लेकर बावनी के देश भक्तों ने 25 सितंबर 1947 को हरचंदपुर में तिरंगा फहराने की योजना बनाई. यह खबर निजाम के कानों तक पहुंच गई और निजाम ने अपने अधीनस्थ कोतवाल को फरमान देते हुए कहा कि यह तिरंगा यात्रा किसी भी सूरत में नहीं निकलनी चाहिए.15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजादी का जश्न मना रहा था. 


जालौन के बाबनी स्टेट में आजादी के बाद भी देश का तिरंगा फहराना गुनाह माना जाता था. वजह थी, यहां पर हैदराबाद के निजामों की सल्तनत और उनका कानून. यहां निजामों की सल्तनत होने की वजह से सारे नियम और कानून उनके अधीन थे. कुछ क्रांतिवीरों ने तिरंगा यात्रा निकालकर निजाम के आदेशों का उल्लंघन किया तो निजाम ने उन पर गोलियां चलवा दीं. जिसमें 11 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हो गए और 26 घायल. इस गोलीकांड की गूंज पूरे देश मे गूंजी और इस कांड को दूसरा जलियांवाला बाग कांड कहा गया.


इस कांड को दूसरा जलियांवाला बाग कांड कहा गया
दरअसल, जालौन के हरचंदपुर गांव में मौजूद शहीद स्मारक आज भी आजादी के सामूहिक बलिदान की ऐसी गाथा सुनाता है. जिसे सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. यह पूरा वाक्या 25 सितंबर 1947 को घटित हुआ. पूरा देश आजाद हो चुका था लेकिन इसके बाद भी बाबनी स्टेट में तिरंगा फहराने पर रोक थी. इसके साथ ही भाषण देना, नारे लगाने तथा जुलूस निकालना पर पूरी तरह से प्रतिबंधित था. पं. विश्वनाथ व्यास के नेतृत्व में निजाम की सल्तनत और कानूनों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए बाबनी प्रजामंडल का गठन हुआ और तिरंगा यात्रा निकालने की योजना बनाई गई.


जब निजाम के कानों तक पहुंची तिरंगा यात्रा की खबर
देश की आजादी के बाद पूरे देश में हो रहे तिरंगे के अभिनंदन को लेकर बाबनी के देश भक्तों ने 25 सितंबर 1947 को हरचंदपुर में तिरंगा फहराने की योजना बनाई. यह खबर निजाम के कानों तक पहुंच गई और निजाम ने अपने अधीनस्थ कोतवाल को फरमान देते हुए कहा कि यह तिरंगा यात्रा किसी भी सूरत में नहीं निकलनी चाहिए.


तिरंगा यात्रा रोककर, पुलिस ने बरसाई अंधाधुंध गोलियां
हैदराबाद के निजाम के आदेशों को लेकर लोगों में उसे लेकर काफी नफरत बढ़ गई थी. निजाम का किला भेदने के लिए देशभक्तों ने सामूहिक रूप से इक्कठे होकर तिरंगा यात्रा निकाली. तिरंगा यात्रा में शामिल देशभक्त अपने हाथों में तिरंगा लिए राष्ट्रगान गाते हुए गांव की गलियों से गुजर रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें बीच में रोक लिया. यह बिल्कुल जलियांवाला बाग के चौक मैदान जैसा था, जहां से भागने की कोई गुंजाइश न थी. कोतवाल अहमद हुसैन अपने 24 सिपाहियों के साथ मौके पर मौजूद था. कोतवाल ने जुलूस को खत्म कर लोगों से अपने घर लौट जाने के लिए कहा लेकिन कोई वहां से हिलने को तैयार न था. इसी बीच पुलिस और आंदोलनकारियों में झड़प शुरू हो गई. तभी एक क्रांतिवीर ने दरोगा को पटक कर उससे सर्विस रिवाल्वर छीन ली. जिसके बाद पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी इस फायरिंग में 11 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हो गए थे और 26 घायल.


इन्होंने दी देश के लिए कुर्बानी
पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग के बीच लल्लू सिंह बागी, कालिया पाल सिजहरा, जगन्नाथ यादव उदनापुर, मुन्ना भुर्जी उदनापुर, ठकुरी सिंह हरचंदपुर, दीनदयाल पाल सिजहरा, बलवान सिंह हरचंदपुर, बाबूराम शिवहरे जखेला, बाबूराम हरचंदपुर व बिंदा जखेला सहित 11 लोग शहीद हो गये थे.


मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद, भारत संघ में विलय हुआ बावनी स्टेट
देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के बाद बाबनी की सियासत में हलचल मच गई और 24 अप्रैल 1948 को विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री लालाराम गौतम ने खुद कदौरा आकर नवाब का चार्ज विश्वनाथ व्यास के हवाले कर दिया. 25 जनवरी 1950 को कदौरा बाबनी स्टेट का विलय पूरी तरह भारत संघ में हो गया. हरचंदपुर में शहीदों की याद में एक स्मारक बनवाया गया. ताकि आने वाली पीढ़ियों को देश के लिए मर मिटने की प्रेरणा मिलती रहे.


क्यों कहते हैं जलियांवाला बाग?
वरिष्ठ पत्रकार के.पी. सिंह बताते हैं कि इस सामूहिक नरसंहार को दूसरा जलियांवाला बाग कहा जाता है. देशभक्ति की उमंग में झंडा फहराने निकले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पुलिस ने इस तरह से घेराबंदी कर दी थी कि कोई भागने का रास्ता नहीं था. पुलिस ने गांव के चौक के पास घेराबंदी कर इस तरह से गोलियां बरसाईं जिस तरह से जलियांवाला बाग गोली कांड हुआ था. जालौन में कदौरा बावनी ही ऐसी अकेली स्टेट थी जिसका विलय भारत संघ में हुआ था. सन 1784 में हैदराबाद के निजाम ने इस स्टेट को स्थापित किया था. पेशवा और ब्रिटिश शासन से इसको स्टेट की मान्यता मिली थी. बाद में कांग्रेस सरकार ने बावनी में प्रतिनिधिमंडल भेजा और हमीरपुर के डीएम को पूरे मामले की जांच सौपी और अंत में वहां के नवाब को बाध्य होना पड़ा. लोकप्रिय सरकार के गठन के बाद दीवान का पद भंग कर दिया गया.


25 जनवरी 1950 में कदौरा बावनी स्टेट के विलय के बाद नवाबों की सल्तनत का सूर्य अस्त हुआ और लोगों ने आजाद हिंदुस्तान में चैन की सांस ली.ग्राम प्रधान प्रतिनिधि हरचंदपुर देवेंद्रकुमार ने बताया की हमारे गाँव में जो शहीद स्मारक बना हुआ है 1947 में यहाँ गोलीकांड हुआ था अंग्रेजो के शासन काल के बाद  जब देश आजाद हो गया तब यहाँ के नवाब के आदेशों के बाद झंडारोहण पर प्रतिबन्ध था झंडारोहण  कार्यक्रम में गोलीकांड हुआ जिसमे हमारे गाँव के लोगो समेत 11 लोग शहीद हुए थे उन्ही शहीदो की याद में शहीद स्मारक बना हुआ है लेकिन शासन प्रशासन की उपेक्षा के चलते जो ईमारत खँडहर पड़ी हुई है 


गोलीकांड में शहीद हुए शहीद के परिजन गया प्रसाद ने बताया की 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था उसके बाद उसके बाद तिरंगा यात्रा के जुलूस में गोली कांड करवाया गया क्योकि नवाबो की स्वतंत्रता चली गयी थी 11 लोग शहीद हुए थे हमारे ताऊ बाबूराम शिवहरे इस काण्ड में शहीद हुए थे.


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