Uttar Pradesh New: पूरे देश में दशहरा का पर्व बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया गया. वहीं यूपी के जालौन (Jalaun) जिले के कोंच नगर में दशहरे (Dussehra 2022) का पर्व अलग परम्परा के साथ मनाया गया. यहां पर बुराई के प्रतीक रावण और मेघनाथ के पुतले जलाये गये लेकिन कभी भी किसी ने राम-रावण और लक्ष्मण-मेघनाथ का इस तरह युद्ध नहीं देखा होगा. यहां पर राम-रावण और लक्ष्मण मेघनाथ का युद्ध अलग ही तरीके से होता है. यहां रावण-मेघनाथ के 40 फीट ऊंचे पुतलों का युद्ध राम-लक्ष्मण के साथ सजीव होता है और अंत में बुराई के प्रतीक के रूप में रावण और मेघनाथ का संहार राम-लक्ष्मण द्वारा किया जाता है. यह युद्ध कोंच के ऐतिहासिक धनु तालाब के मैदान पर होता है. इस युद्ध को देखने के लिए आसपास के इलाकों से 20 हजार से अधिक लोगों की भीड़ जुटती है.
170 वर्षों से चली आ रही परम्परा
बता दें कि वैसे पूरे देश में राम-रावण और लक्ष्मण-मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है लेकिन जालौन के कोंच नगर में ऐसा देखने को नहीं मिलता है. यहां पर 170 वर्षों से चली आ रही परम्परा को कोंच के लोग अभी भी निर्वाहन कर रहे हैं. यहां पर राम-रावण और लक्ष्मण-मेघनाथ का युद्ध परम्परागत तरीके से होता है. हाथी पर सवार राम-लक्ष्मण और हनुमान से रावण का युद्ध सजीव होता है जिसे देखने के लिये दूर दराज के क्षेत्रों से भी लोग आते हैं. यहां रावण और मेघनाद के 40 फीट से ऊंचे पुतलों को बड़े-बड़े पहियों वाले रथ में बांधा जाता है और इन पुतलों को पूरे मैदान में दौड़ाया जाता है जिनसे युद्ध स्वयं भगवान राम और उनके अनुज भ्राता लक्ष्मण करते हैं. इस युद्ध में कई बार मेघनाथ और रावण के पुतले जमीन में गिरते हैं जिसे देख वहां पर मौजूद लोग बहुत प्रसन्न होते हैं. युद्ध बिलकुल वैसा ही होता है जैसा रामानंद सागर की रामायण में दर्शाया गया है.
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कई राजनीतिक हस्तियां रहीं मौजूद
इस युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति भी लगती है और हनुमान संजीवनी बूटी भी लाते हैं. जब राम और रावण का युद्ध होता है तो इन पुतलों को रस्सियों की सहायता से पूरे मैदान में दौड़ाया जाता है. इस परम्परा के दौरान ये पुतले कई बार नीचे जमीन में गिरते हैं जिन्हें लोग फिर से खड़ा करके मैदान में दौड़ाते हैं. रावण और मेघनाथ के पुतलों को रथों में रखकर दौड़ाने के पीछे लोगों का तर्क है कि बुराई चाहे जितनी भी भागे उसका अंत निश्चित ही होता है. इस तरह का रावण वध पिछले 170 वर्षो से चला आ रहा है. इस राम-रावण युद्ध को देखने के लिए कई राजनीतिक हस्तियां भी मौजूद रहीं. वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा युद्ध उन्होंने कहीं नहीं देखा. यह पूरे देश में अनोखा राम-रावण और लक्ष्मण मेघनाथ युद्ध है.
सभी पात्र होते हैं स्थानीय लोग
आयोजकों ने बताया कि यह रामलीला कर्मकांडी रामलीला है. यहां पर राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुधन और सीता का किरदार छोटे-छोटे बालक करते हैं जिनको हम भगवान ही मानते हैं. यहां सभी युद्ध सजीव होते हैं. किसी भी बाहरी कलाकार को नहीं बुलाया जाता है. जो भी पात्र होते हैं वह लोकल के ही होते हैं. इसके अलावा धनु ताल के मैदान पर लंका भी बनाई जाती है. यहां पर अशोक वाटिका में सीता मां भी विराजमान रहती हैं. इसके अलावा अयोध्या भी बनाया गया था जहां भरत और शत्रुधन भी बैठे हुए दिखाई देते हैं. राम-रावण युद्ध को देखते हुए प्रशासन ने भी पुख्ता इंतजाम किये थे. सुरक्षा के लिए भारी संख्या में पुलिस बल बुलाया गया था ताकि कोई अनहोनी न हो.
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