नई दिल्ली, एबीपी गंगा। ऐसा बहुत ही कम लोगों को ही पता होगा कि देश में एक ऐसा भी चुनाव लड़ा गया था, जिसमें चुनावों की घोषणा के बाद पार्टी बनी और बगैर रजिस्ट्रेशन के ही उम्मीदवार चुनाव लड़ा था। ये किस्सा 1977 की चुनावी जंग से जुड़ा हुआ है। जब अधिकांश नेता चुनावों का बहिष्कार चाहते थे, इसके बावजूद चुनाव की घोषणा के बाद पार्टी का गठन हुआ और उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपना दमखम दिखाने उतरा भी।


जब चुनाव की घोषणा के बाद हुआ पार्टी का गठन


तब न तो पार्टी का रजिस्ट्रेशन था, न उसके पास कोई चुनाव चिन्ह् था। यहां तब की सत्ता पक्ष के खिलाफ लड़ने के लिए कोई उम्मीदवार भी नहीं था। उससे भी ज्यादा रोचक बात ये थी कि पार्टी की गठन भी चुनाव की घोषणा के बाद हुआ था।


दूसरी पार्टी से उधार लिया चुनाव चिन्ह


इस कारण नेताओं ने चुनाव आयोग को केवल इतना बताया था कि हमने पार्टी बना ली है और चुनाव चिन्ह किसी अन्य पार्टी से उधार ले लिया है। आयोग ने भी पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी। इस तरह अतीत का यह किस्सा राजनीति के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, जिसे आज भी भुलाया नहीं जा सका।


नेता चुनावों का बहिष्कार चाहते थे अधिकतर नेता


इमरजेंसी खत्म होने के बाद 1977 में देश में अचनाक लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया गया। आपातकाल के दौरान सत्ता के खिलाफ संघर्ष में शामिल छोटे-बड़े दलों के तमाम नेता जेल में बंद थे, कुछ वक्त पहले ही सभी रिहा हुए थे। लिहाजा उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहद खराब हो रखी थी, जिस कारण वे चाहते थे कि चुनाव का बहिष्कार किया जाए। हालांकि कई दिग्गज नेताओं ने ऐसा न करने का फैसला लेते हुए चुनाव लड़ने की ठानी।


और यूं हुई कांग्रेस की हार


1977 के चुनाव में ऐसा हालौत था कि न तो जनता पार्टी के उम्मीदवार ढूंढे मिल रहे थे और न पैसा था। इन सब के बावजूद इमरजेंसी का गुस्सा चुनाव परिणामों में देखने को मिला। सुल्तानपुर से जुल्फिकार उल्ला ने कांग्रेस प्रत्याशी केएन सिंह को हराया, तो अमेठी से संजय गांधी को रविंद्र प्रताप सिंह ने शिकस्त दी। रायबरेली से इंदिरा गांधी ने राजनारायण सिंह ने पराजित किया।


जनता पार्टी बनाकर लोगों से भरोसे लड़ा चुनाव


जहां कई सारे नेता इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव के बहिष्कार के पक्षधर थे। वहीं, जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, मुरली मनोहर जोशी, जनेश्वर मिश्र आदि बड़े दिग्गज नेता का कहना था कि हम जनता के भरोसे चुनाव लड़ेंगे। इन दिग्गज नेताओं का कहना था कि लोकतंत्र को मजबूत करने और इंदिरा गांधी का घमंड तोड़ने के लिए चुनाव जरूर लड़ना चाहिए।


चुनौतियों का किया सामना और जीते भी


हालांकि, चुनाव लड़ना और उसे जीतना दोनों आसान नहीं था। उनके सामने कई सारी चुनौतियां थी। उम्मीदवारों के पास नामांकन के पैसे तक नहीं थे। इनसब के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी, चंदा जुटाया गया। इसके बाद शुरू हुआ नेताओं की संयुक्त बैठकों का सिलसिला। जो सुल्तानपुर, अमेठी, रायबरेली, लखनऊ होते हुए दिल्ली पहुंचा।


कांग्रेस को हराने के लिए हुआ जनता पार्टी का गठन और फिर सभी अलग-अलग दलों ने उसमें अपना विलय कर लिया। चौधरी चरण सिंह ने अपनी पार्टी (भारतीय क्रांति दल) ने अपना चुनाव चिन्ह्  (हलधर किसान) जनता पार्टी को दे दिया। इसके बाद शुरू उम्मीदवारों को ढूंढने का सिलसिला। इसी दौरान यह कहा गया था कि पार्टी तुम्हारी, चुनाव चिन्ह मेरा और उम्मीदवार हम सबका। इस संयुक्त विपक्ष में वाम दल शामिल नहीं था।