Janmashtami 2022 Auraiya: श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर आज पूरा देश भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) के रंग में रंगा हुआ है. ऐसे में हम आज आपको भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल के बारे में बताएंगे, जहां आज भी उनकी पत्नी रुक्मणि (Rukmani) माता का महल स्थित है. यहां नहीं इस गांव में माता रुक्मणि का मंदिर बना हुआ है. यूपी के औरैया जिले के बिधूना तहसील के कुदरकोट गांव को भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल कहा जाता है. जन्माष्टमी के अवसर पर यहां हर साल विशेष तैयारियां की जाती है. महिलाएं ढोलक और गीत गाकर इस उत्सव को मनाती हैं 


भगवान श्री कृष्ण की ससुराल


भगवान श्री कृष्ण की शादी माता रुक्मणि से हुई थी. मान्यता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने कुदरकोट से ही माता रुक्मणि का हरण किया था. तभी से इस गांव को भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल के तौर पर जाना जाता है. द्वापर में इस गांव का नाम कुन्दनपुर था जो राजा भीष्मक की राजधानी हुआ करता था. माता रुक्मणि राजा भीष्मक की पुत्री थीं. आज भी यहां पर राजा भीष्मक का किला मौजूद है जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. 


द्वापर युग से जुड़ा है इतिहास 
औरैया जिले में ऐसे कई स्थल हैं जो ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि पौराणिक भी हैं. चाहे इंद्र का हाथी एरावत हो या ऋषि दुर्वासा, पांडव हों या तक्षक यज्ञ औरैया की धरती इन पौराणिक विरासतों से भरी हुई है. कलयुग के कुदरकोट और द्वापर युग के कुंदनपुर की कहानी बेहद दिलचस्प है. ये गांव पुरहा नदी के तट पर बसा है. कहते हैं राजा भीष्मक के पांच पुत्र थे और पुत्री के रूप में देवी लक्ष्मी स्वरूप रुक्मणि ने जन्म लिया था. पुराणों में इसका प्रमाण मिलना आसान नहीं है. लेकिन राजा भीष्मक की राजधानी की दिशा, स्थान और स्थलों का मिलान करने पर द्वापर का कुंन्दन पुर अब कुदर कोट के नाम से प्रसिद्ध है. 


यहीं से किया था माता रुक्मिणी का हरण


राजा भीष्मक के महल के बाहर गौरी मंदिर था जहां माता रुक्मणि रोजाना पूजा-पाठ किया करती थीं. माता गौरी से देवी रुक्मणि ने श्रीकृष्ण को अपना पति माना था. जिसे माता गौरी ने पूरा किया. इसी मंदिर से लौटते समय भगवान श्रीकृष्ण ने माता रुक्मणि का हरण किया था और उनकी मनोकामना पूरी हुई थी.  इसी के साथ देवी गौरी भी मंदिर से आलोप हो गई. तभी से ये मंदिर आलोपा देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं.आलोपा देवी मंदिर से महज थोड़ी ही दूरी पर राजा भीष्मक का महल था, जो अब खंडहर है. आजकल यहां पर एक स्कूल चल रहा है. 


प्राचीन काल के शिवलिंग स्थापित हैं यहां


औरैया के आसपास की खुदाई करने पर जगह-जगह विखंडित मूर्तियां मिलती हैं. यह पुरातत्व विभाग की उपेक्षा ही है कि ये पौराणिक स्थल आज भी देश दुनिया की नजरों से ओझल हो रहा है. लोग मथुरा, ब्रज, गोकुल, द्वारिका आदि स्थलों को तो जानते हैं लेकिन कृष्ण की ससुराल कुदरकोट के बारे में लोगों का कम ही पता है. कुदरकोट के महल स्थल से उत्तर की ओर कन्नौज तो पश्चिम की ओर मथुरा स्थित है. जबकि कुदर कोट व उसके आसपास शिव के उपासक राजा भीष्मक और माता रुक्मणि द्वारा पूजा किए जाने वाले शिवलिंग स्थापित हैं. 


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पौराणिक कथाओं के मुताबिक माता रुक्मणि की शादी शिशुपाल से तय कर दी गई थी लेकिन वो शिशुपाल से शादी नहीं करना चाहती थीं. वो कृष्ण से प्रेम करती थी, भगवान कृष्ण को जब ये बात पता लगी तो वो नदी के रास्ते होते हुई इस मंदिर में गुफा से आए थे और रुक्मणि को अपने साथ ले गए थे. हालांकि अब वह गुफाए बंद हो चुकी है. तब से यह कुदरकोट भगवान श्री कृष्ण की ससुराल कही जाती है. 

कुदरकोट के लोग जन्माष्टमी बड़ी ही धूमधाम से मनाते है. इसी मंदिर में रुक्मिणी माता की मूर्ति है. जहां दूर-दूर से लोग आते भी है. लेकिन इस धार्मिक स्थान को मथुरा की तरह लोग नहीं जानते हैं. यहां के लोगों का कहना है कि अगर यहां सड़के बनाई जाए जिससे इस मंदिर में 81 कोसों की परिक्रमा देने में आसानी हो सके. 


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