Atul Subhash Suicide Case: बेंगलुरु के युवक अतुल सुभाष ने आत्महत्या करने से पहले आत्महत्या की वजह और ज़िम्मेदार लोगों के बारे में विस्तार से बताते हुए एक 80 मिनट का वीडियो बनाया था जो अतुल सुभाष की मौत बाद वायरल हो गया. इस वीडियो को बेंगलुरु में रहने वाले अतुल सुभाष के ससुराल जौनपुर में भी बड़ी संख्या में लोगों ने देखा. इसे देख कर ख़ासतौर से वकीलों में कोर्ट कचहरी की गिरती हालत पर काफ़ी ग़ुस्सा है.


जौनपुर के वकील सुरेंद्र विक्रम सिंह ने कहा, 'अतुल सुभाष ने जो वीडियो आत्महत्या करने से पूर्व बनाया है उसमें क़ानून की ऐसी ऐसी ख़ामियों को गिनाया गया है जिन्हें क़ानून पढ़ने-पढ़ाने वालों को जानना चाहिए. यहाँ तक कि इस वीडियो के कंटेंट को जजों की ट्रेनिंग में भी पढ़ाया जाना चाहिए ताकि नए जजों को इस बात का इल्म रहे कि वो सिर्फ़ न्याय ही नहीं देंगे बल्कि उन्हें न्याय देने की विधि को भी दूषित होने से बचाना है. क्योंकि अतुल सुभाष की मृत्यु के पीछे कोर्ट की ओर से न्याय देने का दूषित तरीक़ा भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है. 


'एक महीने में औसतन 5 बार बेंगलुरु से बुलाया गया जौनपुर कोर्ट'
अतुल सुभाष ने अपने वीडियो में बताया कि, उसे बेंगलुरु स्थित ऑफिस से साल भर में सिर्फ़ 24 छुट्टियाँ मिलती हैं. जबकि उसे उसकी पत्नी की ओर से दायर 9 मुक़दमों में अलग अलग बुलाया जाता था. 2 साल में उसे कुल मिलाकर 120 तारीख़ों पर बुलाया गया जिनमें से 40 में वो उपस्थित भी हुआ. यानी बंगलूरू से अतुल सुभाष को लगभग हर महीने 1.6 बार जौनपुर की दौड़ लगानी पड़ी. जबकि अगर न्याय व्यवस्था संवेदनशील होती तो अतुल को इतना परेशान ना होना पड़ता.


अतुल सुभाष केस में सवाल ये भी उठता है कि जब न्यायालयों में ऑनलाइन पेशी की सुविधा शुरू हो चुकी है तो अतुल के मामले में ये सुविधा क्यों नहीं दी गई. जबकि अतुल की परिस्थितियों में उसे ये सुविधा मिलनी चाहिए थी. 


अतुल सुभाष ने आत्महत्या करने से पहले वीडियो में जो कुछ कहा है उसमें जौनपुर फ़ैमिली कोर्ट की प्रिंसिपल जज रीता कौशिक का भी नाम लेकर उन्हें अपनी आत्महत्या का ज़िम्मेदार बताया है. जौनपुर के वकीलों ने एबीपी न्यूज़ से कहा कि अतुल के केस के व्यक्तिगत डीटेल में ना जा कर इस बड़े सवाल को ऐड्रेस किए जाने की ज़रूरत है कि न्यायालय ख़ुद किन किन तरीक़ों से न्याय का हरण कर रहे हैं.


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