UP News: पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने के बाद उनके पोते की पहली प्रतिक्रिया सामने आई तो तमाम अटकलों पर विराम लग चुका था. इसके बाद बाकी कसर आरएलडी चीफ जयंत चौधरी ने मीडिया के सामने पूरी कर दी. गठबंधन पर भावुक करने वाले बयान में विपक्ष से दूरी और बीजेपी के साथ जाना जरूरी समझा. हालांकि ऐसा करना उनकी मजबूरी भी समझ आता है और इसका प्रमाण उनकी ही पार्टी का इतिहास बताता है.


दरअसल, हम आरएलडी के गठबंधन से अब तक के लोकसभा चुनाव और जंयत चौधरी की पार्टी के प्रदर्शन पर नजर डालें तो उनकी मजबूरी बिल्कुल स्पष्ट समझ में आती है. आरएलडी के गठन के बाद पहला चुनाव 1999 में हुआ, इस चुनाव में पार्टी ने सात सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन उसके हाथ केवल दो सीट आई. पार्टी ने कैराना और बागपत सीट पर कब्जा जमा लिया था. लेकिन 2004 में आरएलडी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. 


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इस टेस्ट में पास हुए थे जयंत चौधरी
सपा के साथ गठबंधन से आरएलडी को एक सीट का फायदा हुआ. पार्टी इस चुनाव में 3 सीटों पर विजयी रही. लेकिन ये गठबंधन लंबे वक्त तक नहीं चल सका. 2009 का लोकसभा चुनाव आरएलडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन करके लड़ा और ये चुनाव आरएलडी के इतिहास में उसके लिए सबसे अच्छा रहा. पार्टी ने सात सीटों पर उम्मीदवार उतारे और पांच पर जीत दर्ज की. इसी टेस्ट में केवल एक बार जयंत चौधरी पास हो पाए थे.


हालांकि बीजेपी के साथ भी आरएलडी का गठबंधन लंबे वक्त तक नहीं चल पाया. फिर 2014 का चुनाव आरएलडी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ा था. इस चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बीते सभी चुनाव में सबसे खराब रहा. आरएलडी ने आठ सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन 'मोदी मैजिक' के आगे सभी हार गए. इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव जयंत चौधरी ने बीएसपी और सपा गठबंधन के साथ लड़ा. इस चुनाव 3 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और फिर सभी हार गए.


यानी ये बीते पांच चुनावों के रिजल्ट पर नजर डालें तो बीजेपी जयंत चौधरी के लिए मजबूरी समझ में आती है. दूसरी ओर बीजेपी के साथ जाने के लिए जयंत चौधरी की अखिलेश यादव से दूरी जरूरी है. इतना ही नहीं बीजेपी के साथ ही गठबंधन में जयंत चौधरी एक मात्र टेस्ट पास कर पाए हैं. देखा जाए तो बीजेपी के साथ उनका दिल मिलाना जरूरी नजर आता है.