UP Politics: लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में देश की सभी राजनीतिक पार्टियां और नेता अपनी जमीन तैयार करने में लगे हैं. माना जाता है कि केंद्र की सत्ता देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका भी लोकसभा चुनाव में अहम हो जाती है. राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी भी लगातार अपना सियासी किला मजबूत करने में जुटे हैं. बीते दिनों में तबियत खराब होने की वजह से उन्होंने मेरठ में आयोजित भाईचारा सम्मेलन कार्यक्रम को स्थगित कर दी थी. उनके इस फैसले से अटकलों का बाजार गर्म हो गया है.
सियासी जानकार जयंत चौधरी के इस फैसले को I.N.D.I.A. गठबंधन पर दबाव बनाने की रणनीति के रुप में देख रहे हैं. उत्तर प्रदेश में साल 2022 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. जहां आरएलडी ने प्रदेश की 33 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और उसको 22 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई थी. साल 2017 में आरएलडी सिर्फ एक सीट पर सिमट कर रह गई थी. इसके अलावा साल 2022 के आखिर में खतौली विधानसभा उप चुनाव में बीजेपी उम्मीवार को हराकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत सियासी मौजूदगी दर्ज कराई. जयंत चौधरी समय-समय पर विपक्षी महागठबंधन पर अलग-अलग तरह से सियासी विकल्प खुले होने के संकेत देते रहे हैं.
जयंत चौधरी क्यों अटकलों देते रहते हैं हवा?
मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक, जून माह में बिहार के नीतिश कुमार ने I.N.D.I.A. गठबंधन के सभी दलों की संयुक्त बैठक बुलाई थी. इस बैठक से जयंत चौधरी नदारद रहे. इसके बाद विपक्ष के द्वारा सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया, फ्लोर टेस्ट के दौरान भी वे सदन में अनुपस्थित रहे. उनके इन फैसलों से एक बार फिर से अटकलों का बाजार गर्म कर दिया. हालांकि उन्होंने 31 अगस्त को मुंबई में हुई गठबंधन की बैठक में हिस्सा लेकर अटकलों की हवा निकाल दी. वे इस बैठक के दौरान मुंबई में तीन दिन तक रुक कर एनसीपी चीफ शरद पवार और शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत से मीटिंग कर गठबंधन में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की. कुछ जानकार इस मीटिंग को लोकसभा चुनाव में अधिक सीटों पर दावेदारी करने के दांव के रुप में देख रहे हैं.
सीट शेयरिंग को लेकर बढ़ सकती है रार
पूरे देश में लोकसभा की 543 सीटें हैं, जबकि देश के सबसे बड़े सूबे में शुमार उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हैं. ये देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक है. बीजेपी और उसके गठबंधन दलों ने साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 64 सीटों पर जीत दर्ज किया था. इस दौरान बीएसी और सपा गठबंधन महज 15 सीटों पर सिमट कर रह गया, जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. यही वजह है कि I.N.D.I.A. गठबंधन ने अभी से यूपी में सीट शेयरिंग को माथा पच्ची शुरू कर दी है. आगामी लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 45 से 50 सीटें सपा और 15 से 20 सीटें कांग्रेस को देने की बात चल रही है. बिहार सीएम नीतीश कुमार ने कुर्मी बाहुल्य कुछ सीटों की मांग की है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी का खाता भी नहीं खुला था.
लोकसभा चुनाव से पहले आरएलडी सतर्क
आरएलडी इस बार कई मंचों से 12 से 15 उम्मीदवारों को लोकसभा सीटों पर उतारने का दावा करती है. विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर सपा और आरएलडी को आपसी सहमति कायम करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. बताया जा रहा है कि सिवालखास विधानसभा सीट जयंत ने मजबूरी में सपा को दे दी थी, बदले में उन्हें मरेठ की सीट दी गई थी. सिवालखास विधानसभा पर आरएडली को काफी मजबूत माना जाता है. इसी तरह कई अन्य जगहों पर सीटों के चुनाव को लेकर विरोध का सामना करना पड़ा था, जिसका पार्टी कार्यकर्ताओं ने विरोध भी किया था. ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी और उनकी पार्टी के दूसरे नेता काफी सतर्कता बरत रहे हैं, इसका उदाहरण भी मंचों से देखने को मिलता रहा है.
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