उत्तर भारत का मुख्य द्वार है यह शहर, दी जाती है वीरता की मिसाल
झांसी शहर से दक्षिण की ओर सुकुवां डुकुवां बांध है। यह बेतवा नदी पर स्थित है। शहर से इसकी दूरी करीब 40 किमी है। जंगल में बेतवा नदी पर स्थित इस बांध की मनमोहक छटा देखते ही बनती है।
झांसी, एबीपी गंगा। झांसी न सिर्फ वीरों की भूमि रही है बल्कि चारों ओर से पठारी भाग से घिरा ये शहर बहुत ही मनोरम है। स्वच्छता के लिए इस शहर को पुरस्कृत भी किया जा चुका है। झांसी स्मार्ट सिटी घोषित हो चुकी है, लेकिन दुखद ये है कि ऐतिहासिक शहर होने के बावजूद यहां पर्यटक बहुत ही कम आते हैं। जबकि यहां से 18 किमी दूरी पर स्थित मप्र के छोटे से कस्बे ओरछा में पर्यटन व्यवसाय का सबसे बड़ा साधन बन चुका है। सरकारें पर्यटन के प्रति गंभीर होतीं तो इस शहर में भी सैलानियों की संख्या बढ़ जाती और रोजगार के साधन हो जाते।
पर्यटन की हैं बेहतर संभवनाएं
पर्यटन विभाग आगरा के प्रति अति गंभीर है, परंतु झांसी के प्रति उसकी बेरुखी सवाल उठाती है। ओरछा में स्थित किले में होटल में तब्दील कर दिया गया है। इस होटल के पास ही जहांगीर महल को सहेजा गया है। महल के चारों ओर पथरीली भूमि पर कल-कल करती बेतवा नदी ऐसे लगती है जैसे कोई झरना बह रहा हो। झांसी किले में भी कई बार होटल बनाने की प्लानिंग हुई लेकिन सब हवा साबित हुई।
ऐसे आया शहर का अस्तित्व
किवदंति है कि ओरछा के राजा वीरसिंह एक बार अपने राज्य से इस दिशा में देख रहे थे उन्हें एक पहाड़ी पर झाईं सी दिखी तभी से यहां का नाम झांसी रख दिया गया। इससे पूर्व यह वलवंत नगर था। इसी पहाड़ी पर राजा वीरसिंह ने 1613 में किला बनाया। बाद में यहीं पर मराठा राजा गंगाधर राव राज्य करने लगे थे।
झांसी का किला
किले में गार्डन हैं जिसे देखकर आपको किसी पार्क की याद आ जाएगी। किले में शिव मंदिर, फांसी गृह, गणेश मंदिर और समाधियां हैं। किला पहाड़ी पर बना है, इस कारण बहुत ऊंचाई पर है। किले से पूरे शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। झांसी विकास प्राधिकरण के जरिए यहां प्रति शाम लाइट एंड साउंड कार्यक्रम किया जाता है।
रानी महल
किले से शहर जाने वाले रास्ते में रानी महल बना हुई है। इस महल में भारतीय पुरातत्व विभाग का आफिस है। किले की दीवारों और छतों पर भीति चित्रों को बनाया गया है। प्रति वर्ष इसे पेंट किया जाता है। महल में नवीं शताब्दी के बाद के प्राचीन प्रतिमाओं को संग्रहित किया गया है।
संग्रहालय
रानीलक्ष्मी बाई पार्क के पीछे म्यूजियम बना हुआ है। यहां बुंदेली राजाओं के हथियारों का संग्रह है। चंदेल राजाओं की तस्वीरें भी यहां सहेजकर रखी गईं हैं। विदित हो को 9वीं सदी में चंदेल राजाओं का शासन पन्ना, खजुराहो से लेकर समूचे बुंदेलखंड पर था।
बांध
झांसी शहर से दक्षिण की ओर सुकुवां डुकुवां बांध है। यह बेतवा नदी पर स्थित है। शहर से इसकी दूरी करीब 40 किमी है। जंगल में बेतवा नदी पर स्थित इस बांध की मनमोहक छटा देखते ही बनती है। झांसी शहर से उत्तर की ओर बेतवा नदी पर पारीछा बांध है। पहाड़ियों के पास बना यह बांध को देखकर वापस नहीं जाना चाहेंगे।
प्राचीन मंदिर
गणेश बाजार में स्थित गणेश मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है। मराठा शासक गंगाधर राव का महारानी लक्ष्मी बाई के साथ विवाह इसी मंदिर में संपन्न हुआ था। गणेश चतुर्थी के दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
वर्तमान शहर
शहर के मुख्य मार्गों में सफाई देखते ही बनती है। सड़के चौकस हैं। मानिक चौक, बड़ा बाजार, सदर बाजार, सीपरी बाजार और प्रेमनगर मुख्य मार्केट हैं। भीड़भाड़ वाले सीपरी बाजार में रेलवे ओवर ब्रिज बनने के कारण जाम की बहुत समस्या रहती है। मानिक चौक और बड़ा बाजार में अतिक्रमण की वजह से जाम लगा रहता है। सदर बाजार कैंट क्षेत्र से लगा हुआ है। कैंटोनमेंट बोर्ड के कारण यहां ज्यादा अतिक्रमण नहीं हो पाता। शहर के लोगों की पहली पसंद यही बाजार है। यहां की चाट पूरे शहर में विख्यात है।
बड़ा जंक्शन और बेहतर कनेक्टिविटी
शहर में देश व्यस्त जंक्शन है। दिल्ली, मुंबई, जम्मू रूट, दिल्ली चेन्नई, गोरखपुर मुंबई चेन्नई, झांसी बांदा प्रयागराज को जोड़ने वाला जंक्शन है। डीआरएम कार्यालय भी है। बीएचईएल, डायमंड सीमेंट और पारीछा तापीय विद्युत ग्रह है। शहर के चारों ओर फोर लेन का निर्माण हो जाने से देश के सभी हिस्सों में यहां से आना-जाना सुगम है।