Jim Corbett National Park: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के व्यवहार में हो रहा बदलाव, प्रशासन हैरान
Uttarakhand News: देश-दुनिया में किए गए अध्ययन बताते हैं कि एक बाघ का इलाका कम से कम 20 किलोमीटर तक होता है, लेकिन पिछले दिनों फतेहपुर रेंज और कॉर्बेट में बाघों के आस-पास रहने के मामले चौंकाते हैं.
Uttarakhand News: उत्तराखंड (Uttarakhand) के नैनीताल (Nainital) में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park) और इससे सटे दूसरे वन प्रभाग में बीते कुछ सालों में बाघों के व्यवहार में कई बदवाल हो रहे हैं. इसकी वजह से वनाधिकारी भी हैरान हैं. वहीं कॉर्बेट के सर्पदुली और दूसरे रेंज में एक बाघिन और दो शावकों के कई लोगों के पालतू जानवरों को अपना शिकार बनाने की घटना सामने आई थी. वहीं बताया जा रहा है कि इन बाघों के साथ एक व्यवस्क बाघ भी देखा गया है.
आमतौर पर दो साल का होते ही शावक अपने परिवार से अलग होकर अपना इलाका बांटकर रहते हैं, लेकिन इन शावकों की उम्र ढाई साल से अधिक होने के बाद भी बाघिन के साथ रह रहे हैं, जो वनाधिकारियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. रामनगर के वन्यजीव विशेषज्ञ एजी अंसारी ने बताया कि बीते 15 सालों में बाघों के व्यवहार में सबसे बड़े दो बदलाव देखे गए हैं. पहला कॉर्बेट में बाघों के शावकों की मृत्यु दर 40 फीसदी तक कम हुई है. इसके चलते अगर एक बाघिन तीन बच्चों को जन्म दे रही है तो तीनों ही बच्चे जंगल की परिस्थियों में खरे उतर रहे हैं. इससे कॉर्बेट में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और जंगल का क्षेत्र बाघों के लिए छोटा पड़ रहा है.
देश-दुनिया में किए गए अध्ययन बताते हैं कि एक बाघ का इलाका कम से कम 20 किलोमीटर तक होता है, लेकिन पिछले दिनों फतेहपुर रेंज और कॉर्बेट में बाघों के आस-पास रहने के मामले चौंकाते हैं. इससे खतरा भी बढ़ रहा है. उन्होंने बताया कि दूसरे बदलाव बाघों में यह देखा गया कि शावकों के मां के साथ रहने की उम्र करीब एक साल तक बढ़ गई है. पहले नर शावक दो साल, जबकि मादा शावक ढाई साल के होते ही परिवार से अलग होकर अपने इलाके का बंटवारा करते थे, लेकिन अब शावक बाघिन के ढाई से तीन साल तक रह रहे हैं, जो कि एक बड़ा शोध का विषय है. उन्होंने कॉर्बेट प्रशासन से बाघों के व्यवहार में हो रहे बदलाव के शोध करने की मांग की है.
पंजे और मूत्र से बनाते हैं अपना क्षेत्र
बाघ अपने इलाके का निर्धारण मूत्र त्याग कर करता है. मूत्र की गंध इतनी तेज होती है कि उस क्षेत्र में आने वाले किसी भी बाघ को अंदाजा हो जाता है कि वह दूसरे बाघ का क्षेत्र है. इसके अलावा बाघ पेड़ों पर अपने नाखूनों के निशान लगाकर भी अपने इलाके को चिन्हित करता है. कई बार देखा गया है कि जब एक बाघ दूसरे के इलाके में घुसने की कोशिश करता है, जिससे दोनों बाघों के बीच संघर्ष होता है, जिसमें कई बार एक बाघ को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है.
कॉर्बेट के डायरेटर धीरज पांडेय ने बताया कि 16 जुलाई और इससे पहले हुई घटना पार्क के चिंता का विषय तो है ही, जिसके लिए इन घटनाओं पर शोध किया जा रहा है. बाघों को पकड़ने के लिए कैमरा ट्रैप आदि लगाए गए हैं. बाघों के पकड़े जाने बाद ही बाघों के शोध की कार्रवाई की जाएगी.
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