Jivitputrika Vrat Katha 2022: पुत्र की दीर्घायु की कामना को लेकर महिलाओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा. 24 घंटे निर्जला यानी बगैर अन्न-जल ग्रहण किए रखे जाने वाले इस कठिन व्रत को महिलाएं पुत्र की दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं. पुत्र की प्राप्ति के लिए भी मनौती के रूप में भी नवविवाहिता इस व्रत को रखती हैं. पुत्र की कामना पूर्ति होने के बाद वे गाजे-बाजे के साथ बरियार के पौधे की पूजा के साथ व्रत को पूर्ण करती हैं. पूरे उत्तर भारत सहित यूपी में इस व्रत का खास महत्व है. सदियों से चले आ रहे इस व्रत को वंश वृद्धि और पुत्र की दीर्घायु के लिए महिलाएं रखती चली आ रही हैं. इस कठिन व्रत को निर्जला रखा जाता है. महिलाएं स्नान-ध्यान के साथ इस व्रत को शुरू करती हैं. वे पुत्र की दीर्घायु के साथ सुख-समृद्धि की कामना करती हैं.
इस व्रत को जितिया और जिउतिया भी कहते हैं. इस व्रत में महिलाएं बरियार के पौधे को पूजती हैं. बरसात के मौसम में बरियार के पौधे मैदान में उग जाते हैं. माना जाता है कि बरियार की जड़ें बहुत मजबूत होती हैं.
व्रती महिलाएं टोली बनाकर गाजे-बाजे के साथ बरियार के पौधे की पूजा करने के लिए निकली. इनमें ऐसी महिलाएं भी शामिल हुईं, जिनकी मनौती पूरी हुई है. पिछले साल जिन नव विवाहिताओं ने ये मनौती मानी थी कि पुत्ररत्न की प्राप्ति पर वे निर्जला व्रत रखने के साथ ही गाजे-बाजे के साथ खुशियां मनाते और नाचते-गाते हुए बरियार के पौधे की पूजा करेंगी, वे महिलाएं ढोल-नगाड़ों के साथ बरियार के पौधे की पूजा करने के लिए पहुंची हैं.
गोरखपुर की रहने वाली कुसुम कहती हैं कि महिलाएं अपने बच्चों की खुशहाली के लिए क्या-क्या नहीं करती हैं. वे जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं. इस व्रत को निराजल रखा जाता है. ये व्रत काफी कठिन होता है. व्रत के साथ अरियार-बरियार नाम के पौधे की पूजा की जाती है. सरोज कहती हैं कि वे लोग 24 घंटे निर्जला व्रत करती हैं. यहां पर महिलाएं पुत्र की दीघार्यु के साथ उनके स्वस्थ रहने की कामना के साथ व्रत रखती हैं. इस व्रत का खासा महत्व है. महिलाएं बरियार के पौधे को खोज कर उसकी पूजा-आराधना कर रही हैं. दूसरे दिन स्नान-ध्यान-दान करके इस व्रत को पूर्ण किया जाता है. उसके बाद महिलाएं अन्न-जल ग्रहण करती हैं.
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