Joshimath Sinking: कौन सी तकनीक से जोशीमठ में जमीन धंसने का पता चला? जानिए- कैसे करती है काम
Joshimath Landslide: IIT-रोपड़ की टीम फरवरी 2021 की बाढ़ के बाद, जोशीमठ के पास तपोवन के सतह विस्थापन की जांच कर रही थी, उसने देखा कि 8.5 सेंटीमीटर तक का सतह विस्थापन हो रहा था.
Joshimath Land Subsidence: उत्तराखंड के जोशीमठ शहर के धीरे-धीरे धंसने (Joshimath Crisis) का निरीक्षण करने के लिए इस्तेमाल की गई पीएसआईएनएसएआर उपग्रह तकनीक एक शक्तिशाली सुदूर संवेदन प्रणाली है जो समय के साथ पृथ्वी की सतह में विस्थापन को मापने और इसकी निगरानी करने में सक्षम है. इस सप्ताह पंजाब स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-रोपड़ (IIT Ropar Punjab) ने कहा कि उसके अनुसंधानकर्ताओं ने 2021 में जोशीमठ में बड़े पैमाने पर धंसाव (Joshimath Landslide) का पूर्वानुमान व्यक्त किया था.
किस तकनीक का इस्तेमाल
आईआईटी रोपड़ ने एक बयान में कहा कि पूर्वानुमान जोशीमठ में इमारतों के लिए 7.5 और 10 सेंटीमीटर विस्थापन के बीच का था, जो इमारतों में बड़े पैमाने पर दरारें पैदा करने के लिए पर्याप्त है. अनुसंधानकर्ताओं ने धंसाव का निरीक्षण करने के लिए ‘परसिस्टेंट स्कैटरर इंटरफेरोमेट्री सिंथेटिक एपर्चर रडार’ (पीएसआईएनएसएआर) तकनीक का उपयोग कर दूर संवेदन डेटा एकत्र किया. सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) रडार का एक स्वरूप है जिसका उपयोग दो आयामी छवियों या वस्तुओं के त्रि-आयामी पुनर्निर्माण, जैसे परिदृश्य बनाने के लिए किया जाता है.
कैसे काम करती है ये तकनीक
आईआईटी-रोपड़ के सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर रीत कमल तिवारी ने कहा, 'एसएआर उपग्रह से एक संकेत विभिन्न लक्ष्यों के साथ संपर्क करता है और उपग्रह में स्थित सेंसर पर वापस जाता है, जिसके आधार पर एक छवि बनाई जाती है. हमारे अध्ययन में, सेंटिनल 1 एसएआर उपग्रह डेटा का उपयोग किया गया था.'
2021 का बाढ़ हादसा
आईआईटी-रोपड़ की टीम फरवरी 2021 की बाढ़ के बाद, जोशीमठ के पास पर्यटन स्थल तपोवन के सतह विस्थापन की जांच कर रही थी, जब उसने देखा कि जोशीमठ में 8.5 सेंटीमीटर तक का सतह विस्थापन हो रहा था, जो ऊपर की ओर था. तिवारी के तत्कालीन पीएचडी छात्र अक्षर त्रिपाठी ने कहा, 'क्योंकि हम एक ही क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन अचानक बाढ़ के परिणामस्वरूप चट्टान विस्थापन के अध्ययन के लिए, हमने समय के साथ-साथ इमारतों के विस्थापन का अध्ययन करने के लिए पीएसआईएनएसएआर तकनीक के इस्तेमाल के बारे में सोचा.'