Joshimath News: आज से श्राद्ध पक्ष शुरू, बद्रीनाथ धाम में पिंडदान करने के मान्यता के बारे में जानें
Uttarakhand News: बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण का विशेष महातम्य है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अन्य तीर्थों के मुकाबले आठ गुना अधिक पुण्य मिलता है.
Joshimath News: शनिवार से श्राद्ध पक्ष शुरू हो गया है, पिंडदान और तर्पण के लिए सुबह से ही भारी भीड़ है. बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) में स्थित ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण का विशेष महातम्य है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अन्य तीर्थों के मुकाबले आठ गुना अधिक पुण्य मिलता है. यहां पर भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. भगवान शिव ने क्रोधित होकर भगवान ब्रह्ना का पांचवा सिर काट डाला जो भगवान शंकर के त्रिशूल पर चिपक गया.
ब्रह्मकपाल को लेकर ये है मान्यता
इस ब्रह्म हत्या के पाप के मुक्ति के लिए भगवान शिव तीनों लोक घूमे. अंत मे बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल में ज्यो ही पहुचे, त्यों ही यह सिर त्रिशूल से छूट गया और यह तीर्थ ब्रह्मकपाल कहलाया. पितरो को मोक्ष के चलते बदरीनाथ धाम को मोक्ष धाम भी कहते है. यहां पर पिंडदान करने के पश्चात पितरों को मोक्ष मिलने के काऱण अन्य जगह पिंडदान और तर्पण करने की आवश्यकता नहीं होती. बद्रीनाथ मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के किनारे ब्रह्मकपाल तीर्थ स्थित है. इसे कपाल मोचन तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर पितृ तर्पण या पिंडदान करने का विशेष महत्व है.
ब्रह्मकपाल में पिंडदान का विशेष महत्व
ब्रह्मकपाल तीर्थ पुरोहित बृजेश सती और मदन कोठियाल कहते हैं कि गया और काशी में भी पिंडदान किया जाता है लेकिन ब्रह्मकपाल में पिंडदान का विशेष महत्व है. श्राद्ध पक्ष में गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन दिया जाता है. इसके साथ ही श्राद्ध में चावल की खीर बनाई जाती है. चावल को देवताओं का अन्न माना जाता है. इसलिए चावल की खीर बनाई जाती है. देवताओं और पितरों को चावल प्रिय है. इसलिए यह पहला भोग होता है. साथ ही चावल, जौ और काले तिल से पिंडदान बनाकर पितरों को अर्पित किए जाते हैं.
भुवन चंद्र उनियाल धर्माधिकारी बद्रीनाथ धाम का कहना है कि वंश वृद्धि के लिए पित्रों का पूजन करना चाहिए, प्रथम पिंड गया से प्रारंभ होता है और अंतिम पिंड बद्रीनाथ ब्रह्मकपाल से. ब्रह्मकपाल वो तीर्थ है जिस तीर्थ में ब्रह्मा की भी हत्या होने के बाद भगवान शंकर पर ब्रह्म हत्या लग गयी, ब्रह्मा का एक सिर कट गया और यही बद्रीनाथ ब्रह्मकपाल में उनके त्रिशूल से छूट पड़ा. यानी कि ब्रह्म हत्या का पाप भी पूर्ण हो गया अर्थात वो क्षेत्र भी विशेष रूप से पित्र प्रतिक्षा करते हैं. महाभारत में तो ये भी कहा गया है कि उस क्षेत्र के दर्शन से पितृ खुश हो जाते है अगर कुछ नहीं कर सकते तो हाथ ऊपर खड़े करिए और पितृों को याद करिए.
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