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Raksha Bandhan 2022: जोशीमठ के इस मंदिर में केवल रक्षा बंधन के दिन होती है पूजा, भोग के लिए हर घर से आता है मक्खन, पढ़ें रोचक कहानी

जोशीमठ विकासखंड के उर्गम घाटी में एक मंदिर है, जहां केवल साल में एक दिन (रक्षाबंधन) पूजा होती है. इसके पीछे नारद भगवान और माता लक्ष्मी से जुड़ी रोचक कहानी है.

UP News: जोशीमठ विकासखंड के उर्गम घाटी में एक ऐसा मंदिर है, जहां साल में सिर्फ एक दिन भगवान की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि साल के बाकी 364 दिन यहां देवर्षि नारद भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं. रक्षाबंधन के दिन कलकोठ गांव के जाख का पश्वा यहां पूजा करते हैं. भगवान वंशी नारायण के इस मंदिर के कपाट पहले साल में एक दिन रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ग्रामीण बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने पर कपाट खोलने की परंपरा शुरू किया है. 

समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित वंशीनारायण मंदिर का निर्माण काल छठी से लेकर आठवीं सदी के बीच का माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ. वंशीनारायण मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा होती है, लेकिन साल में सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही. सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार सिर्फ इसी दिन मनुष्य यहां दर्शन और पूजा-अर्चना कर सकते हैं. बाकी पूरे वर्ष मंदिर के कपाट बंद रहते हैं.

ये है रोचक कहानी
वंशीनारायण मंदिर में मनुष्य को सिर्फ एक दिन पूजा का अधिकार दिए जाने की भी रोचक कहानी है. कहते हैं कि एक बार भगवान नारायण को राजा बलि के आग्रह पर पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी. तब माता लक्ष्मी उन्हें ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा. नारद ने माता लक्ष्मी को भगवान के पाताल लोक में द्वारपाल बनने का पूरा वृतांत सुनाया और उन्हें मुक्त कराने की युक्ति भी बताई. देवर्षि ने कहा कि आप राजा बलि के हाथों में रक्षा सूत्र बांधकर उनसे भगवान को मांग लें.

लेकिन, पाताल लोक का मार्ग ज्ञात न होने पर माता लक्ष्मी ने नारद से भी साथ चलने को कहा था. तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए. मान्यता है कि सिर्फ यही दिन था, जब देवर्षि वंशीनारायण मंदिर में पूजा नहीं कर पाए. इस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशी नारायण की पूजा की. तब से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है.

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हर घर से भगवान के लिए मक्खन
लक्ष्मण सिंह रावत बताते हैं कि वंशीनारायण मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर कलकोठ गांव के प्रत्येक परिवार से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है. भगवान का भोग इसी मक्खन से तैयार होता है.

भगवान वंशीनारायण की फुलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं, जिन्हें सिर्फ श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन पर्व पर तोड़ा जाता है. इन फूलों से भगवान नारायण का श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद श्रद्धालु और स्थानीय ग्रामीण भगवान वंशीनारायण को रक्षा सूत्र बांधते हैं.

मूर्ति में नारायण के साथ शिव के भी दर्शन
उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर तक पहुंचना कोई हंसी-खेल नहीं है. बदरीनाथ हाईवे पर हेलंग से उर्गम घाटी तक आठ किमी की दूरी वाहन से तय करने के बाद आगे 12 किमी का रास्ता पैदल नापना पड़ता है. दूर-दूर तक फैले मखमली घास के मैदानों को पार कर सामने नजर आता है. प्रसिद्ध पहाड़ी शैली कत्यूरी में वंशीनारायण मंदिर बना है. दस फीट ऊंचे इस मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज पाषाण मूर्ति विराजमान है. खास बात यह कि इस मूर्ति में भगवान नारायण और भगवान शिव, दोनों के ही दर्शन होते हैं.

ठाकुर होते हैं भगवान के पुजारी
रघुबीर सिंह नेगी हैं कि परंपरा के वंशीनारायण मंदिर के पुजारी ठाकुर जाति के होते हैं. वर्तमान पुजारी कलगोठ गांव के दरबान सिंह हैं. शुक्रवार को बंशी नारायण मंदिर में ग्रामीणों द्वारा भंडारे की व्यवस्था की गई. लोगों ने भगवान को विशेष पूजा अर्चना कर मन्नते मांगी है.

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