प्रयागराज. संगम नगरी प्रयागराज में लगे माघ मेले में आज से कल्पवास की शुरुआत हो गई है. पौष पूर्णिमा के दिन से शुरू हुआ कल्पवास 27 फरवरी को माघी पूर्णिमा तक चलेगा. इस दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम की रेती पर बनाए गए तंबुओं के शहर में रहकर नियम व संयम के साथ जीवन यापन करेंगे. कल्पवास करने वाले श्रद्धालु मेले में संत महात्माओं व तीर्थ पुरोहितों के शिविर में रहेंगे. दिन में तीन वक्त गंगा स्नान करेंगे. एक वक्त भोजन करेंगे. जमीन पर सोएंगे और पूरा दिन भगवान की आराधना में बिताएंगे.


12 साल में पूरा होता है संकल्प
कल्पवास के दौरान गंगा मैया का गुणगान किया जाएगा. भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाएगी. संतों के सानिध्य में धर्म व आध्यात्म की अलख जगाई जाएगी. कल्पवास का संकल्प 12 साल में पूरा होता है. हालांकि बड़ी संख्या में श्रद्धालु 30-40 या 50 सालों तक भी कल्पवास करते हैं. कल्पवास के पूरा होने पर अपने व परिवार की सुख समृद्धि की कामना तो की जाती है साथ ही अपने लिए मोक्ष की प्रार्थना भी की जाती है.


प्रयागराज में ही होता है कल्पवास
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मोक्ष हासिल होने के बाद मनुष्य को जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है. पूरी दुनिया में प्रयागराज ही ऐसी जगह है जहां श्रद्धालुओं का कल्पवास होता है. यहां इस साल भी ढाई से तीन लाख श्रद्धालु तंबुओं के शिविर में रहकर कल्पवास करेंगे. कल्पवासियों के लिए सरकार और मेला प्रशासन की तरफ से खास इंतजाम किए गए हैं. कल्पवास के पहले दिन श्रद्धालुओं ने पौष पूर्णिमा के मौके पर संगम में आस्था की डुबकी लगाई और अपना संकल्प शुरू किया.


कोविड नियमों का रखा जा रहा है ध्यान
श्रद्धालुओं का कहना है कल्पवास करने से उन्हें जो आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. माघ मेले में इस बार भी सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. साथ ही श्रद्धालुओं को कोरोना की महामारी से बचाने के भी उपाय किए गए हैं. श्रद्धालुओं के शिविरों में कोरोना की जांच हो रही है तो साथ ही उन्हें कोविड-19 गाइडलाइन का पालन करने के लिए जागरूक भी किया जा रहा है.


ये भी पढ़ें:



ओवैसी का विवादित बयान, कहा- अयोध्या वाली मस्जिद में नमाज पढ़ना 'हराम', कोई चंदा भी न दे


फरवरी में हो सकता है योगी कैबिनेट का विस्तार, इन नए चेहरों को मिलेगा मौका, कई मंत्रियों की छिनेगी कुर्सी