Kanpur News: कोरोना के असर और गर्मी शुरू होते ही शहर में खून का संकट गहरा गया है. जीएसवीएम कानपुर मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में महज 2 से 3 दिन का ही स्टॉक बचा है. इसके चलते उर्सला अस्पताल के ब्लड बैंक पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है. आलम यह है कि यहां भी बमुश्किल 4 दिन का ही स्टॉक बच पाया है. सबसे अधिक संकट एबी ब्लड ग्रुप का है. दोनों ब्लड ग्रुप में एबी पॉजिटिव ब्लड की कुल कुछ ही यूनिट बची है.
मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में इस वक्त रोज 100 से 120 यूनिट खून के मांग पत्र आते हैं. रक्तदाता के आधार पर खून दिया जाता है लेकिन कैंसर, गर्भवती महिलाओं और थेलीसीमिया के बच्चों को बिना डोनर के भी रक्त दे दिया जाता है. फिलहाल कॉलेज की ब्लड बैंक में सभी 4 ग्रुपों का पॉजिटिव ग्रुपों का स्टॉक 107 यूनिट तो नेगेटिव का सिर्फ 20 यूनिट बचा है.
डॉक्टरों ने दी ये जानकारी
उर्सला अस्पताल के ब्लड बैंक में पॉजिटिव ब्लड स्टॉक 227 और नेगेटिव का 34 यूनिट बचा है. यहां पर भी इस समय रोज 60 से 70 यूनिट ब्लड की मांग पहुंच गई है. डॉक्टरों की माने तो अगर यही हालात बने रहे तो जिंदगी की जंग लड़ रहे थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए भी खून का संकट पैदा हो सकता है. मेडिकल कॉलेज में थैलेसीमिया पीड़ित 300 बच्चे रजिस्टर्ड हैं इन्हें हर महीने 3 यूनिट ब्लड की जरूरत होती है.
शहर में मेडिकल कॉलेज के पास सबसे बड़ा ब्लड बैंक है. इसके अलावा उर्सला, 7 एयर फोर्स हॉस्पिटल कार्डियोलॉजी और आई एम ए ब्लड बैंक के अतिरिक्त 18 निजी ब्लड बैंक हैं. हालांकि कानपुर नगर के सीएमओ डॉक्टर नेपाल सिंह का कहना है कि वो भी लोगों से अपील कर रहे हैं कि लोग बढ़ चढ़कर रक्तदान करें ताकि संकट के समय जरूरतमंदों की जिंदगी बचाई जा सके.
भारत में बी ग्रुप के खून वालों की संख्या सबसे अधिक
भारत में बी ग्रुप के खून वालों की संख्या सबसे अधिक है. 38.13 फ़ीसदी लोगों का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव है. किल्लत से लड़ने के लिए शहर में 22 ब्लड बैंकों का ग्रुप बना दिया गया है. रक्त की कमी को एक दूसरे से पूरा करने की कोशिश करते हैं. 80 फ़ीसदी मांग और पूर्ति मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक से की जाती है. क्योंकि हर कोई वहीं से ब्लड लेता है थैलेसीमिया के मरीज भी वहीं से लेते हैं.
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