कानपुर: उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में विकास भवन में जिला विकास समन्वय और निगरानी समिति यानी दिशा की बैठक आयोजित हुई. बैठक की अध्यक्षता मिश्रिख से सांसद अशोक कुमार रावत ने की. बैठक में कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी और अकबरपुर से सांसद देवेंद्र सिंह भोले के अलावा कानपुर शहर के सभी विधायक और एमएलसी मौजूद रहे. लेकिन, मीटिंग में चर्चा एमएलसी अरुण पाठक और कानपुर के सीएमओ के बीच हुए गरमा-गरम सवाल-जवाब को लेकर रही.


सरकार की योजनाओं पर होनी थी चर्चा
कानपुर के विकास भवन में आज मौका था जिला विकास समन्वय और निगरानी समिति यानी दिशा की बैठक का. बैठक की अध्यक्षता मिश्रिख के सांसद अशोक कुमार रावत कर रहे थे. उनका साथ दे रहे थे कानपुर नगर से सांसद सत्यदेव पचौरी और अकबरपुर से सांसद देवेंद्र सिंह भोले. बैठक में कानपुर नगर के विधायक और एमएलसी भी मौजूद थे. बैठक में केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं पर अब तक क्या प्रगति हुई है इसपर चर्चा होनी थी. लेकिन, इस बैठक में चर्चा एमएलसी अरुण पाठक और सीएमओ के बीच हुए सवाल जवाब की ज्यादा रही.


सीएमओ से पूछे सवाल
सबसे पहले एमएलसी अरुण पाठक ने आयुष्मान योजना में कानपुर नगर के फिसड्डी होने की तस्वीर अध्यक्ष के सामने रखी. इसके बाद कोरोना काल मे सांसद और एमएलसी कोटे से दिए गए बजट के ना खर्च किए जाने की वजह पूछी. यही नहीं एक-एक कर तमाम स्वास्थ्य योजनाओं का हवाला देते हुए ना सिर्फ सवाल पूछे बल्कि साथ लाए गए आंकड़ों को भी सबके सामने रखा. अरुण पाठक ने सीधे स्वास्थ्य विभाग के मुखिया सीएमओ से ये पूछ डाला कि कानपुर 75 जिलों में 74वें नंबर पर है तो किसी लिस्ट में 56वें नंबर पर आखिर क्यों काबिज है.


गड़बड़ियों को दूर कर लिया जाएगा
वहीं, सीएमओ साहब की अपनी मजबूरी है. उनका कहना है कि जो भी सवाल उनसे किए गए उनका जवाब एसएलसी अरुण पाठक को दिया गया. कुछ गड़बड़ियां जरूर हैं, जिन्हें दूर कर लिया जाएगा.


की जाएगी कार्रवाई
वहीं, बैठक में हुई गरमा गर्मी के बीच अध्यक्षता कर रहे सांसद अशोक रावत का कहना है कि पूरे प्रकरण में लापरवाही दिखती है. अगर सीएमओ शिथिलता के दोषी पाए गए तो उनपर कार्रवाई की जाएगी.


जनता को देना होगा जवाब
अभी पंचायत चुनाव, तो साल 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं. और इस चुनावी साल में सभी पार्टियां अपना दमखम झोंकने में लगी हुई हैं. ऐसे में अधिकारियों और नेताओं के बीच की गर्मा जायज भी हो जाती है. क्योंकि, चुनावी साल में जनता को नेताजी को जवाब जो देना है. अगर नेताजी को अधिकारियों से ही जवाब नहीं मिलेगा तो वो जनता को क्या बताएंगे और चुनावी मौके पर जनता नेताजी को हाथ थमाने के बजाय अंगूठा दिखा देगी.


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