Kanpur Nikay Chunav 2023: कानपुर महापौर सीट को लेकर बीजेपी में जबरदस्त खेमे बंदी जारी है. पचौरी और महाना गुट ने कानपुर, लखनऊ और दिल्ली में लामबंदी शुरू कर दी है. लोकसभा चुनावों से पहले ही बीजेपी के दिग्गज अपनी संभावनाओं के मद्देनजर पांसे चल रहे हैं. जहां एक गुट की पसंद ब्राह्मण उम्मीदवार तो दूसरा गुट मेयर के लिए गैर ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर लोकसभा के समीकरण साधने की तैयारी में जुटा हुआ है.
सियासत भी अजीब होती है, गैरों के साथ साथ अपनों के साथ भी सियासत करना कभी-कभी मजबूरी हो जाती है. उत्तर प्रदेश में नगर निकाय के चुनाव होने जा रहे हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में तमाम दल अपनी अपनी सियासी चालें चलने में मशगूल है. रणनीतियां बनाई जा रही हैं कि कैसे विरोधियों को चारों खाने चित किया जाए. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपने अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने के लिए रणनीति पर काम कर रहे हैं लेकिन कानपुर में भारतीय जनता पार्टी के भीतर हो रही राजनीति चर्चा का विषय बनी हुई है.
जानकार बता रहे हैं कि बीजेपी में इस वक्त खेमे बंदी और लामबंदी चरम पर है. नगर निगम में मेयर की सीट काफी प्रतिष्ठित मानी जाती है और इसको लेकर कानपुर भारतीय जनता पार्टी के दो दिग्गज आमने-सामने हैं. पहला खेमा कानपुर से सांसद सत्यदेव पचौरी का है जिसमें उनके साथ अकबरपुर से लोकसभा सांसद देवेंद्र सिंह भोले समेत कई बड़े नेता शामिल है और दूसरा खेमा भारतीय जनता पार्टी के अब तक विधान सभा चुनावों में अजेय रहे सतीश महाना का है जिनके साथ निवर्तमान महापौर प्रमिला पांडे समेत भारतीय जनता पार्टी के तमाम विधायक और दिग्गज खड़े नजर आ रहे हैं.
इन दोनों ही खेमे उस व्यक्ति को महापौर का प्रत्याशी बनाने को लेकर एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं जिससे 2024 का उनका समीकरण सधता हुआ दिखे. मसलन एक खेमा चाहता है कि लोकसभा चुनाव से पहले होने जा रहे निकाय चुनाव में ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारा जाए जबकि इसके उलट दूसरा खेमा यह चाहता है कि महापौर पद के लिए ब्राह्मण प्रत्याशी ना उतारकर किसी दूसरी जाति से उतारा जाए और इसके लिए दोनों ही गुटों ने कानपुर से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक अपने चाल भी चल दी हैं.
माना जा रहा है कि निकाय चुनाव अधिसूचना से पहले बीजेपी मेयर प्रत्याशी के लिए संभावित नाम नौ अप्रैल तक फाइनल हो सकता है. महिला सीट होने के बाद दावेदारों की भरमार है. बताया जा रहा है कि कानपुर सीट के लिए अब-तक 30 के करीब महिला दावेदारों ने आवेदन किया है. जातीय समीकरण के मुताबिक बीजेपी यहां पर ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने के मूड में लगती है और अगले साल लोकसभा चुनाव में गैर ब्राह्णन प्रत्याशी मैदान में आ सकता है. लेकिन इसके पीछे की राजनिति जरा जानकारों से समझिए.
वरिष्ठ पत्रकार रमेश वर्मा बताते हैं कि यदि मेयर ब्राह्मण प्रत्याशी होगा तो लोकसभा में गैर ब्राह्मण उतारा जा सकता है. ऐसे समीकरण में पार्टी लोकसभा चुनावों में सतीश महाना पर फिर दांव लगा सकती है. उन्हें जिताऊ प्रत्याशी माना जाता है, हालांकि स्थानीय गुटबाजी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें कमजोर कर दिया था. जिसके पीछे पचौरी गुट को भी बड़ी वजह माना जाता रहा है. फिलहाल पार्टी तो मेयर के लिए किसी मजबूत, अनुभवी कुशाग्र बुद्धि वाली महिला प्रत्याशी की तलाश में है. इसी सिलसिले में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक आठ अप्रैल और कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह नौ अप्रैल को कानपुर आ रहे हैं.
प्रमिला पांडे के पीछे हैं सतीश महाना
वहीं वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा ने बताया कि अबकी बार फिर बीजेपी में ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने को लेकर चर्चा है. सरला सिंह की तरह निवर्तमान मेयर प्रमिला पांडेय एक बार फिर टिकट को लेकर लखनऊ दिल्ली का दौरा करने लगी हैं. लखनऊ से निराश लौटी निवर्तमान मेयर को दिल्ली से कोई ठोस आश्वासन मिला है. पार्टी के अंदरूनी सूत्र उनका टिकट मानकर चल रहे हैं. क्योंकि पिछली बार की तरह ही इस बार भी प्रमिला पांडे के पीछे सतीश महाना दीवार की तरह खड़े हुए हैं. वहीं संभावित ब्राह्मण दावेदारों में प्रमिला पांडे, रीता शास्त्री, मनीषा वाजपेयी, अनीता चतुर्वेदी सहित करीब आठ प्रमुख दावेदार हैं जिन्होंने आवेदन किया है. दूसरी वरिष्ठता के आधार पर राज्य महिला आयोग की सदस्य पूनम कपूर का नाम चर्चा में हैं. दक्षिण क्षेत्र की पूर्व अध्यक्ष अनीता गुप्ता, वर्तमान अध्यक्ष डॉ बीना आर्य पटेल, महिला मोर्चा उत्तर की अध्यक्ष सरोज सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष कमलावती सिंह का नाम प्रमुख रूप से चर्चा में है. दावेदारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ज्यादातर महिलाओं ने प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, महामंत्री संगठन धर्मपाल, राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल, विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, सांसद सत्यदेव पचौरी को अपने आवेदन दिए हैं.
पूर्व पीएम ने भी की थी सभाएं
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि मेयर के प्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत 1996 से हुई थी तब महिला सीट घोषित की गयी थी. तब सरला सिंह को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था. दूसरी तरफ सपा की उषा रत्नाकर शुक्ला मैदान में थी. सरला को जिताने के लिए अटलजी तक की सभाएं लगायी गयीं थी. बीजेपी यह चुनाव जीत गयी थी और दूसरे चुनाव में सामान्य सीट हुई, बीजेपी ने फिर सरला सिंह पर दांव लगाया लेकिन यह दांव उल्टा पड़ गया. कांग्रेस के अनिल शर्मा उर्फ अन्नी भैया जीत गए. इसके बाद के चुनाव में पंजाबी प्रत्याशी रवींद्र पाटनी ने कांग्रेस के बद्रीनारायण तिवारी को हराकर ब्राह्मण बहुल सीट का मिथक तोड़कर दिखा दिया कि बीजेपी किसी को भी जिता सकती है. फिर हालांकि बीजेपी का दांव ब्राह्मण प्रत्याशियों पर ही रहा. इन सबके बीच नगर निगम में बीजेपी के उम्मीदवार की प्रत्याशित्ता पर साल 2024 के प्रत्याशी का भी भविष्य तय किया जाएगा.