कानपुर: जासूसी के आरोप में पाकिस्तान की जेल में 8 साल तक बंद रहे 70 वर्षीय शमसुद्दीन के लिए ये दिवाली हमेशा यादगार रहेगी. हो भी क्यों न, रविवार को आखिरकार वापस अपने वतन लौटने का उनका सपना जो साकार हो गया. पुलिस क्षेत्राधिकारी त्रिपुरारि पांडे ने सोमवार को बताया कि पिछली 26 अक्टूबर को अटारी-वाघा सीमा के रास्ते भारत आए शमसुद्दीन कोविड-19 महामारी के मद्देनजर जरूरी प्रोटोकोल के कारण अमृतसर में क्वारंटाइन अवधि गुजारने के बाद रविवार को कानपुर पहुंचे. घर पहुंचने पर परिवार के लोगों रिश्तेदारों और पास-पड़ोस के लोगों ने उनका बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया.


सारी जिंदगी याद रहेगी ये दिवाली
कानपुर के कंघी मोहाल इलाके के रहने वाले शमसुद्दीन की वापसी की उम्मीद छोड़ चुके परिजन अपने बड़े-बुजुर्ग को अपने बीच पाकर अपनी भावनाएं नहीं रोक सके और लिपट कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि इस बार की दिवाली उन्हें सारी जिंदगी याद रहेगी. बजरिया थाने में पुलिस क्षेत्राधिकारी त्रिपुरारि पांडे ने शमसुद्दीन का माला पहनाकर और मिठाई खिलाकर स्वागत किया. शमसुद्दीन ने सबसे पहले बजरिया थाने में हाजिरी दी. वहां उनका स्वागत करने के बाद पुलिस उन्हें कंघी मोहाल स्थित उनके घर लेकर गई, जहां परिवार के लोग और पड़ोसी उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे.


जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी
शमसुद्दीन ने बताया कि वर्ष 1992 में वो अपने एक जान पहचान के व्यक्ति के साथ 90 दिन के विजिट वीजा पर पाकिस्तान गए थे. ये उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी. वर्ष 1994 में उन्हें पाकिस्तान की नागरिकता भी मिल गई थी मगर 2012 में न जाने क्या हुआ कि पाकिस्तान की पुलिस ने उन्हें जासूसी के आरोप में गिरफ्तार करके कराची की जेल में बंद कर दिया. उन्होंने बताया कि काफी जद्दोजहद के बाद आखिरकार उन्हें पाकिस्तान की जेल से रिहाई मिली और अब वो अपने वतन लौट आए हैं, जिसकी एक वक्त वो उम्मीद छोड़ चुके थे.


हिंदुस्तानियों के साथ होता है बुरा बर्ताव
शमसुद्दीन ने संवाददाताओं से कहा कि पाकिस्तान में हिंदुस्तानियों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है. उनसे दुश्मनों की तरह पेश आया जाता है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में जबरदस्त रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार व्याप्त है. शमसुद्दीन ने कहा कि वीजा अवधि गुजरने के बाद दोनों ही देशों के फंसे हुए लोगों को उनके घर वापस जाने देना चाहिए.



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