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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

Kanpur News: जलवायु परिवर्तन को लेकर वैज्ञानिकों ने बजाई खतरे की घंटी, मौसम में बदलाव पर किया बड़ा दावा

Climate Change: मौसम का उतार चढ़ाव बढ़ा रहा टेंशन, सीएसए के अध्ययन में हुआ खुलासा, ऋतु चक्र, मौसम चक्र और फोर्स मैच्योरिटी से हो रहा नुकसान, क्लाइमेट चेंज के चलते असमय बारिश, सर्दी और गर्मी ने मुश्किल बढ़ा रखी है।

Climate Change in India: जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को लेकर पूरी दुनिया में रिसर्च हो रही है. सभी को मालूम है कि पृथ्वी का बढ़ता तापमान भविष्य में बहुत बड़े खतरे की घंटी बजा रहा है. इस बीच कानपुर (Kanpur) में चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय (CSA University) ने मौसम के बदलते चक्र पर जो स्टडी की है वो आंखें खोल देने वाली है. रिपोर्ट की माने तो पिछले 5 दशक के इतिहास में मौसम में इतना उतार-चढ़ाव नहीं देखा गया, जितना अब देखने को मिल रहा है.
 
पहली बार इस सीजन में मौसम में हो रहे उतार-चढ़ाव का अध्ययन किया जा रहा है. तापमान में उतार-चढ़ाव असमय गर्मी-सर्दी और बारिश के ट्रेंड ने भविष्य में बड़े बदलाव के संकेत दिए हैं. इसका सीधा असर किसानों पर भी पड़ रहा है. वैज्ञानिकों को माने तो ऐसे मौसम से फसलों की लागत लगातार बढ़ती जा रही है. चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय सीएसए के मौसम विभाग ने अब तक उपलब्ध आंकड़ों का अध्ययन किया है. अब तक जो निष्कर्ष निकाला गया है उसमें पिछले 3 दशक में सबसे ज्यादा बदलाव दर्ज किया गया है. इनमें तीन बदलाव प्रमुख हैं. 

1. मौसम का पैटर्न चेंज हुआ है
मौसम को पैटर्न चेंज हो रहा है यानी गर्मी, सर्दी और बारिश अपने सीजन में कम तो नहीं हो रही लेकिन इसका समय जरूर कम हो गया है. मतलब जो बारिश सर्दी और गर्मी 4 महीने में हुआ करती थी अब वो 1 महीने में ही हो रही है वो भी एक्सट्रीम कंडीशन में. 

2. ऋतु शिफ्ट
मौसम वैज्ञानिकों की माने तो हमें 6 ऋतुओं का चक्र पढ़ाया गया है लेकिन अब तीन ऋतु सर्दी गर्मी और बारिश ही हो रही हैं इनके बीच की ऋतु अब लगभग लापता सी हो गई हैं. 

3. फोर्स मैच्योरिटी
मौसम के असमय बदलाव का बड़ा असर खेती पर भी देखा जा रहा है. मौसम वैज्ञानिकों की माने तो इसके प्रभाव से फसलें जल्द पक जा रही हैं लेकिन उनकी गुणवत्ता बेहतर नहीं. 
 
मौसम में बदलाव से किसानों को नुकसान
मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि इनमें भी पिछले एक दशक में मौसम के उतार-चढ़ाव के साथ ऋतु की शिफ्टिंग का ट्रेंड भी देखा गया है. शिफ्ट में ऋतु समय पर ना आकर या तो पहले आ रही है या बाद में और या फिर आ ही नहीं रही. साल 2022-23 के सीजन में समय से बारिश नहीं हुई लेकिन बाद में सामान्य से अधिक बारिश हो गई. इससे किसानों को जबरदस्त नुकसान हुआ. समय से बारिश पूरी ना होने के कारण किसानों को नुकसान हुआ पर इसकी भरपाई नहीं हो सकी क्योंकि बाद में अधिक बारिश हो गई.

इसी तरह गर्मी में जब तापमान पीक पर होना चाहिए था तब ना होकर पहले और बाद में हुआ. नवंबर का महीना पिछले वर्षों के मुकाबले बहुत गर्म रहा और दिसंबर भी अपेक्षाकृत गर्म रहा जैसा पहले नहीं होता था. इसके चलते गेहूं की फसल प्रभावित हो गई जनवरी अपेक्षाकृत अधिक ठंडा रहा. इस तरह के ट्रेंड पिछले 3 दशक में देखे गए हैं. 
 
मौसम में बदलाव पर क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानिक डॉ एसएन पांडे की माने तो जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव को रोकना मुश्किल है. बदलाव के आधार पर भविष्य की योजनाएं बनाकर किसानों की मदद की जा सकती है. देश में वर्तमान में 37 डॉप्लर रडार हैं अगले 3 वर्षों में यह 62 हो जाएंगे. 

ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव है. पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग 66.5 अंश का कोण बनता है, जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है. यह झुकाव सूर्य के चारो ओर परिक्रमा के कारण वर्ष के अलग-अलग समय अलग-अलग होता है जिससे दिन-रात की अवधियों में घट-बढ़ का एक वार्षिक चक्र निर्मित होता है. यही ऋतु परिवर्तन का मूल कारण बनता है. 
 
आपको बता दें कि मौसम में परिवर्तन अचानक हो सकता है एवं इसका अनुभव किया जा सकता है, जबकि ऋतु परिवर्तन होने में लंबा समय लगता है इसलिए इसे अनुभव करना अपेक्षाकृत कठिन है. अध्ययन में पाया गया कि  ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं. ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं. ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल सामान्यतः अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिये किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं. ऐसे में इन पौधों को काँच के एक बंद घर में रखा जाता है और काँच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है. यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है. ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है. सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है. इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है. 
 
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