Azadi Ka Amrit Mahotsav: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) का कानपुर (Kanpur) अपने आप में स्वातंत्रय वीरों की भूमि रही है. रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, नानाराव पेशवा, हसरत मोहानी, कैप्टन लक्ष्मी सहगल की यादों को संजोए इस भूमि में असंख्य वीर जन्में जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया लेकिन कुछ ऐसे थे जिनके प्रेणादायी गीतों ने तलवार से ज्यादा स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) को धार देने का काम किया. इन्हीं में से एक थे श्याम लाल गुप्ता पार्षद.
कानपुर के नरवल इलाके के रहने वाले श्यामलाल गुप्त पार्षद ने झंडा गीत की रचना की थी. वहीं झंडा गीत जो तिरंगे को विजयी विश्व तिरंगा बताता है. इस गीत के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब कानपुर आए तो उनसे सेवा आश्रम में मुलाकात की. यहां श्यामलाल गुप्त को पार्षद उपनाम महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी ने प्रथम सेवक होने के नाते दिया था.
रामायण पूरी तरह कंठस्थ थी-रिश्तेदार
पार्षद जी द्वारा लिखित 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा झंडागीत भारत माता की गौरव गाथा को अविस्मरणीय बनाता है. कानपुर का नर्वल कस्बा झंडागीत के रचनाकार श्याम लाल गुप्त 'पार्षद' की ऐतिहासिक स्मृतियों की सुगंध से आज भी महकता है. पार्षद जी के रिश्तेदार बताते हैं कि उनको रामायण पूरी तरह कंठस्थ थी और इसी खूबी की वजह से उनकी शादी टूटते बच गई थी.
अंग्रेजों की गुलामी से रहते थे दुखी
9 सितंबर 1896 को कानपुर के नर्वल में एक वैश्य परिवार झंडागीत के रचनाकार श्याम लाल गुप्त का जन्म हुआ था. विश्वेश्वर प्रसाद और कौशल्या देवी के पांच बेटों में श्याम लाल सबसे छोटे थे. बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति की भावनाएं उफान पर रहती थीं. अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी से वे दुखी रहते थे. हालांकि उनके घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. बावजूद इसके मिडिल की परीक्षा पास कर उन्होंने विशारद की उपाधि प्राप्त की और नगर पालिका और जिला परिषद में अध्यापक की नौकरी की. नौकरी में तीन साल की बाध्यता की अनिवार्यता थी इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
आजादी के आंदोलन में कूद पड़े
1921 में श्याम लाल गुप्त की मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी से हुई और इसके बाद अमर सेनानियों के शौर्य को बढ़ा देने वाले झंडा गीत की रचना की. अब सुनिए झंडा गीत कैसे लिख गया उसकी कहानी. गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आने के बाद पार्षद जी आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. कानपुर के साथ-साथ पार्षद जी ने फतेहपुर को भी अपना कर्म क्षेत्र बनाया. 21 अगस्त 1921 को फतेहपुर में असहयोग आंदोलन शुरू करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. उन्हें 8 बार जेल भेजकर तमाम प्रताड़ना दी गईं लेकिन वे विचलित नहीं हुए. भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने के लिए जी-जान से जुटे रहे.
'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' गीत की रचना की
पार्षद जी अपनी बातों के बहुत ज़िद्दी थे, साल 1921 में श्याम लाल गुप्त ने प्रण लिया कि जब तक देश आजाद नहीं होगा, तब तक वह जूते चप्पल नहीं पहनेंगे. धूप और बारिश में छाता भी नहीं लगाएंगे. आजादी मिलने के बाद भी वह नंगे पांव ही रहे. 10 अगस्त 1977 को उन्होंने अंतिम सांस ली. 1924 में महात्मा गांधी की प्रेरणा से श्याम लाल गुप्त ने 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' गीत की रचना की. 23 दिसंबर 1925 को गांधी जी की मौजूदगी में ही इसे झंडागीत की मान्यता दी गई. कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार इसका गान हुआ. 15 अगस्त 1952 को उन्होंने लालकिले में झंडागीत का गान कर इसे देश को समर्पित कर दिया. 26 जनवरी 1973 को उन्हें पद्मश्री दिया गया.
बापू के प्रधान सेवक थे
नर्वल स्थित सेवा आश्रम में महात्मा गांधी दो बार गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ आए थे. दूसरी बार उनके साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी थीं. विद्यार्थी जी ने श्याम लाल गुप्त को महात्मा गांधी की सेवा में नियुक्त किया था. बापू के प्रधान सेवक होने के चलते कस्तूरबा गांधी ने उन्हें पार्षद यानी सेवक की उपाधि दी थी. तब से उनका नाम श्याम लाल गुप्ता पार्षद पड़ गया.