उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कानपुर (Kanpur) में इन दिनों एक गांव चर्चा का केंद्र बना हुआ है. ये गांव हैं चौबेपुर ब्लॉक में राजारामपुर ग्राम पंचायत का बरुआ खुर्द. दरअसल इस गांव के लोगों को समझ नहीं आ रहा कि साफ सफाई और दवाई जैसी मूलभूत सुविधाओं को छोड़कर गांव में गंगा तट पर श्मशान घाट का निर्माण क्यों करवा दिया गया. गंगा तट पर बसे इस गांव की आबादी महज 500 है. ऐसे में इस गांव के लोगों को साफ सफाई, स्वास्थ्य सेवाओं की सबसे ज्यादा जरूरत है सरकारी सिस्टम ने पूर्व प्रधान और लेखपाल की मिलीभगत से इस गांव में शीतलईश्वर महादेव मंदिर और ज्ञानेश्वर महाराज के आश्रम के बीच में श्मशान घाट का निर्माण करा दिया गया.
गांव को लोग नाराज
इसके बाद से यहां हंगामा कटा हुआ है. ये हंगामा तब सामने आया जब कानपुर मंडल के प्रभारी मंत्री जितिन प्रसाद अपने सहयोगी मंत्री मयंकेश्वर सिंह और कपिल देव अग्रवाल के साथ चौबेपुर के मरियानी ग्राम पंचायत में योजनाओं की समीक्षा करने पहुंचे. बरुआ खुर्द गांव के लोग घाट के सौंदर्यीकरण की बात बताकर श्मशान घाट बनाए जाने से काफी नाराज हैं. शिकयतकर्ता गांव के ही निवासी शरद त्रिवेदी की माने तो ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं जहां इस मामले की उन्होंने शिकायत न की हो लेकिन ना चाहते हुए भी 25 लाख रुपए की कीमत से श्मशान घाट बनाया जा रहा है.
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क्या कहना है लोगों का
एबीपी गंगा की टीम ने जब ग्रामीणों से इसकी हकीकत जानने की कोशिश की तो गांव में अपनी इस मुसीबत को बताने के लिए मजमा लग गया. महिलाओं ने कहा कि गंगा तट पर बना मरघट फौरन हटना चाहिए इसकी जरूरत गांव वासियों को नहीं है. इसके निर्माण से वो अपना गांव छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं. इस मामले में जब हमने कानपुर नगर की जिलाधिकारी नेहा शर्मा से पूछा कि शिकायतकर्ता ने मंत्री जी की जन चौपाल में इस मुद्दे को उठाया था, इसपर क्या कार्रवाई की जा रही है तो डीएम ने कहा कि सभी मामलों के निदान के लिए कार्रवाई की जा रही है.
क्या सवाल उठ रहा
इस सबके बीच सवाल ये उठ रहा है कि ग्रामीणों को जिस योजना की जरूरत नहीं थी, जिसका हर स्तर पर विरोध किया गया और जब श्मशान घाट योजना के निर्माण से दुखी ग्रामीण अपना घर छोड़ने की धमकी दे रहे हैं और उसपर बुलडोजर चलवाने की बात कहते हुए दोषियों को सजा देने की बात कह रहे हैं, बावजूद इसके उसका निर्माण क्यों जारी है. क्या वाकई ग्रामीणों को न्याय मिलेगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि 25 लाख रुपए के बजट की बंदर बांट के लिए ग्राम प्रधान, लेखपाल और उच्च अधिकारियों ने गांव वालों पर श्मशान घाट को जबरन थोप दिया जो उनके गले की फांस बन गया है.