उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कानपुर (Kanpur) में यूपीसीए में क्रिकेट के अलावा और भी बहुत से खेल खेले जा रहे हैं. ऐसा ही आर्थिक अपराध से जुड़ा एक खेल सामने आया है, जिसमें संघ से जुड़े जिम्मेदारों पर उत्तर प्रदेश की आर्थिक अपराध शाखा ने राजस्व चोरी के अपराध तय कर दिए हैं. शिकायत के 8 वर्ष बाद जे के कॉटन ग्रुप के साथ मिलकर लाखों के आर्थिक अपराध का गुनाह तब सामने आया है जब प्रधानमंत्री को शिकायत के एक साल बाद रिमाइंडर किया गया. तब जाकर पिछले शिकायतकर्ता को जानकारी दी गयी. कई वर्षों बाद भी इस अपराध के दोषी जांच की आड़ में खुद को बचाये हुए हैं. आरोप साबित करने वाली रिपोर्ट की फाइलों में धूल की परत दर परत मोटी होती जा रही है. 


क्या है पूरा मामला
1 फरवरी 2005 को जेके कॉटन और यूपीसीए के बीच 100 रुपये के स्टाम्प पर 11-11 महीने के लिये एक साथ तीन वर्षो के लिये समझौता किया गया. इसके तहत कमला क्लब स्टेडियम का 2 लाख 42 हजार प्रति माह किराया तय हुआ जो कि साल भर में 29 लाख 4 हजार का हुआ. साथ में यह भी तय हुआ कि 22 लाख रुपए यूपीसीए द्वारा जेके कॉटन को बतौर जमानत राशि भुगतान करेगा. उसके बाद हर महीने का किराया देता रहेगा. जमा राशि पर समझौता खत्म होने की दशा में बिना ब्याज के वापस की जायेगी. हर साल किराये की राशि में 10 फीसद की बढ़ोतरी भी की जाएगी. जैसे वर्ष 2007 में जो किराया 29,04,000रुपये था. वह 2008 में 10 फीसद बढ़ने पर 2,66,200 प्रति माह के हिसाब से साल में 31,94,840 हुआ. इसी तरह से वर्ष 2009 में प्रति महीने का किराया 2,92,820 रुपये और साल का 35,13,840 रुपये तय हुआ. इस हिसाब से तीन वर्षों में कुल किराया 1,18,12,240 रुपये हुआ.


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राजस्व चोरी का एग्रीमेंट
आगरा के शिकायतकर्ता अधिवक्ता योगेश कुमार कुलश्रेष्ठ के मुताबिक पहले 3 सालों में किराये की कुल रकम 4 परसेंट के हिसाब से स्टाम्प ड्यूटी 4,72,490 रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ. शिकायत करने वाले अधिवक्ता का आरोप है कि 2007 से लेकर 2018 तक कुल लगभग 62,43,855 रुपए कि राजस्व की क्षति का आंकड़ा सामने आता है जिसमें दो पर्सेंट प्रतिमाह के हिसाब से पेनल्टी को भी नियमानुसार जोड़ा जाए तो साल का 24 परसेंट होता है. इतना ही नहीं जेके कॉटन द्वारा ली गयी जमानत राशि पर भी राजस्व बनता है. अधिवक्ता योगेश की दलील है कि रजिस्ट्रेशन अधिनियम कि धारा 17 के अंतर्गत 3 वर्षों के लिए किराएदारी अनुबंध में पंजीकरण अनिवार्य है. इससे साफ होता है कि यूपीसीए और जेके कॉटन ने मिलकर राजस्व चोरी की नियत से 3 साल का एग्रीमेंट 11-11 महीने का किया जो की पूरी तरह से अवैध है.


रिपोर्ट में क्या पता चला
2014 में आगरा के वकील द्वारा की गई शिकायत पर जब किसी भी तरह से कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उनके द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को वर्ष 2019 में शिकायती पत्र प्रमाण सहित भेजा गया. दुबारा 2020 में रिमाइंडर करने के बाद कानपुर के उप निबंधक सदन चतुर्थ कानपुर के आलोक शुक्ला द्वारा दी गई. रिपोर्ट में सिर्फ तीन वर्षों के राजस्व की क्षति का मामला सामने आया. रिपोर्ट में 2005 से 2007 तक कुल राजस्व के नुकसान को ₹3,64,520 दर्शाया गया है. उसमे माना गया है कि बिना किसी रजिस्ट्रेशन के अनुबंध किया गया है, जिससे राजस्व नुकसान हुआ है. यह अनुबंध पूरी तरह से नियम विरुद्ध है. इसमें पेनाल्टी सहित राजस्व बसूलने के साथ सजा का भी प्रवधान है.


टालमटोल का रवैया अपनाया 
जब हमने यूपीसीए से इस बाबत बात करने की कोशिश की तो लगातार इस मुद्दे पर बात करने से पहले टालमटोल का रवैया अपनाया गया लेकिन जब हमने सच जानने के लिए हर हाल में यूपीसीए दफ्तर पर डेरा डाल दिया तो यूपीसीए का बयान सामने आया. हालांकि जांच रिपोर्ट और शिकायतकर्ता जो कुछ कह रहे हैं यूपीसीए उसमें आधा सच और आधा झूठ वाली स्थित बता रहा है. लेकिन ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट सबकुछ साफ करती दिख रही है.


नियमों को दरकिनार किया गया
यूपीसीए और जे के कॉटन के बीच हुए किरायेदारी नामा में कई नियमों को दरकिनार करने के बिंदु सामने आए हैं. अधिवक्ता कुलश्रेष्ठ के मुताबिक दोनों पार्टियों के बीच किसी भी तरह का विवाद होने पर एक पक्षी व्यक्ति को विवाद सुलझाने के लिए रखा गया. यूपीसीए और जे के कॉटन के हुए समझौते में जेके ग्रुप के तत्कालीन डायरेक्टर यदुपति सिंघानिया को मध्यस्थ बनाया गया है जो कि नियम विरुद्ध है. उन्होंने बताया 2005 से लेकर 2007 तक के किरायेदारी एग्रीमेंट के पेज नम्बर 7 के सातवें बिंदु में इसका लिखित प्रमाण भी है.


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कानूनी सलाहकार ने क्या बताया
इस मसले पर जब यूपीसीए से बात की गई तो पहले तमाम पदाधिकारियों ने कहा कि उनको इस संदर्भ में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं है. जब संघ के कानूनी सलाहकार अधिवक्ता अनिल कामथांन से जानकारी ली गयी तो उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 मई से रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट किया गया है लेकिन वे कैमरे पर कुछ भी नहीं बोले. जिसके लिए जरूरी कानूनी अनिवार्यतायें पूरी की जा रही हैं. पूर्व में हुए रेंट एग्रीमेंट के बारे में उन्होंने कुछ भी बोलने से साफ किनारा कर लिया. इससे साफ है कि 2015 से पहले रेंट एग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं किया गया. वहीं शिकायतकर्ता ने प्रधानमंत्री को 2018 तक बिना रजिस्ट्रेशन के किरायानामा करने के आरोप लगाये है.


रेंटल एग्रीमेंट अधिनियम का उल्लंघन
वहीं एबीपी गंगा के पास आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) की जांच कॉपी देखने पर पता चलता है कि यूपीसीए ने वर्ष 2005 से लेकर 2007 तक एग्रीमेंट 100 रुपये के स्टाम्प में किया था जो पूरी तरह से रेंटल एग्रीमेंट अधिनियम का उल्लंघन था. इस संदर्भ में ईओडब्ल्यू द्वारा अपनी जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है. अब आगे की कार्रवाई शासन द्वारा की जानी है. इसपर शासन स्तर से चोरी किये गए राजस्व पर कंपाउंड इंटरेस्ट सहित वसूली की जाएगी. इसका निर्धारण राजस्व विभाग द्वारा ही किया जाता है.