Kanshi Ram News: भारत की राजनीति में कांशीराम को कई नामों से जाना जाता है, जिसमें बहुजन नायक, मान्यवर या साहेब नाम शामिल है. कांशीराम भारतीय की राजनीति में वह नाम है जिसके राजनीतिक किस्से भी काफी रहे हैं. आज शुक्रवार 15 मार्च को बहुजन नायक कांशीराम की जंयती है. इस मौके पर जानें कि कैसे कांशीराम ने दलितों के लिए सादगी अपनाते हुए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था.


कांशीराम का जन्म पंजाब के एक गांव में 15 मार्च 1934 को रैदासी सिख परिवार में हुआ था. उनका नाम भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में लिया जाता है. उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर दलितों के लिए आंदोलन शुरू किया और उन्होंने अपने घर वालों को लिखे एक पत्र में लिखा- "जब तक बाबा साहब का सपना पूरा नहीं हो जाता, चैन से नहीं बैठूंगा"


साल 1964 में उन्होंने रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया ज्वॉइन की लेकिन कुछ कारणों की वजह से उन्होंने उसे छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समिति अपना संगठन भी बनाया. फिर उन्होंने बामसेफ बनाया हालांकि बाद में साल 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की स्थापना की जो आज के समय में राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है. 


कांशीराम दलितों के उत्थान के लिए जाने जाते थे और उन्होंने उनके हक की लड़ाई लड़ी. इसी वजह से उन्होंने दलित राजनीति में अपनी अलग जगह बनाई और वह राजनीति में बहुजन नायक के नाम से जाने गए. उनकी राजनीति के समय के वैसे तो कई किस्से हैं लेकिन कुछ किस्से ऐसे भी किस्से हैं जो उन्हें राजनीति का अजातशत्रु बनाते हैं. 


कांशीराम ने दलितों के उत्थान के लिए छोड़ दिया था घर


दलितों के उत्थान के लिए कांशीराम ने अपना घर भी छोड़ दिया था और उन्होंने घर छोड़ने से पहले अपने परिवार को 24 पन्नों की एक चिट्ठी लिखी. जिसमें उन्होंने लिखा- अब कभी घर नहीं आऊंगा, कभी अपना घर नहीं खरीदूंगा, गरीबों दलितों का घर ही मेरा घर होगा, सभी रिश्तेदारों से मुक्त रहूंगा, किसी के शादी-जन्मदिन और अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होऊंगा, कोई नौकरी नहीं करूंगा, जब तक बाबा साहब अंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो जाता, चैन से नहीं बैठूंगा.


जब लोकसभा में कांशीराम ने कहा- 'देश में कोई डेमोक्रेसी नहीं है'


कांशीराम ने लोकसभा में अपने भाषण के दौरान कहा था कि इस देश में डेमोक्रेसी के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है लेकिन मैं समझता हूं कि देश में कोई डेमोक्रेसी नहीं है. देश में ऐसा खेल चला है जिसमें अमीरों के नोटों से गरीबों के वोटों के साथ खिलवाड़ होता है, जिसको डेमोक्रेसी कहते हैं. 1951-52 में बाबा साहेब अंबेडकर ने भी कहा था कि अगर अमीरों के पैसों से चुनाव लड़ा जाएगा तो देश में उनकी बात चलेगी. 


जब मुलायाम सिंह से किया था गठबंधन


उत्तर प्रदेश में जब कांशीराम और समाजवादी पार्टी के दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव की गठबंधन को लेकर हुई थी तो इसकी काफी चर्चा रही. इस गठबंधन के बाद यूपी की राजनीति में एक नारा आया था कि मिले मुलायम और कांशीराम हवा में उड़ गए जय श्री राम.


कांशीराम ने ठुकरा दिया राष्ट्रपति बनने का ऑफर 


वहीं भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि कांशीराम राष्ट्रपति हों और उन्होंने इसका ऑफर भी उन्हें दिया लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया. यह समय था (1996-98) का जब शंकर दयाल शर्मा का बतौर राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म हो रहा था. कांशीराम ने राष्ट्रपति बनने का ऑफर ठुकराते हुए जवाब में कहा था कि वे राष्ट्रपति नहीं, इस देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. क्योंकि कांशीराम जानते थे कि असली सत्ता प्रधानमंत्री की कुर्सी में है.  


लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव हारे थे कांशीरम


कांशीराम ने पहला लोकसभा चुनाव छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्यप्रदेश का हिस्सा) की जांजगीर चंपा सीट से लड़ा. इस चुनाव में वह तीसरे स्थान पर रहे, फिर साल 1988 में इलाहबाद से लड़े और इस चुनाव में भी उन्हें हार मिली. इसके बाद उन्होंने साल 1989 में ईस्ट दिल्ली लोकसभा से चुनाव लड़ा और इस चुनाव में भी उन्हें हार मिली. इसके बाद साल 1991 में बसपा-सपा गठबंधन के बाद वह उत्तर प्रदेश की इटावा सीट से चुनाव लड़कर जीते और पहली बार लोकसभा चुनाव पहुंचे. हालांकि बाद में वह साल 1996 में पंजाब की होशियारपुर सीट पर चुनाव जीते.


UP News: यूपी में दंगाइयों को लेकर योगी सरकार का प्लान तैयार, खरीदे जाएंगे दंगा नियंत्रण वाहन