कारगिल में 8 गोली लगने के बाद भी काशी के जवान का नहीं टूटा हौसला, आज भी देश की सेवा के लिए तैयार
UP News: कारगिल विजय दिवस के 25 वर्ष पूरे होने पर वीर शहीदों को पीएम मोदी ने लद्दाख जाकर श्रद्धांजलि दी. वहीं वाराणसी से वीर जवान नायक अलीम अली ने भी कारगिल का पूरा किस्सा बताया.
Varanasi News: कारगिल विजय दिवस के 25 वर्ष पूर्ण होने पर पूरा देश जांबाज जवानों के वीर गाथा कों स्मरण करते हुए उनका अभिनंदन कर रहा है. 1999 में पाकिस्तान के नापाक इरादों को भारत के वीर जवानों ने करारा जवाब दिया था. इसी क्रम में वाराणसी के नायक अलीम अली भी उस युद्ध में शामिल थे जिन्होंने अपने सीने पर गोली खाकर पाकिस्तानियों को जुबर पहाड़ी से खदेड़ दिया था. आज कारगिल विजय दिवस के अवसर पर एबीपी लाइव ने वीर जवानों को सलाम करते हुए उनके शौर्य गाथा से जुड़े खास स्मृतियों के बारे में बातचीत की.
1990 में अलिम अली भारतीय फौज में शामिल हुए थे. बचपन से ही भारतीय फौज में जाने का उनका सपना था, पहली पोस्टिंग उनकी जम्मू कश्मीर में हुई थी. अलीम अली ने एबीपी लाइव से बातचीत में बताया कि हम 1 जुलाई को जुबर की पहाड़ी पर अपने 25 फौजी भाइयों के साथ चढ़ाई करने के लिए तैयार हुए. हमें वहां पर दुश्मनों के होने की सूचना मिली थी. हम उन रास्तों से होकर इस पहाड़ी पर चढ़ रहे थे जहां से दुश्मन को ना कोई भनक थी, नहीं कोई अनुमान. इसके बाद हम 3 जुलाई को पूरी तरह जुबर पहाड़ी पर चढ़ चुके थे.
'मुझे शरीर में लगी थी आठ गोलियां'
इसके बाद दोनों तरफ से भीषण युद्ध हुआ. जिसमें हमारे जवानों ने अलग-अलग बंकर में छिपे सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों में से 35 को मौत के नींद सुला दिया था, शेष पाकिस्तानी वहां से दुम दबाकर भागने पर मजबूर हो गए थे. उस पहाड़ी पर हुए जबरदस्त संग्राम में हमारे 10 जवान शहीद हुए थे. और 15 बुरी तरह घायल हुए थे जिसमें मैं भी शामिल था. मुझे हाथ सीने और पैर में कुल 8 गोलियां लगी थी. लेकिन हमारी फौज ने पाकिस्तान को पूरी तरह खदेड़ के जुबर हिल फतह कर तिरंगा लहरा दिया.
अलीम अली ने बताया कि घायलों को इसके बाद सीधे लेह पहुंचाया गया. जहां से उनका इलाज शुरू हुआ. जिसके बाद सीधे वह चंडीगढ़ और लखनऊ भी इलाज़ के लिए भेजे गए. इस दौरान पिता को यह संदेश मिलता है कि बेटा देश के काम आ गया. हालांकि इसके पीछे भी मेरे पिता की संयम और धैर्य आज भी मुझे प्रेरित करती है. उस समय पिताजी रेडियो के माध्यम से युद्ध की पूरी घटना के बारे में जानकारी लेते थे. लेकिन यह जानकर भी कि उनका बेटा शहीद हो गया. उन्होंने परिवार के किसी भी सदस्य से इस बात की चर्चा नहीं की. वह बिना बताए छत पर जाकर रोया करते थे.
लखनऊ में मेरा चल रहा था इलाज
मेरे पिता लोगों से मिलने के दौरान भी जरा सी भी उदासी अपने चेहरे पर नहीं आने देते थे. लेकिन 18 जुलाई को लखनऊ से उन्हें जानकारी प्राप्त होती है कि बेटा युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ है, जिसका इलाज चल रहा है. इसके बाद हमसे मिलने के लिए पूरा परिवार लखनऊ आया था. इस दौरान देश के शीर्ष पदों पर बैठे हुए राजनीतिक दिग्गज और गणमान्य लोग भी स्वास्थ्य का हाल-चाल के लिए लगातार पहुंचे थे.
वर्तमान में वाराणसी के पहाड़ियां पर अलीम अली रहते हैं. उनके परिवार में माता-पिता, पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा है. उनका कहना है कि आज हमारी फौज पहले से भी कहीं ज्यादा सशक्त हुई है. आज भी देश को अगर मेरी जरूरत होगी तो अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए पूरी तरह तत्पर हूं. इसके अलावा उन्होंने यह भी संदेश दिया कि केवल राष्ट्रीय पर्व या ऐसे प्रमुख तिथियों पर ही नहीं बल्कि साल के 365 दिन प्रत्येक देशवासियों के अंदर भारत के प्रति समर्पित रहने का जज्बा होना चाहिए, यही असली देशभक्ति है.
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