कारगिल युद्ध के हीरो योगेंद्र सिंह यादव, 17 गोली लगने के बाद भी तबाह कर दिए थे दुश्मन के बंकर
कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है. पाकिस्तान ने कई बार नियंत्रण रेखा पर भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की. लेकिन जांबाज सिपाहियों के हौसलों ने कारगिल युद्ध फतेह किया.
साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान एक सिक्के ने बचाई थी जान, 17 गोली लगने के बाद भी तबाह कर दिए थे दुश्मन के बंकर, ऐसे ही है योगेंद्र सिंह यादव की अद्भुत कहानी. योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर बटालियन में पदस्थ थे. उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी, जिन्हें एलओसी की सीमा पर सेना में ढाई साल ही हुए थे. उन्हें 17000 फीट ऊंची टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य दिया गया गया. टाइगर हिल पाकिस्तानी फौज के कब्जे में था.
योगेंद्र सिंह यादव ने अपनी पूरी पलटन को लेकर दुश्मन की तरफ चढ़ाई शुरू कर दी थी. गोली लगने के बाद भी उन्होंने हिम्मत दिखाई और ताबड़तोड़ गोलियां चलाई और दुश्मन के बंकर तबाह कर दिए.
धर्मपत्नी ने सुनाई योगेंद्र यादव की बहादुरी की कहानी
गाजियाबाद में योगेंद्र यादव का परिवार रहता है. उनकी धर्मपत्नी ने कहा, हमारी नई-नई शादी हुई थीऔर वो अचानक काम के लिए चले गए. वो बिना बताए ही युद्ध पर चले गए थे, उन्हें एक पत्र मिला था लेकिन हमें इस बारे में उन्होंने कुछ बताया नहीं था. कहा कि मेरी छुट्टी खत्म हो गई है इसलिए मैं जा रहा हूं और उन दिनों फोन भी नहीं हुआ करते थे बस पत्र लिख दिए जाते थे. जब हमें उस घटना का पता चला तो हमारे लिए गमसीन माहौल था. उन्होंने बताया मेरे पास 5 रुपये का सिक्का रखा हुआ था उसमें गोली लगी और गोली वापसी हो गई. उग्रवादियों से मेरी झड़प हुई. उन्होंने मुझे बूट मारे. हर चीज के बारे में उन्होंने बताया. जब हमें बताते हैं तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जब हम अस्पताल में गए तो, उन्हें पहचान ही नहीं पाए थे. 18 महीने तक उनका इलाज चला था.
योगेंद्र यादव को परमवीर चक्र से नवाजा गया है. अब वह उत्तर प्रदेश के बरेली में पोस्टेड हैं. अभी सेना में ऑलरेडी लेफ्टिनेंट हैं. 15 अगस्त को उनको ऑलरेडी कैप्टेन से नवाजा गया और इसी साल उनका रिटायरमेंट भी है. लेकिन उनके अंदर इतना जज्बा है वह देश सेवा में फिर चले जाएंगे कुछ ना कुछ ऐसा कार्य करेंगे जो देश को समर्पित हो.
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