Varanasi News: काशी में मसान होली के पहले विवाद, BHU प्रोफेसर ने कहा- 'इस परंपरा का शास्त्रों में उल्लेख नहीं'
UP News: काशी में आज रंगभरी एकादशी के अवसर पर हरिश्चंद्र घाट पर मसान की होली खेली जाएगी. वहीं BHU के प्रोफेसर का कहना है कि ऐसी परंपरा का शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं है.
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Varanasi News: धर्म नगरी काशी में रंगभरी एकादशी के अवसर पर आज दोपहर 1:00 बजे काशी के प्राचीन हरिश्चंद्र घाट पर मसान की होली खेली जाएगी. यह काफी चर्चित आयोजन में से एक रहा है. महाश्मशान घाट पर होने वाली इस होली में घाट के लोगों के साथ-साथ आसपास के भी हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. लेकिन इससे ठीक पहले काशी के धर्माचार्यों ने इस आयोजन पर बड़ा सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि शास्त्रों पुराणों में ऐसे किसी भी प्रकार के उत्सव का उल्लेख नहीं है.
भगवान शिव ने अपने अंदर सुख-दुख को पूरी तरह से समाहित कर दिया था. वह हमारे आराध्य हैं. उनके जीवन लीलाओं की तुलना एक सामान्य व्यक्ति से कभी नहीं की जा सकती. ऐसे आयोजन में युवा पीढ़ी, गृहस्थ लोगों का खास तौर पर शामिल होना भविष्य में एक गंभीर परिणाम की वजह भी बन सकता है. पहले हमें इस बात का बोध होना चाहिए कि वह स्थल बेहद संवेदनशील माना जाता है. अपने परिजनों से दूर होने की वजह से लोग इस स्थल पर दुख में होते हैं. ऐसे गंभीर स्थल पर किसी भी प्रकार का उत्सव नाच गाना आमजन की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है.
'ऐसी परंपरा का शास्त्रों में उल्लेख नहीं'
काशी विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री और BHU के प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी ने एबीपी लाइव से बातचीत में कहा कि भगवान शिव संपूर्ण विश्व के आराध्य हैं. उनके प्रति हम सनातन प्रेमियों की गहरी आस्था है. उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन लीलाओं में सुख दुख को अपने अंदर समाहित कर लिया था. भगवान शिव के बताए गए मार्गों पर चलना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हुए जीवन के सफर को पूरा करना ही एक सामान्य व्यक्ति के सफल जीवन के रूप में देखा जा सकता है. इस प्रकार के उत्सव का उल्लेख कहीं भी हमारे शास्त्रों और परंपराओं में नहीं है.
'भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते है'
काशी विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री ने इस विषय को लेकर गृहस्थ के लोगों को खासतौर पर बताते हुए कहा है कि महाश्मशान घाट पर संवेदनहीनता की कोई जगह नहीं. भगवान शंकर ईश्वर रूप में है. उनके जीवन लीलाओं को कभी भी एक सामान्य व्यक्ति से तुलना नहीं की जा सकती. उनका त्याग, तप, तेज़ से संसार भली भांति परिचित है. लेकिन शमशान घाट पर ऐसे किसी भी आयोजन का उल्लेख हमारे प्राचीन परंपराओं में नहीं है. खासतौर पर गृहस्थ व युवा पीढ़ी के लोगों को शमशान घाट के ऐसे आयोजन में नहीं जाना चाहिए. भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
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